कांतार वराह रूप की कहानी

'कांतारा' मूवी कन्नड़ से लेकर हिंदी दर्शकों तक अपनी बेहद खास जगह बना चुकी हैं। यह साउथ से लेकर बॉलीवु़ड में भी अत्याधिक आकर्षण का केंद्र बिंदु रही। इसका कारण एकमात्र यहीं रहा हैं कि इसने भारत के ऐसे हिस्से की संस्कृति तथा दैवीय रीति-रिवाज को उजागर किया जिससे काफी दर्शक अवगत नही थे। मूवी में स्थानीय लोगों की जमीनी समस्याओं, आस्था, दैवीय विधि- विधान , दिनचर्या के मुद्दों को उठाया गया हैं। ज़मीनी स्तर पर जुड़कर कर्नाटक के स्थानीय लोगों की आस्था की कहानी को दिखाया गया हैं जो पंजुरली देवता पर आधारित हैं। इस देवता को विष्णु के वराह अवतार का स्वरूप माना जाता हैं। स्थानीय लोगों की आस्था अपने देवता इतनी हैं कि वह मानते हैं कि उनके देवता जड़ ,जमीन तथा प्रकृति की रक्षा करेंगे। दक्षिण भारत में ऐसे बहुत से हिस्से हैं जहां दैवीय शक्तियों पर लोग अपनी आस्था रखते हैं और अपनी सभी समस्याओं का सामाधान उन पर छोड़ देते हैं। इस देवता का आह्वाहन भूता कोला अनुष्ठान के माध्यम से किया जाता हैं। अपनी कहानी में भारत के ऐसे ही हिस्सों की संस्कृति तथा दैवीय अनुष्ठान को उजागर करने वाले है। इसके अतिरिक्त पौराणिक मान्यताओं के आधार पर विष्णु के वराह अवतार की कहानी के विषय में बताने वाले हैं। 'कांतारा' मूवी ने लोगों तथा सरकार पर अपना जो प्रभाव छोड़ा हैं उसका भी उल्लेख करेंगे।
कांतार वराह रूप की कहानी

कांतार वराह रूप की कहानी

कांतारा मूवी कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में ही नहीं अपितु बॉलीवुड में भी धूम मचा रही हैं। फिल्म 30 सितंबर 2022 को रिलीज हुई थी। इसने रिलीज के साथ ही बड़ी उपलब्धि भी हासिल की। मात्र 16 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म के डायरेक्टर और लेखक ऋषभ शेट्टी हैं। इस फिल्म ने 20 ही दिनों में वर्ल्डवाइड 171.41 करोड़ के आसपास की कमाई की हैं। दर्शकों की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए इस मूवी को हिंदी में डब किया गया। यह मूवी दुनिया भर में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री की सूची में दूसरे नंबर पर हैं। इसके आगे नंबर एक पर केजीएफ पार्ट 2 और तीसरे नंबर पर केजीएफ पार्ट 1 हैं। इसके साथ ही यह मूवी साउथ फिल्म इंडस्ट्री में आठवें नंबर पर कमाई करने वाली हिंदी डब मूवी बन गई हैं। सर्वर्धिक रेंटिग प्राप्त करने वाली मूवी भी बन चुकी है। इस मूवी को आईएमडीबी पर 9.5 रेटिंग मिली है।

कम बजट में बनी इस मूवी को इतनी उपलब्धि इसलिए मिल पाई क्योंकि दर्शकों ने इस कहानी से भावनात्मक जुड़ाव महसूस किया हैं। भारत के ऐसे हिस्से की संस्कृति और अनुष्ठान को दर्शकों के समक्ष रखा गया जिसमें स्थानीय इलाके के लोग अपनी समस्याओं के निवारण हेतु पंजुरली देवता पर आश्रित हैं। लोगों की अखण्ड आस्था मूवी को दर्शकों के समक्ष जीवंत करने का कार्य करती हैं। दैवीय अनुष्ठान से संबधित रीति-रिवाजों अर्थात् भूता कोला को दिखाया गया हैं जो दर्शकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बिंदु रही हैं। अब तक भारत की ऐसी संस्कृति को किसी भी बॉलीवुड मूवी में नहीं दिखाया गया हैं। कर्नाटक के पिछड़े जंगलों में स्थानीय लोगों और जमींदार के बीच जमीनी जंग को दिखाया हैं जिसका अंत पंजुरली देवता फिल्म के अंत में करते है। फिल्म का यह अंतिम दृश्य ही दर्शकों के समक्ष रोंगटे खड़े करने का कार्य करता हैं। इस मूवी के स्टंट सीन, क्लाइमेक्स, चलचित्रण काफी प्रभावित करने वाले हैं।

वराह अवतार की कहानी

भगवान विष्णु के दस अवतारों में से उनका तीसरा अवतार वराह माना जाता हैं जिसका स्वरुप एक सूअर के समान है। सतयुग के अवतार वराह को लेकर कुछ पौराणिक मान्यता हैं। वराह अवतार से संबधित जानकारी विष्णु पुराण, स्कंद पुराण, ऋगवेद तथा भगवद् पुराण में मिलती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि कश्यप और आदिति के दो पुत्र थे जिनका नाम हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष था। इस कहानी का केंद्र बिंदु दैत्य हिरण्याक्ष था। इन्होंने बह्रमा को प्रसन्न कर विजय प्राप्ति का वरदान लिया। इस वरदान की सहायता से कोई भी व्यक्ति इस दैत्य को नहीं हरा सकता था । घमण्ड में चूर होकर हिरण्याक्ष देवताओं को परेशान करने लगा। यह उस आयाम की कहानी हैं जब ब्रह्माण्ड में जीवन की शुरुआत नहीं हुई थी। पूरे जगत में उस समय अंधकार था।

मान्यताओं के अनुसार यह परम्परा 500 साल पुरानी मानी जा सकती हैं। इस दैवीय अनुष्ठान को पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता हैं। इस अनुष्ठान में दैवीय आत्मा दैव नर्तकों के भीतर तब प्रवेश करती हैं जब वह नृत्य का प्रदर्शन कर रहे होते हैं। इसके लिए दैव नर्तकों को पारम्परिक वेशभूषा से तैयार किया जाता हैं। दैव नर्तक और उसकी पीढ़ी को लोगों द्वारा सम्मान की दृष्टि से देखा जाता हैं।

देवताओं को परेशान करने के लिए दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर समुद्र के भीतर छिपा दिया। देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण किया। जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान वराह को युद्ध के लिए आह्वाहन दिया। युद्ध के अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। तत्पश्चात् उन्होंने अपनी थूथनी की सहायता से पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। इसके पश्चात् उन्होंने पृथ्वी को उसके सही स्थान पर स्थापित कर दिया।

भूता कोला का इतिहास तथा स्थानीय लोगों में इसकी मान्यता एंव अनुष्ठान

भूता शब्द का अर्थ हैं दैवीय आत्मा तथा कोला शब्द का अर्थ हैं प्रदर्शन। इस प्रकार भूता कोला से तात्पर्य है दैवीय आत्माओं के प्रदर्शन से हैं। भूता कोला एक प्रकार से दैवीय आत्माओं का नृत्य हैं जिसे दैव नर्तकों अर्थात् किसी मनुष्य द्वारा प्रदर्शित किया जाता हैं। इन दैव नर्तकों की महत्वपूर्ण भूमिका कांतारा मूवी में भी देखी गई हैं। भूता कोला की बात की जाए तो यह दैवीय अनुष्ठान केरल तथा कर्नाटक के स्थानीय इलाकों में मनाया जाता हैं। तुल्लू बोले जाने वाले क्षेत्र जैसे- दक्षिण कन्नड़ (उदीपि तथा मंगलौर), उत्तर कन्नड़ जैसे क्षेत्रों में इनकी मान्यता देखने को मिलती हैं। इसके इतिहास की बात करें तो इसकी शुरुआत 700-800 ईसा पूर्व के आस-पास मानी जाती है।

इस प्रदर्शन को केवल रात के समय ही किया जाता है। इस नृत्य को लेकर रोचक बात यह सामने आती हैं कि इसमें दैव नर्तक आग से प्रदर्शन करते है। यह प्रदर्शन दैवीय आत्मा ‘दैव नर्तक’ के शरीर मे प्रवेश कर स्वंय करवाती है। दैवीय आत्मा और कोई नहीं बल्कि वराह रुप अर्थात् पंजुरली देवता हैं जो इस पूजा में लोगों की समस्याओं को सुनते हैं तथा इसका समाधान भी देते है। स्थानीय लोगों के लिए दैव नर्तक का समाधान पंजुरली देवता की आज्ञा के समान होता हैं। लोगों की मान्यता इस पूजा विधि-विधान में अटूट हैं।

    ** भूता कोला को लेकर सरकार का बड़ा कदम **

कांतारा मूवी का प्रभाव सरकार पर भी देखने को मिला है। कर्नाटक सरकार ने 60 वर्ष से अधिक की उम्र पूरी कर चुके दैव नर्तकों को 2000 रुपए तक का मासिक भत्ता देने का ऐलान किया हैं। लोकसभा सांसद पीसी मोहन ने अपने सोशल मीडिया पर ऐलान किया हैं।

दैव नर्तक के पारम्परिक वेशभूषा, स्त्रोत्

दैव नर्तक के पारम्परिक वेशभूषा, स्त्रोत् : कर्नाटक टूरिज्म

 वराह अवतार द्वारा दैत्य हिरण्याक्ष का वध

वराह अवतार द्वारा दैत्य हिरण्याक्ष का वध, स्त्रोत्: भास्कर न्यूज

भूता कोला में आग से प्रदर्शन करता हुआ एक नर्तक, स्त्रोत्

भूता कोला में आग से प्रदर्शन करता हुआ एक नर्तक, स्त्रोत् : नेट जियो ट्रैवलर

निष्कर्ष के रुप में कांतारा मूवी का प्रभाव कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री से लेकर बॉलीवुड में भी देखने को मिला। इसके साथ समाज में यह मूवी स्थानीय लोगों को उनकी संस्कृति और दैवीय पूजा को लेकर गौरवान्वित महसूस करवा रही हैं। भारत के इस कीमती पूजा विधान को आज के समय मे सभी अवगत हैं। वहीं दूसरी ओर कर्नाटक सरकार ने भी दैव नर्तकों की समस्याओं का मूल्य समझते हुए उनके वेतन का ऐलान किया हैं। कांतारा मूवी का समाज में अहम छाप छोड़ने में मददगार साबित हुई हैं।

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कर्नाटक सरकार का ट्वीटर पर बड़ा ऐलान, स्त्रोत् : ट्वीटर

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