जयपुर की ‘मन बाई’, जिनके मन की व्यथा कोई नहीं समझ सका!

ख़ुसरो मिर्ज़ा के जन्म - 6 अगस्त, 1587 के दिन ही - मन बाई का दूसरा जन्म हुआ। जहाँगीर ने उन्हें ‘शाह बेग़म’ की उपाधि दी। यह कहानी मन बाई के शाह बेग़म बनने की है। वे ख़ूबसूरत थीं। ठहरी झील के पानी की तरह एक दम शांत। शायद यही वजह रही कि उनकी बादशाह जहाँगीर के दिल में हमेशा एक ख़ास जगह बनी रही।
शाह बेग़म और जहाँगीर : चित्र साभार - jaipurcityblog

शाह बेग़म और जहाँगीर : चित्र साभार - jaipurcityblog

सन् 1586 में सलीम और मन बाई की के आँगन में एक बेटी आई। उसका नाम ‘सुल्तान-उन-निस्सा बेग़म’ रखा गया। इन दोनों की दूसरी संतान के रूप में एक लड़का हुआ जो ‘ख़ुसरो मिर्ज़ा’ के नाम से जाना गया। ख़ुसरो मिर्ज़ा के जन्म - 6 अगस्त, 1587 के दिन ही - मन बाई का दूसरा जन्म हुआ। जहाँगीर ने उन्हें ‘शाह बेग़म’ की उपाधि दी। मन बाई अब शाह बेग़म बन चुकी थी। वे बेहद ख़ूबसूरत थी। ठहरी झील के पानी की तरह एक दम शांत। शायद यही वजह रही कि वे बादशाह जहाँगीर के दिल में उनके लिए हमेशा एक ख़ास जगह बनी रही।

शाह बेग़म, अपने बेटे ख़ुसरो से अपने पिता के प्रति वफ़ादार रहने को बोलती थीं। वे अपने भाई और ख़ुसरो का, जहाँगीर के प्रति बर्ताव सहन नहीं कर सकी और अवसाद में चली गई। जब उन्हें लगा कि बात हाथ से निकल चुकी है, उन्होंने ख़ुद की जान लेने का निश्चय कर लिया। अस्थिर दिमाग़ी हालत से सँभलने की नाक़ाम कोशिशें और अत्यधिक मात्रा में अफ़ीम लेने की वजह से 16 मई, 1604 ईस्वी को शाह बेग़म समय से पहले दुनिया से रुखसत हो गईं।

सन् 1607 ईस्वी में, अक रेज़ा नाम के कलाकार की देखरेख में मुग़ल कोर्ट के आदेश पर शाह बेग़म का मकबरा तैयार हुआ। इलाहबाद के ख़ुसरो बाग़ में, शाह बेग़म का वह मकबरा आज भी मौजूद है।

समय एक-सा नहीं रहता। कुछ वर्षों के बाद उन्हें एक अजीब क़िस्म की मानसिक बीमारी ने घेर लिया। वे कल्पना को सच मानने लगी। कोई कुछ कहता तो उसे अपमान समझने लगती। उनकी इस बीमारी से जहाँगीर की अन्य राजपूत राजकुमारियों के लिए अवसर खुलने लगा। वे शाह बेग़म की जगह ख़ुद को देखने लगी और मुग़ल साम्राज्य में अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश में लग गयीं।

इनयातुल्लाह लिखते हैं, “बेग़म हरम में मौजूद अन्य साथियों से हमेशा अलग दिखना और ऊपर रहना चाहती थीं। उनकी इस आदत की वजह से कई बार वह हिंसक हो जाती थी।” - जहाँगीर जहाँगीरनामा में लिखते हैं,”बेगम दिमाग़ी तौर बहुत अस्थिर हो गई हैं और इस बात का पता मुझे समय-समय पर उनके वालिद साहब और भाइयों से चलता रहता है।”

ख़ुसरो और परवेज़ अपने पिता जहाँगीर के साथ : चित्र साभार - विकिपीडिया

ख़ुसरो और परवेज़ अपने पिता जहाँगीर के साथ : चित्र साभार - विकिपीडिया

शाह बेग़म का मकबरा, ख़ुसरो बाग़ - इलाहाबाद : चित्र साभार - विकिमीडिया कॉमन्स

शाह बेग़म का मकबरा, ख़ुसरो बाग़ - इलाहाबाद : चित्र साभार - विकिमीडिया कॉमन्स

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