देवभूमि उत्तरांचल से उत्तराखंड बनने की नई राह
उत्तराखंड का शाब्दिक अर्थ उत्तरी भू भाग का रूपान्तर है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखंड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि कई प्राचीन धार्मिक स्थलों के साथ ही यह राज्य हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र मानी जाने वाली देश की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना का उद्गम स्थल है।
उत्तराखंड में केदारखण्ड (वर्तमान गढ़वाल) और मानसखण्ड (वर्तमान कुमांऊँ) का उल्लेख है। जहा पौरव, कुशान, गुप्त, कत्यूरी, रायक, पाल, चंद्र, परमार व पंवार राजवंश और अंग्रेज़ों ने बारी-बारी से यहाँ शासन किया था।
पौराणिक इतिहास के अनुसार
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार कुबेर की राजधानी अलकापुरी (बद्रीनाथ से ऊपर) बताई जाती हैं। राजा कुबेर के आश्रम में ऋषि मुनि तप व् साधना करते थे।। अंग्रेज इतिहासकरों के अनुसार हुण,शक,नाग,खस,आदि जातियां भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। इस क्षेत्र को देवभूमि व् तपोभूमि माना जाता हैं।
शंकराचार्य का उत्तराखंड आगमन
शंकराचार्य जब उत्तराखंड आये तब यहाँ कार्तिकेयपुर राजवंश / कत्यूरी वंश का शासन चल रहा था शंकराचार्य भारत के महान दार्शनिक व धर्म प्रवर्तक थे और उन्होंने हिन्दू धर्म की पुनः स्थापना के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उन्होंने भारत में 4 मठों की स्थापना करी थी।
शंकराचार्य द्वारा स्थापित 4 मठ:
- ज्योतिर्मठ, उत्तराखंड
- द्वारका पीठ, गुजरात
- श्रृंगेरी शरद पीठम, कर्णाटक
- गोवर्धन पुरी मठ, ओड़िसा
820 ईस्वी में इन्होंने अपने शरीर को केदारनाथ में त्याग दिया था।
अब बात करे उत्तराखंड जयंती को तो उत्तराखंड जयंती क्या है? तो ऐसा क्या हुआ की देवभूमि उत्तराखंड जिसमें महा पुरुषों ने जप -तप किए उसको उत्तर प्रदेश से अलग कर दिया गया ।
उत्तराखंड आंदोलन का इतिहास
उत्तराखंड उत्तर प्रदेश राज्य का एक भाग था। लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण उत्तर प्रदेश के इलाकों में विकास नही हो रहा था । विकास नही होने के वजह से ग्रामीण लोगों ने उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग करने की मांग की । मगर उस समय इस मांग को अनसुना कर दिया गया जिसके बाद लोग आन्दोलन पर उतर आए ।
भारत के आज़ाद होने से पहले ही उत्तराखंड को अलग करने की मांग जारी थी । सबसे पहले साल 1897 में को अलग राज्य बनाने की मांग उठी थी । उत्तराखंड को एक पृथक राज्य में महिलाओं की भूमिका अहम थी। उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिलने में कई वर्ष लग गए।
पृथक राज्य बनाने की होड़
हिमालय की गोद में स्थित गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र को मिलाकर एक पृथक राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम 5-6मई 1938 को श्रीनगर (गढ़वाल) में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठाई गई थी। स्थानीय नेताओं के इस मांग को अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहें जवाहर लाल नेहरू ने समर्थन किया था।
1938 में पृथक राज्य की मांग हेतु श्रीदेव सुमन ने दिल्ली में 'गढ़देश सेवा संघ' नाम से एक संगठन बनाया। बाद में इस संगठन का नाम 'हिमालय सेवा संघ' हो गया।
उत्तराखंड की सीमाएँ
उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे उत्तराखंड की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं।
पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं।
उत्तरांचल से उत्तराखंड का सफ़र
नौ नवंबर की तारीख इतिहास में उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर दर्ज हैं। पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर कई वर्षों तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को सत्ताइसवें राज्य के रूप में भारत गणराज्य के शामिल किया गया। वर्ष 2000 से 2006 तक इसे उत्तरांचल के नाम से पुकारा जाता था, लेकिन जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इसका आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। 15 अगस्त, 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य की घोषणा लाल क़िले से की।
1998 में केन्द्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उ.प्र. विधानसभा को उत्तरांचल विधेयक भेजा। उ.प्र. सरकार ने 26 संशोधनों के साथ उत्तरांचल राज्य विधेयक विधान सभा में पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्र सरकार ने 27 जुलाई, 2000 को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 को लोकसभा में प्रस्तुत किया जो 1 अगस्त, 2000 को लोकसभा में तथा 10 अगस्त, 2000 अगस्त को राज्यसभा में पारित हो गया। भारत के राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को 28 अगस्त, 2000 को अपनी स्वीकृति दे दी और इसके बाद यह विधेयक अधिनियम में बदल गया और इसके साथ ही लंबे समय से चली आ रही पृथक राज्य की मांग को स्वीकार करते हुए उत्तर प्रदेश के एक हिस्से को नया राज्य बनाया गया। और कई वर्षों के संघर्ष और कई बलिदानों के बाद 9 नवंबर, 2000 को उत्तरांचल राज्य अस्तित्व में आया जो अब उत्तराखंड नाम से अस्तित्व में है।