अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) इस दिवस को हर साल 25 नवंबर को मनाता है। महिलाओ के ऊपर बढ़ते अपराध एक सामाजिक मुद्दा है जो आज समाज के मिये एक समस्या बन गयी है। महिला समाज का उतना ही महतवपूर्ण अंग है जितना जितना एक पुरुष, परन्तु समाज में महिला को दबाया जा रहा है जो विकास के मार्ग पर बाधा है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकना और उसका जवाब देना मानवाधिकार, लैंगिक समानता और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता है। हर देश और संस्कृति में महिलाओं को उनकी विविधता में हिंसा और जबरदस्ती से मुक्त जीवन सुनिश्चित करने के लिए और अधिक कार्रवाई की आवश्यकता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर डब्ल्यूएचओ-यूएन महिला संयुक्त कार्यक्रम द्वारा समर्थित रिपोर्ट से पता चलता है कि अपने पूरे जीवनकाल में 3 में से 1 महिला किसी अंतरंग साथी द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा या गैर-साथी से यौन हिंसा का शिकार होती है।
1981 में, लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई नारीवादी एनकेंट्रोस के कार्यकर्ताओं ने 25 नवंबर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा का अधिक व्यापक रूप से मुकाबला करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए एक दिन के रूप में चिह्नित किया; 17 दिसंबर, 1999 को, संयुक्त राष्ट्र (UN) ने इस दिन को आधिकारिक प्रस्ताव अपनाया था।
थीम
साल 2021 में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी थीम “ऑरेंज द वर्ल्ड: एंड वॉयलेंस अगेंस्ट वुमन नाउ” घोषित की है। इसमें अपील की गई है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा का अभी अंत किया जाए। संयुक्त राष्ट्र ने भी माना है कि कोविड महामारी के कारण महिलाओं और बच्चियों पर होने वाली हिंसा में, खास तौर पर घरेलू हिंसा में तेजी से इजाफा हुआ है जिसके लिए दुनिया तैयार नहीं थी।
कोविड का प्रभाव
संयुक्त राष्ट्र ने यह पाया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया के कई देशों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और अपराधों में काफी तेजी आई है। कोविड-19 महामारी से जूझ रही दुनिया में लोगों ने कई तरह के मानसिक तनावों को झेला है ऐसे में महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा में इजाफा हैरानी की बात नहीं हैं। 13 देशों में हुए एक सर्वे के आधार पर आई संयुक्त राष्ट्र नई रिपोर्ट में पता चला है कि कोविड-19 ने घर और बाहर दोनों ही जगहों पक महिला सुरक्षा की भावनाओं का क्षरण किया है।
भारत में हिंसा
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया द्वारा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 से संबंधित जारी की गई एक रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों में बिहार, कर्नाटक (48%) के बाद दूसरे स्थान पर है, जबकि लक्षद्वीप में घरेलू हिंसा सबसे कम (2.1%) है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत में लगभग एक-तिहाई महिलाओं ने शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है, जबकि देश में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा 31.2% से घटकर 29.3% हो गई है।
शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करने वाली कुल महिलाओं में से केवल 14% महिलाओं ने इस मुद्दे को उठाया है।
महिलाओं के बीच शारीरिक हिंसा का अनुभव ग्रामीण क्षेत्रों (32%) में शहरी क्षेत्रों (24%) की तुलना में अधिक आम है।
सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि 32% विवाहित महिलाओं (18-49 वर्ष) ने शारीरिक, यौन या भावनात्मक वैवाहिक हिंसा का अनुभव किया है। वैवाहिक हिंसा का सबसे आम प्रकार शारीरिक हिंसा (28%) है, जिसके बाद भावनात्मक हिंसा और यौन हिंसा का स्थान आता है।
आगे की राह
1.पुलिस और न्याय सेवाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि किसी भी आपराधिक घटना के साथ-साथ महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हुई हिंसक घटनाओं को भी अन्य हिंसक एवं आपराधिक घटनाओं के साथ उच्च प्राथमिकता दी जाए।
2.सामाजिक सहायता का विस्तार करने के साथ-साथ फोन या इंटरनेट का उपयोग न करने वाली महिलाओं तक इनकी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये तकनीक आधारित समाधानों जैसे- एसएमएस, ऑनलाइन टूल एवं नेटवर्क का उपयोग करते हुए हेल्पलाइन, साइकोसोशल सपोर्ट और ऑनलाइन काउंसलिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये ।
3.महिलाओं के खिलाफ उन हिंसक मामलों को तत्काल प्रभाव से निपटाने की ज़रूरत है जिनका सामना वे आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन पैकेज के अभाव में भेदभाव के कई रूपों में करती हैं।
- ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के हितों के लिये कार्य करने वाले संगठनों एवं समुदायों को दृढ़ता से समर्थन करने की आवश्यकता है।