शाह मल की अनसुनी दास्तां
शाह मल - जिनके भाले के सामने ब्रिटिश तोपों की ताकत भी फीकी पड़ गई, जिन्होंने एक आम किसान होते हुए मेरठ के लोगों के दिलों पर राज किया और राजपरिवार से ना होते हुए भी राजा कहलाए।
अंग्रेजों के खिलाफ शुरू हुई 1857 की क्रांति जंगल की आग की तरह फैल रही थी, इस विद्रोह में उत्तर भारत के हजारों किसानों, सैनिकों और आम नागरिकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। बेशक सबके अपने-अपने कारण थे, लेकिन लक्ष्य एक ही था, अंग्रेजों के शोषण से मुक्ति। रानी लक्ष्मीबाई और नाना साहब जैसे नेताओं ने कुछ स्थानों पर इस विद्रोह की बागडोर संभाली थी, लेकिन यह सभी स्थानों का सत्य नहीं था, कई जगहों पर इस विद्रोह के नेता आम किसान भी थे।
ऐसे ही एक किसान का नाम था शाह मल, वह उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगना के बड़ा गांव का रहने वाले थे। देश के बाकी किसानों की तरह यहां के किसान भी लगान की ऊंची दरों से परेशान थे। लगान की दरें इतनी अधिक थीं कि किसान कर्जदार हो चुके थे और किसानों को अपनी जमीन बेचने को मजबूर होना पड़ा। यह केवल इस गांव का ही नहीं, बल्कि आसपास के सभी गांवों का या यूं कहें कि जहां-जहां ब्रिटिश शासन था, वहां के किसानों की स्थिति कुछ ऐसी ही थी।
शाह मल इस क्षेत्र में एक नेता के रूप में उभरे। उन्होंने आसपास के गांवों में जाकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह तैयार किया और सभी गांवों के प्रमुखों को संगठित किया। जल्द ही शाह मल द्वारा शुरू किए गए इस विद्रोह ने व्यापक रूप ले लिया।
किसानों ने व्यापारियों और साहूकारों (जिन्होंने उनसे उनकी जमीन छीन ली थी) के घरों को लूटना शुरू कर दिया। जिन बेदखल किसानों से उनकी जमीनें छीन ली गई थीं, उन्होंने फिर से उन पर कब्जा करना शुरू कर दिया। सरकारी भवनों, नदी पुलों और पक्की सड़कों को ध्वस्त कर दिया गया। शाह मल ने एक अंग्रेज अधिकारी के बंगले में डेरा डाला, जहाँ से वह झगड़ो और विवादों का फैसला करने लगा, इस कारण उस भवन का नाम 'न्याय भवन' पड़ा। जासूसों का एक पूरा जाल बिछा दिया गया, जो शाह मल और उसके साथियों को वहां होने वाली हर गतिविधि की जानकारी देता था।
ब्रिटिश सेना के मार्ग को अवरुद्ध करने और ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए सभी संभव प्रयास किए गए, ब्रिटिश मुख्यालय और मेरठ के बीच सभी संचार काट दिया गया। केवल कुछ महीनों के लिए लेकिन शाह मल ने मेरठ से फिरंगी राज समाप्त कर दिया।
ब्रिटिश सरकार भी अधिक देर तक चुप नहीं बैठने वाली थी। जुलाई 1857 में, शाह मल के नेतृत्व में प्राचीन तलवारों और भाले से लैस लगभग 3,500 किसान, घुड़सवार सेना, पैदल सेना और तोपखाने रेजिमेंट से लैस ईस्ट इंडिया कंपनी के ब्रिटिश सैनिकों से भिड़ गए।
इस युद्ध का क्या परिणाम होने वाला था, यह तो सभी जानते थे आख़िरकार भाले तोपों के आगे कितने देर टिक पाते, लेकिन फिरंगी भी शाह मल और अन्य विद्रोहियों के जज़्बे और हौसले को देखकर हैरान रह गए।
शाह मल की मृत्यु के साथ युद्ध समाप्त हुआ लेकिन एक बड़ी जंग अभी बाकी था, फिरंगियों को देश से खदेड़ना अभी बाकी है।। सही मायनों में यह जंग 15 अगस्त 1947 को समाप्त हुई जब देश वास्तव में फिरंगियों से मुक्त हो गया। आज भी इस क्षेत्र के लोग उनकी वीरता के गुण गाते नहीं थकते और हर साल 18 जुलाई (जिस दिन उनकी मृत्यु हुई) को उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, उनका गांव आज क्रांति गांव के नाम से जाना जाता है।