जयसमंद: पानी से जूझते राजस्थान में मीठे पानी का समंदर

महाराणा के लिए जयसमंद इतनी महत्वकांक्षी परियोजना थी कि 2 जून, 1691 को मुहूर्त के दिन, एक बड़ा तराजू मँगवाया गया। एक तरफ़ महाराणा बैठे और दूसरी तरफ़ एक-एक कर सोना रखना शुरू किया। कभी पलड़ा इस ओर होता तो कभी उस ओर। आख़िरकार, महाराणा के वज़न के बराबर सोना तोला गया और फिर उसे जनता में बांट दिया गया।
![जयसमंद झील : चित्र साभार - exoticmiles](https://s3-us-west-2.amazonaws.com/secure.notion-static.com/4302bec8-442f-40c5-bd3b-e3d71d6de355/Untitled.png)  जयसमंद झील : चित्र साभार - exoticmiles

![जयसमंद झील : चित्र साभार - exoticmiles](https://s3-us-west-2.amazonaws.com/secure.notion-static.com/4302bec8-442f-40c5-bd3b-e3d71d6de355/Untitled.png) जयसमंद झील : चित्र साभार - exoticmiles

दक्षिणी राजस्थान में सन् 1687 में, उदयपुर से 51 किलोमीटर दूर, एक ऐसा निर्माण होने जा रहा था जिसकी कल्पना उस समय किसी ने भी नहीं की होगी! हाथी-घोड़ों, गधों और उस समय के मानवीय औजारों के साथ, कारीगरों के एक बड़े समूह ने, उस दौर के बेहतरीन इंजीनियरों की अगुवाई में उदयपुर से कूंच किया। मंज़िल दूर थी। कोई नहीं जानता था कि कितना समय लगने वाला है और नतीजा क्या निकलेगा? महाराणा जय सिंह के आदेश थे, पालना ज़रूरी थी।

चारों ओर घनी पहाड़ियाँ थीं, घने जंगलों से घिरी, आसपास एक मानव बस्ती नहीं। एक ढेबर पोखर था जो एक घाट के मुहाने पर बना था और जंगली जानवर बाघ, भालू, तेंदुओं का शिकारगाह था। टुकड़ी ने वहीं टेंट लगा लिए। किसी युद्ध स्तर-सी तैयारी के साथ आख़िरकार ढेबर पर बांध बांधने का काम शुरू हुआ और अगले चार साल तक मैराथन चली। मई, 1691 तक आते-आते, सामने एक विशाल झील खुदी पड़ी थी। इतनी विशाल की किसी भी बड़े शहर की सालभर की प्यास बुझा सके, न सिर्फ़ प्यास एक बड़े शहर तक को निगल ले। सबसे पेचीदा काम बांध बांधने का ही था और कहते हैं वह ज़िम्मेदारी बख्ता और गलालिंग नाम के दो पुर्बिया चौहानों  के कंधों पर थी। दोनों रिश्ते में काका-भतीजे थे।

लगभग पंद्रह किलोमीटर लंबी और दस किलोमीटर चौड़ी वह झील उस समय दुनिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील थी। अपने आकार के कारण उसका नाम पड़ा, जयसमंद – ocian of victory. इतिहास में यह भी लिखा है कि जब गोमती पर 375 मीटर लंबा, 35 मीटर ऊँचा और 20 मीटर चौड़ा बांध बना तो महाराणा को लगा इतने ज़्यादा पानी को रोकने के लिए यह काफ़ी नहीं होगा! उनके आदेश पर, उसी से 100 फ़ीट की दूरी पर एक 396 मीटर चौड़ा, 36 मीटर चौड़ा एक और बांध बनाया गया। बांधों के लिए बरवाड़ी की खान के सफ़ेद सुमाजा पत्थर चुने और गधों के ऊपर उन्हें लाया गया। बाद के सालों में, महाराणा सज्जन सिंह और फ़तह सिंह ने दोनों बांधों के बीच की जगह को भरवाकर उसे समतल कर दिया।

इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू के अनुसार जयसमंद, जयनगर (जयसमंद), जय मंदिर (हवा महल) और जयेश्वर महादेव मंदिर को एक साथ प्रतिष्ठित किया गया। वर्तमान में जो झील की पाल जयसमंद कस्बे से दिखाई देती है, वह मुख्य पाल नहीं है। मुख्य पाल छतरियां और शिव मंदिर वाली जगह है। महाराणा जयसिंह ने पाल के एक तरफ दीवार बनाकर बीच की खाली जगह में मिट्टी भरवा दी थी। नई पाल, जयनगर ( महाराणा जय सिंह ने इस झील के पीछे जयनगर गांव बसाया था। जिसमें कुछ इमारतें एवं बावरियों का निर्माण करवाया। लेकिन आज वर्तमान में यहां पर कुछ अवशेष ही नजर आते हैं। ), जय मंदिर (हवा महल) और पाल पर स्थित जयेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना एक साथ की गई थी। इतिहासकारों के अनुसार हवा महल के निर्माण का उद्देश्य सिर्फ जयसमंद झील की खूबसूरती ऊपर से देखने और झील की प्रतिष्ठा की याद को ताजा रखने के लिए किया था। पूर्व में इस महल को तोरण के नाम से जाना जाता था, बाद में इसका नाम बदल कर हवा महल कर दिया गया। ”

जयसमंद में सात टापू भी बने हैं। सबसे बड़ा बाबा का भागडा और सबसे छोटा पियारी है। इन पर भील आदिवासी और साधू रहते हैं। झील का किनारा मछुआरों से आबाद है। सभी का जीवन झील और नाव पर निर्भर है। एक बार इस बाँध में पानी का स्तर ज़्यादा हो गया था, जिससे आस पास के क्षेत्रों में बाढ़ आ गयी। इस बाढ़ की चपेट में लगभग दस गाँव आ गए और सब-के-सब डूब गए। उन गाँवों को झील के किनारे फिर से बसाया गया। कहा जाता है कि आज भी जब गर्मी के दिनों में झील के पानी का स्तर कम होता है, तो झील में उन गांवों के खंडहर नज़र आते हैं।

साबरमती, जयसमंद से ही निकलती है। जब झील का बांध बन रहा था तब एक अंग्रेज़ इंजिनियर ने भविष्यवाणी की थी कि इस झील पर इतना मज़बूत बांध है कि यह कभी नहीं टूटेगा। लेकिन, कभी यह टूट गया तो इस झील के पेट में इतना पानी है कि पूरा अहमदाबाद बह जाए। यह झील कभी पूरी तरह नहीं सूखी। लेकिन, इसे पूरा भरना टेढ़ी खीर है। इसमें गिरने वाली 9 नदियाँ और 99 नाले जब अपने पूरे वेग से बहते हैं तब जाकर यह पूरी भरती है। इसकी पाल पर संगमरमर के 6 हाथी बने हैं। जब हिलोरे मारता पानी उनके पैरों को छूता है तब जाकर कहीं झील का पानी छलकता है। सन् 2006 में आई बाढ़ में ये 6 हाथी पूरी तरह से डूब गए और साबरमती अपने उफान पर चलने लगी। वह भयंकर था क्योंकि साबरमती के किनारे जितने भी गाँव थे वे जलमग्न हो गए। सभी को डर था कहीं बांध को नुकसान न पहुँच जाए!

महाराणा के लिए यह इतनी महत्वकांक्षी परियोजना थी कि 2 जून, 1691 को मुहूर्त के दिन, एक बड़ा तराजू मँगवाया गया। एक तरफ़ महाराणा बैठे और दूसरी तरफ़ एक-एक कर सोना रखना शुरू किया। कभी पलड़ा इस ओर होता तो कभी उस ओर। आख़िरकार, महाराणा के वज़न के बराबर सोना तोला गया और फिर उसे जनता में बांट दिया गया।

कभी एशिया की पहली और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी झील रही जयसमंद, आज भारत की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है जिसे मानव ने अपने हाथों से बनाया। यह मानव क्षमता का अजूबा है कि उसने महज़ चार सालों में बिना किसी आधुनिक औजार के इतनी बड़ी झील का निर्माण कर दिया।

![जयसमंद झील : चित्र साभार - exoticmiles](https://s3-us-west-2.amazonaws.com/secure.notion-static.com/4302bec8-442f-40c5-bd3b-e3d71d6de355/Untitled.png)  जयसमंद झील : चित्र साभार - exoticmiles

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झील के बीच में बना टापू : चित्र साभार - tripadviser

झील के बीच में बना टापू : चित्र साभार - tripadviser

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