तूतीनामा: एक तोते की दास्ताँ
चौदहवीं शताब्दी में ज़िया अल-दीन नखशाबी द्वारा फ़ारसी भाषा में लिखित 52 कहानियों का संग्रह तूतीनामा, 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मुग़ल शासक अकबर द्वारा 250 लघु चित्रों के रूप में दोबारा बनवाया गया था। यह एक प्राचीन परन्तु बहुत मनोरंजक कथा संग्रह है, वास्तव में तूतीनामा की अधिकांश कहानियां संस्कृत कथासंग्रह ‘शुकसप्तति’ से ली गई हैं।
‘शुकसप्तति’ संस्कृत कथा साहित्य का एक मत्त्वपूर्ण ग्रँथ है। ‘शुकसप्तति’ में शुक अर्थात एक 'तोते' के द्वारा सुनाई गई 70 कहानियां का संग्रह है, जिसमें एक तोता एक 'प्रभावती' नामक स्त्री, जिसका पति परदेश गया हुआ है, उसको परपुरषों के आकर्षणजाल से गलत राह पर जाने से रोकने के लिए सत्तर रातों तक सत्तर कहानियां सुनाता है। 70वे दिन जब उसका पति मदनविनोद घर वापस आता है तो उस 70वीं कथा के साथ ही ‘शुकसप्तति’ ग्रँथ समाप्त होता है।
‘शुकसप्तति’ के कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी प्राप्त हुए है, उनमें से एक अनुवाद चौदहवीं शताब्दी से पूर्व भारतीय भाषा में था. जो अपरिष्कृत अनुवाद था। उस अनुवाद को ज़िया अल-दीन नखशाबी ने देखा और उनका पुनः संपादन सन 1329 ईस्वी में "तूतीनामा" नाम से किया। ज़िया अल-दीन नखशाबी पेशे से एक चिकित्सक थे. जो ईरान से भारत आये थे और फ़ारसी भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। उसमें उन्होंने ‘शुकसप्तति’ ग्रँथ का तूतीनामा के नाम से रूपांतरण किया। उसमें कुछ प्रसंग जो फ़ारसी में अपरिष्कृत अनुवाद प्राप्त था, उसमें से कुछ हटाया और कुछ नए प्रसंगों को 'बेतालपञ्चविशतिका' से लेकर जोड़ा। इस तरह से तूतीनामा नाम का एक रूपांतरण तैयार हुआ।
तूतीनामा में 52 कथाएं है, जबकि मूल ‘शुकसप्तति’ में 70 कथाएं है। तूती का अर्थ भी 'तोता' होता है, जिसके माध्यम से यात्रा वर्तान्त यानि यात्रा की कथाएं बताई गई है। जबकि ‘शुकसप्तति’ में विभिन्न प्रकार की कथाएं बताई गई है। परन्तु कथावस्तु एक है और इस तूतीनामा का पूरा आधार ‘शुकसप्तति’ से ही लिया गया है। यद्यपि उसमें इन्होंने पात्रों के नामों में परिवर्तन किया है, स्थानों में भी परिवर्तन है लेकिन घटनाएं और कथ्य लगभग समान है।
तूतीनामा का शाब्दिक अर्थ ‘तोते की दास्ताँ’ है। तूतीनामा की 52 कहानियों का मुख्य कथावाचक एक विद्वान तोता मैमुनिस होता है जिसका मालिक व्यवसाय के कारण दूर परदेश गया हुआ होता है। मालिक की आज्ञानुसार 'खुजास्ता' नाम की उसकी पत्नी को अवैध सम्बन्ध बनाने से रोकने के लिए हर रात उसे एक नई कहानी सुनाता और उसे बाहर जाने से रोक लेता। यह प्रक्रिया पूरे 52 दिनों तक चलती रहती है, हर रात कथा का आरम्भ होता और अगला दिन शुरू होते ही कथा का अंत हो जाता है। 'खुजास्ता' का पति एक व्यापारी था जो काम के सिलसिले में घर से बाहर गया हुआ था। पति ने अपनी पत्नी को तोता और मैना की एक जोड़ी उपहार में दी थी। घर छोड़ कर ना जाने की सलाह देने पर क्रूर खुजास्ता ने मैना का गला दबा दिया। परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए तोते ने यह उपाय खोजा कि वह 52 रातों तक खुजास्ता को मनोरंजक कहानी सुनाएगा ताकि खुजास्ता का ध्यान कहानी पर लगा रहे और वह घर से ना भाग सके। ये कहानियाँ बुद्धिमता और हास्य से भरी होती थी।
इसके अतिरिक्त, बादशाह अकबर के समय में भी एक 'तूतीनामा' प्राप्त होता है जिसमें तूतीनामा की कथा के विषयों का चित्रांकन किया गया था। तूतीनामा के प्रसंगों के चित्र उसी तरह बनाए गए, जिस तरह रामायण और महाभारत के चित्र बनाये गए थे। सम्राट अकबर ने जो तूतीनामा तैयार करवाया था, जिसे 1556 ईस्वी में मोहम्मद कादरी के द्वारा तैयार किया गया था और इसके चित्रकार मीर सैयद अली और अब्द अल-समद थे।
अकबर ने न केवल ईरानी कलाकारों के माध्यम से लघु चित्रों के इस रूप को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तिगत संरक्षण प्रदान किया, बल्कि बड़ी संख्या में भारतीय कलाकारों को भी शामिल किया। , वे इस तरह के लघु चित्रों की स्थानीय शैलियों में अच्छी तरह से वाकिफ थे, जिन्हें शाही कार्यशालाओं में बनाया गया था। इस प्रकार तूतीनामा भारतीय, फारसी और इस्लामी शैलियों के एक अद्वितीय मिश्रण के रूप में विकसित हुआ । साथ ही, शास्त्रीय नृत्य और ईरानी वस्त्रों का प्रभाव भी इसके चित्रों में देखने को मिलता है व चटकऔर आकर्षक रंगों को भी तूतीनामा के चित्रों में देखा जा सकता है।
सन 1556 से 1605 के दौरान इन कलाकृतियों को मुगल लघु कलाकृतियों के रूप में जाना जाता है। ये कलाकृतियां वर्तमान में क्लीवलैंड म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट (Cleveland Museum of Art) और कुछ ब्रिटिश पुस्तकालय में भी देखी जा सकती हैं। इसकी एक प्रति उत्तर प्रदेश स्थित रामपुर की "रज़ा लाइबेरी" में भी प्राप्त होती है। इस तरह से अकबर का जो तूतीनामा है वो एक चित्रित तूतीनामा है जिसमें प्रसंगों के चित्र है। तूतीनामा की तीन विशिष्ट कला की चित्रकारियों के सम्मिश्रण ने अकबर के काल में बने लघुचित्रों में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की।