अब सब जाने पीड़ पराई: आत्म-चोट जागरुकता दिवस

कभी-कभी जीवन में अक्सर ऐसे होता है कि हम ख़ुद को अकेला महसूस करते हैं, और हमारी यह घुटन हमारे मन में नकारात्मक विचार उत्पन्न करती हैं। और यहीं विचार हमें कुछ ग़लत क़दम उठाने के लिए भी विवश करते हैं। लोगों की इसी मनोस्थिति को समझने की पहल करने हेतु 1 मार्च आत्म-चोट जागरुकता दिवस उन लोगों को समर्पित है, जो किसी अवसाद की स्थिति में आकर ख़ुद को नुकसान पहुँचाते हैं, और जिस कारण और उन्हें भावनात्मक सहायता देने आवश्यकता भी पड़ती है।
आत्म-चोट जागरुकता दिवस. jpg source : time and date

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आए दिन, हम ऐसी खबरें पढ़ते रहते है कि लोगों ने किसी कारण खुदखुशी कर ली ⵏ इस तरह के समाचार पढ़कर उस अनजाने व्यक्ति से हमें सहानुभूति होने लगती हैं, पर यह भी सत्य है कि हर किसी को कभी न कभी ऐसा लगता है कि हमें कोई समझ नहीं पाता या हमारी कोई परवाह नहीं करता और कभी-कभी तो स्थिति इतनी भयानक हो जाती है कि लोग अवसाद में आ जाते हैं, और ऐसे हालात में खुद को नुकसान भी पहुँचा लेते हैंⵏ यह एक गंभीर समस्या हैⵏ इसलिए आत्मचोट के बारे में जागरुकता और समझ फैलाने के लिए 1 मार्च आत्म-चोट जागरुकता दिवस का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय जागरुकता दिवस है और इस दिन का उद्देश्य भावनात्मक संकट से जूझ रहे लोगों की मदद करना है।

ऐसा देखा गया है कि अवसाद और खुद को नुकसान पहुँचाना, अक्सर साथ-साथ चलते हैं, हालाँकि कई अन्य कारण भी हैं, जिससे लोग खुद को नुकसान पहुँचाते हैं। पिछले दिनों जर्नल ऑफ अमेरिकन बोर्ड ऑफ फैमिली मेडिसिन के शोध के अनुसार, वर्तमान में कम से कम दो मिलियन अमेरिकी आत्म-नुकसान में संलग्न हैं। जिनमें से अधिकांश कॉलेज के छात्र हैं। खुद को नुकसान पहुँचाने वाला व्यवहार एक आवेगी कार्य है, जो पूर्वचिंतित विचारों और नकारात्मक भावनाओं से जुड़ा होता है। और अगर कोई व्यक्ति ख़ुद को चोट पहुंचाने का कार्य करता है, तो स्वंय को कई तरीक़े से नुकसान पहुचाने के बारे में सोचेगा जिसमें, काटना, खरोंचना, मुक्का मारना और जानलेवा रसायनों का सेवन करना शामिल है।

एक अन्य शोध के अनुसार सबसे ज़्यादा युवा और किशोर भावनात्मक रूप से कमज़ोर पाए गए हैं। और अब हालात यह है कि स्कूल से ही बच्चे मोबाइल तथा इंटरनेट सम्बन्धी गतिविधियों में इतनी बुरी तरह लिप्त हैं कि उनके माता-पिता को ही नहीं पता होता कि उनका बच्चा किस दिशा में जा रहा है। तभी किशोरों और माता-पिता दोनों के लिए बदलता परिवेश एक कठिन समय होता है।

अपने सहपाठियों से अनचाहा क्लेश, तेज़ी से विकसित होते हॉर्मोन या शिक्षा से सम्बंधित तनाव सभी अशांत किशोरों के व्यवहार को आक्रमक बना सकते हैं, इसलिए किशोरों के मानसिक व्यवहार में आए परिवर्तन को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। किशोरावस्था में इस तरह का व्यवहार खतरनाक किशोर विकास का सामान्य हिस्सा नहीं है। तभी बहुत देर होने से पहले आत्म-हानिकारक व्यवहार जैसे; अलगाव और सामाजिक स्थितियों से बचना, घावों को छुपाने के लिए बैगी या ढीले कपड़े पहनना, शरीर पर निशान या घाव होने का हमेशा बहाना बनाना, लंबे समय तक बेडरूम या बाथरूम में बंद रहना आदि चेतावनी संकेत है, जिनके बारे में जानना आवश्यक है। इस दिन जागरुकता संगठन स्वयं को नुकसान पहुँचाने और खुद को चोट पहुँचाने के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास करते हैं।

कुछ लोग इस दिन अपने हाथ में नारंगी रिबन पहनते हैं, अपनी बाहों पर "लव" लिखते हैं, तथा अपनी कलाई पर एक तितली बनाते हैं ताकि आत्म-हानि के बारे में जागरुकता को प्रोत्साहित किया जा सके। यहाँ तक कि देश भर के संगठनआत्मचोट दिवस से सम्बंधित उपयोगी जानकारी प्रदान करने के लिए कई अनुभवी वक्ताओं के साथ सेमिनारों और कार्यक्रमों का आयोजन भी करते है। आत्म चोट जागरुकता दिवस का निरीक्षण करने वाले लोगों का लक्ष्य आत्म-नुकसान के आसपास के सामान्य रूढ़िवादों को तोड़ना और चिकित्सा पेशेवरों को इस स्थिति के बारे में शिक्षित करना है।

हालाँकि आत्म चोट जागरुकता दिवस को आत्म-चोट के बारे में जागरुकता और समझ फैलाने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसे गलत तरीके से भी प्रस्तुत किया जाता है । जो लोग खुद को नुकसान पहुँचाते हैं, वे अक्सर अकेला महसूस करते हैं और मदद के लिए पहुँचने से डरते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि लोग उन्हें "पागल" समझेंगे। जो लोग खुद को नुकसान पहुँचाते हैं, वे अक्सर अकेला महसूस करते हैं और मदद के लिए पहुँचने से डरते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि लोग उन्हें "पागल" समझेंगे। सही मायने में आत्म चोट जागरुकता दिवस व्यक्ति को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और अवसाद से जुड़ी जड़ता से बचने में मदद करने का एक अच्छा समय है।

तभी हमें भी बदलते वक़्त के साथ खुद को बदलना होगा, और यह समझना होगा कि ऐसा कोई नहीं है, जिसकी ज़िन्दगी पूरी तरह सामान्य हो। उतार-चढ़ाव सबके जीवन का हिस्सा हैं, इसलिए हमें चाहिए कि लोंगो के साथ आत्म बातचीत शुरू करके एक संवाद खोलें। स्व-चोट के बारे में अधिक जानें और यदि आपको इसकी आवश्यकता हो तो सहायता प्राप्त करें और अन्य किसी की मदद करने में भी पीछे न रहें। इस सन्दर्भ में निदा फ़ाज़ली जी की लिखी पंक्तियाँ बड़ा गहरा अर्थ देती हैं--

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें

किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये।

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