वर्ल्ड काइंडनेस डे
वर्ल्ड काइंडनेस डे एक पॉजिटिव शक्ति और दया के भाव पर आधारित है जो पूरे समाज में हमें अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करता है।वर्ल्ड काइंडनेस डे को विश्व दया दिवस भी कहा जाता है। यह दिन हर साल 13 नवंबर को मनाया जाता है। एक जानकारी के अनुसार यह विश्व दयालु आंदोलन द्वारा 1998 में राष्ट्रों की दयालुता गैर-सरकारी संगठनों के गठबंधन में पेश किया गया था। यह कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, नाइजीरिया और संयुक्त अरब अमीरात सहित कई देशों में मनाया जाता है। साल 2009 में, सिंगापुर, इटली और भारत ने पहली बार इस दिन को मनाया था। इस दिन लोगों को जोड़ने के लिए धर्म, राजनीति, लिंग, धन और रंग के बीच के विभाजन को भरने का प्रयास किया जाता है।
संगठनों का समूह जो अनौपचारिक छुट्टी का आयोजन करता था, लोगों को एक-दूसरे के प्रति दयालु होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहता था।
मशहूर साहित्यकार कबीरदास ने कहा है कि
"जहां दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप।जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा आप" – कबीरदास
अतः यह दया है वही ही धर्म है, जहां लोग यानी लालच है वहां सिर्फ पाप पनपता है, जहां क्रोध है वह काल है।
उदेश्य
विश्व दयालुता आंदोलन द्वारा 1998 में विश्व दयालुता दिवस पहली बार शुरू किया गया था, जो 1997 के टोक्यो सम्मेलन में दुनिया भर के समान विचारधारा वाले दयालु संगठनों का गठन था। विश्व दयालुता आंदोलन में वर्तमान में 28 से अधिक राष्ट्र शामिल हैं जो किसी भी धर्म या राजनीतिक आंदोलन से संबद्ध नहीं है। विश्व दयालुता आंदोलन और विश्व दयालुता दिवस का उद्देश्य व्यक्तियों और राष्ट्रों को अधिक दयालुता के लिए प्रेरित करके एक बेहतर दुनिया बनाना है।
कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, नाइजीरिया , इटली और संयुक्त अरब अमीरात सहित कई देशों में विश्व दया दिवस मनाया जाता है।
कई देशों के तमाम राष्ट्रीय संगठन मुफ्त चिकित्सा उपचार, उपहार, सामाजिक कार्य से इस दिन को मनाते हैं।
वर्ल्ड काइंडनेस डे के दिन जानते है उन लोगो के बारे में जो दुनिया में जाने गए है अपने दया के लिए
मदर टेरेसा
वह एक हिंदू साधु थे जो 19वीं सदी में महान साधु रामकृष्ण परमहंस जी के परम शिष्य थे। उन्होंने आधुनिक वेदांत और राज योग की शिक्षा लोगों को दिया। अपने पूरे जीवन काल में केवल लोगो की मदद की,घर वालो के माना करने पर वो अपनी छत से गरीबो के लिए कपड़े फेक दिया करते थे ताकि घर वालो का न पता चले।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर
अपना पूरा जीवन भारत के गरीब लोगों को समर्पित करने वाली मदर टेरेसा का जन्म मेसेडोनिया देश के एक अल्बेनीयाई परिवार में हुआ था। उनका परिवार एक अच्छी आर्थिक स्थिति वाला था।उन्हें गरीबों की हालत देखकर बहुत दुख होता था। 1946 में दार्जिलिंग रिट्रीट के दौरान ही उन्होंने कहा कि उन्हें भगवान का संदेश मिला है कि इस देश में सबसे गरीब लोगों की मदद करनी है। उन्हें दो साल लग गए अपने इस काम को पूरा करने में। उन्होंने नर्सिंग का कोर्स किया। उसके बाद लोगों की मदद में जुट गईं। उन्हें पहले आसान जीवन जीने की आदत थी, लेकिन झोपड़ी में रहना पड़ा और भीख मांगकर उन्होंने लोगों का पेट भरा। उन्हें कई बार कॉन्वेंट वापस जाने का मन भी किया क्योंकि स्लम की जिंदगी काफी मुश्किल थी। पर वो टिकी रहीं और कोढ़, प्लेग आदि बीमारियों के मरीज़ों की भी मदद की।
स्वामी विवेकानंद
वह एक दार्शनिक, अकादमिक शिक्षक, लेखक, अनुवादक, प्रकाशक, उद्यमी, सुधारक और परोपकारी व्यक्ति थे। उहोने महिलाओ की शिक्षा लर काम किया।जब समाज के सभी वर्ग महिलाओं की शिक्षा से असहमत थे तब इहोने शिक्षा में काम किया