एड्स जैसे अभिशाप से विश्व को बचाने की पहल

यह कहानी एड्स के बारे में जागरुकता को बढ़ाने और युवा पीढ़ी एड्स जैसी महामारी से कैसे दूर रहें इस उद्देश्य को बताती है।
एड्स के प्रति जागरूकता बढ़ाते हुए लोगों

एड्स के प्रति जागरूकता बढ़ाते हुए लोगों Source- Wikipedia

विश्व एड्स दिवस

विश्व एड्स दिवस हर साल 1 दिसंबर को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य एड्स के बारे में हर उम्र के लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है। और एड्स वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। सबसे पहले विश्व एड्स दिवस को वैश्विक स्तर पर मनाने की शुरुआत WHO ने अगस्त 1987 में की थी। विश्व एड्स दिवस के लिए हर साल एक नई थीम रखी जाती है। इस साल की थीम- “असमानताओं को समाप्त करें, एड्स का अंत करें” है।

एचआईवी एड्स ?

एचआईवी एक प्रकार के जानलेवा इंफेक्शन से होने वाली गंभीर बीमारी है। एड्स का पूरा नाम 'एक्वायर्ड इम्यूलनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम' है। यह एक तरह का विषाणु है, जिसका नाम HIV (Human immunodeficiency virus) है। इस रोग में जानलेवा इंफेक्शन व्यक्ति के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी (इम्यून सिस्टम) पर हमला करता है। जिसकी वजह से शरीर सामान्य बीमारियों से लड़ने में भी अक्षम होने लगता है। खास बात है, कि ये बीमारी तीन चरणों (प्राथमिक चरण, चिकित्सा विलंबता होना और एड्स) होती है।

‘’एड्स महामारी से दुनिया को बचाना है

इस से पीड़ित लोगों को ना सताना है,

और ना ही एड्स पीड़ित लोगों से घबराना है।’’

एड्स की पहचान

एड्स की पहचान 1981 में हुई थी। डॉक्टर माइकल गॉटलीब ने लॉस एंजिलिस में पांच मरीजों में एक अलग किस्म का निमोनिया पाया। डॉक्टर ने पाया कि इन सब मरीजों में रोग से लड़ने वाला तंत्र अचानक से कमजोर पड़ गया था। ये पांचों मरीज समलैंगिक थे इसलिए शुरुआत में डॉक्टरों को लगा कि यह बीमारी केवल समलैंगिकों में ही होती है। इसीलिए एड्स को ग्रिड यानी गे रिलेटिड इम्यून डेफिशिएंसी का नाम दिया गया।

विश्व एड्स दिवस की शुरुआत

पूरा विश्‍व आज जिस एड्स दिवस को मनाता है, उसकी पहली बार कल्पना 1987 में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न द्वारा की गई थी। थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न दोनों WHO । (विश्व स्वास्थ्य संगठन) जिनेवा, स्विट्जरलैंड के एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक सूचना अधिकारी थे। उन्होंने एड्स दिवस का अपना विचार डॉ। जोनाथन मन्न (एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के निदेशक) के साथ साझा किया, जिन्होंने इस विचार को स्वीकृति दे दी और वर्ष 1988 से 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। प्रारंभ में विश्व एड्स दिवस को सिर्फ बच्चों और युवाओं से ही जोड़कर देखा जाता था परन्तु बाद में पता चला कि एचआईवी संक्रमण किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है। जिसके बाद साल 1996 में संयुक्त राष्ट्र ने एड्स का वैश्विक स्तर पर प्रचार और प्रसार का काम संभालते हुए साल 1997 से विश्व एड्स अभियान की शुरुआत की।

1959 में कॉन्गो में मिला था पहला मामला

माना जाता है, कि 19वीं सदी में पहली बार अफ्रीका के खास प्रजाति के बंदरों में एड्स का वायरस मिला था। बंदरों से होते हुए यह बीमारी इंसानों में फैली है। दरअसल अफ्रीका के लोग बंदर को खाते थे, इसलिए कहा जाता है, कि बंदर को खाने से वायरस ने इंसान के शरीर में प्रवेश किया होगा। और फिर 1959 में कांगो के एक बीमार आदमी की मौत हुई और उसके खून के नमूने में सबसे पहला HIV वायरस मिला । माना जाता है, कि वह पहला HIV संक्रमित व्यक्ति था। और उस समय किंशास सेक्स ट्रेड का गढ़ था। इस तरह सेक्स ट्रेड और अन्य माध्यमों से यह बीमारी अन्य देशों में पहुंची। 1960 में यह बीमारी अफ्रीका से हैती और कैरिबियाई द्वीप में फैली। दरअसल औपनिवेशिक लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो में हैती के लोग काम करते थे। जहां स्थानीय स्तर पर उनके द्वारा शारीरिक संबंध बनाए जाने से ये बीमारी दूसरों में फैली। जब वे अपने घरों को लौटे तो वायरस उनके साथ हैती पहुंचा। उसके बाद वायरस कैरिबिया से न्यूयॉर्क सिटी में 1970 के दौरान फैला और फिर अमेरिका से बाकी दुनिया में पहुंचा। वहीं 1980 के बाद काफी तेजी से पूरे विश्‍व में फैला। तब से लेकर अब तक पूरे विश्‍व में लाखों लोग एड्स के कारण अपनी जान गवां चुके हैं।

फ्रांस में एड्स की शुरुआत

फ्रांस में 1983 में लुक मॉन्टेगनियर और फ्रांसोआ सिनूसी ने एलएवी वायरस की खोज की थी और 1984 के आसपास अमेरिका के रॉबर्ट गैलो ने एचटीएलवी 3 वायरस की खोज की थी। 1985 के आसपास ज्ञात हुआ कि ये दोनों वायरस एक ही हैं। मॉन्टेगनियर और सिनूसी को नोबेल पुरस्कार से 1985 में सम्मानित किया गया। 1986 में पहली बार इस वायरस को एचआईवी यानी Human immunodeficiency virus वायरस का नाम मिला।

भारत में HIV का पहला केस

भारत में 1986 में पहली बार HIV का मामला सामने आया था। तब चेन्नई की रहने वालीं कुछ सेक्स वर्कर्स में इस संक्रमण की पुष्टि हुई थी। उस समय तक दुनिया के कई देशों में HIV पहुंच चुका था और भारत में भी इसकी एंट्री हो गई थी। HIV के संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है।

मध्य प्रदेश के रहने वाले एक्टिविस्ट चंद्र शेखर गौर ने एक RTI दायर की थी, जिसके जवाब में नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (NACO) ने बताया है, कि 10 साल मे भारत में 17 लाख से ज्यादा लोग असुरक्षित यौन संबंधों के कारण HIV की चपेट में आए हैं। NACO के मुताबिक, 2011 से 2021 के बीच 15,782 लोग ऐसे हैं जो संक्रमित खून के जरिए HIV पॉजिटिव हुए हैं। जबकि 4,423 बच्चे अपनी माँ के जरिए संक्रमित हुए हैं।

इसलिए यौन कार्य के दौरान या किसी और की संक्रमित सुई से करें परहेज

‘’सुरक्षा को दे प्रथम स्थान है,

इसका ना करो तुम बलिदान ।’’

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