क्रिसमस का उत्सव
भारत ही एक ऐसी जगह है, जहाँ अलग -अलग समुदाय के लोग रहते है और यहाँ अनेक त्यौहार बढ़ी धूम-धाम से मनाएं जाते है और उन्हीं में से एक बहुत ही प्रचलन त्यौहार है, क्रिसमस । भारत में यह फेस्टिवल न केवल ईसाई धर्म को मानने वाले बल्कि दूसरे धर्म के अनुयायी भी बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं। तो चलिए इस कहानी में क्रिसमस के इतिहास और उसकी परंपरा के बारे में जानते है ।
आज से डेढ़ हजार साल पहले जन्मे संत निकोलस को असली सांता और सांता का जनक माना जाता है। हालांकि संत निकोलस और जीसस के जन्म का सीधा संबंध नहीं रहा है, फिर भी आज के समय में सांता क्लॉज क्रिसमस का अहम हिस्सा हैं। उनके बिना क्रिसमस अधूरा सा लगता है। संत निकोलस का जन्म तीसरी सदी में जीसस की मौत के 280 साल बाद मायरा में हुआ। निकोलस बीजान्टिन एनाटोलिया के एक प्रान्त, लिसिया के एक ग्रीक ईसाई बिशप थे। निकोलस रईस परिवार से थे, जो हमेशा जरूरतमंदों की सहायता करते थे । उन्हें अपनी धार्मिकता और दया के लिए जाना जाता था।
मैरी का अर्थ आनंदित, खुशी होता है। मैरी शब्द जर्मनिक और ओल्ड इंग्लिश से मिलाकर बना है। साधारण शब्दों में समझे तो मैरी का अर्थ हैप्पी का होता है। लेकिन क्रिसमस में हैप्पी की बजाय मैरी शब्द का इस्तेमाल करते है।
क्रिसमस का नाम क्रिसमस क्यों पड़ा?
क्रिसमस ईसाई धर्म के संस्थापक जीसस क्राइस्ट के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। जीसस क्राइस्ट यानी ईसा मसीह को ईश्वर की संतान माना जाता है। क्रिसमस का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
क्रिसमस ट्री की शुरुआत हुई
1500 ईस्वी में सबसे पहले क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा जर्मनी में शुरु हुई थी। और 16वीं सदी में ईसाई धर्म के सुधारक मार्टिन लूथर एक बार 24 दिसंबर की शाम को एक बर्फीले जंगल से जा रहे थे। जहां उन्होंने एक सदाबहार पेड़ को देखा। पेड़ की डालियां चांद की रोशनी से चमक रही थी। और मार्टिन लूथर ने घर आकर एक सदाबहार का पेड़ लगाया।और पेड़ को छोटे- छोटे कैंडल से सजाया। जिसके बाद उन्होंने जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन के सम्मान में भी सदाबहार के पेड़ को सजाया । और इस पेड़ को कैंडल की रोशनी से प्रकाशित किया तबी से क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा शुरु हो गई । इसके बाद क्रिसमस ट्री को सबसे पहले अमेरिका में 1800 के दशक में बेचना शुरू किया।
कहते हैं कि क्रिसमस ट्री पर घंटिया लगाने और उसे खूबसूरती के साथ सजाने से घर से बुरी शक्तियां दूर रहती हैं।
प्रभु यीशु का जन्म 4-6 ई.पू. फिलिस्तीन के शहर बेथलेहेम में हुआ था। उनके माता और पिता दोनों नाज़ेरथ से आकर बेथलेहेम में बस गए थे। यहीं, प्रभु यीशु का जन्म हुआ था। उनकी माता का नाम मरियम और पिता का नाम यूसुफ था। यूसुफ पेशे से बढ़ई थे। ऐसा कहा जाता है कि परम पिता परमेशवर के संकेत पाकर यूसुफ ने मरियम से शादी की थी। प्रभु यीशु के जन्म से दो वर्ष पूर्व ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। उनका लालन-पालन उनकी माता मरियम ने किया था/
क्रिसमस क्यों मनाया जाता है
क्रिसमस ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व है। यह 25 दिसंबर को पड़ता है और इस दिन लगभग संपूर्ण विश्व मे अवकाश रहता है। क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था।
क्रिसमस मनाने की शुरूआत
कहा जाता है कि 336 ई. पूर्व में रोम के पहले ईसाई सम्राट के दौर में 25 दिसंबर के दिन सबसे पहले क्रिसमस मनाया गया, जिसके कुछ वर्षों बाद पोप जुलियस ने ऑफिशियली जीसस क्राइस्ट का जन्मदिवस 25 दिसंबर के दिन मनाने का ऐलान कर दिया। तब से पश्चिमी देशा में क्रिसमस को हॉलिडे मनाया जाने लगा। और आधिकारिक तौर पर 1870 में, अमेरिका ने क्रिसमस के दिन फेडरेल हॉलिडे की घोषणा की।
क्रिसमस का महत्व
क्रिसमस ना केवल ईसा या जीसस के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है, बल्कि इस त्यौहार का आध्यात्मिक महत्त्व भी है। ऐसा कहते हैं की जब ईसा मसीह का जन्म हुआ था, विश्व लालच, अज्ञानता, नफरत, और पाखंड से त्रस्त था। जीसस के जन्म ने विश्व में बदलाव की आंधी लायी और लोगों के जीवन सकारात्मक होने लगे। यीशु ने लोगों को भक्ति, पवित्रता, और आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाया। क्रिसमस का त्यौहार हमें सच्चाई और अच्छाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है। यह त्यौहार पूरे विश्व से अंधकार भगा कर रौशनी का प्रसार करता है। यीशु मसीह ने लोगों में आध्यात्मिकता का संचार किया और लोगों को सरल और विनम्र जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।
नवंबर का महीना खत्म होते होते और दिसंबर की शुरुआत में हवा में ठंडक बढ़ जाती है और शीत ऋतु की दस्तक सुनाई पड़ने लगती है। इसके साथ ही भारत में क्रिसमस पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती है। विश्व और भारत भर में क्रिसमस का उत्सव एक दिन पहले से ही शुरू हो जाता है। इस त्यौहार की पूर्व संध्या पर क्रिस्चियन मूल के लोग कई तरह के रस्में और परम्पराएं निभाते हैं। क्रिसमस से एक दिन पहले मिडनाइट मास चर्च सेवा होती है। जिसमें यीशु के गीत गाये जाते हैं। परिवार और दोस्त मिलजुलकर खाते पीते हैं, गीत गाते हैं, नृत्य करते हैं, और घर में कई तरह के केक, कूकीज, आदि बनाये जाते हैं।