धनवान कुबेर भी हो गए थे कंगाल
# धनवान कुबेर भी हो गए थे कंगाल। **हिन्दू धर्म के अनुसार कुबेर को धन और वैभव का राजा माना जाता है। कहा जाता है कि आप अगर उनकी पूजा करते रहेंगे तो आपके घर में जीवन भर धन और वैभव कि कोई कमी नहीं होगी। पर क्या आप जानते हैं कि एक बार खुद कुबेर जी यहाँ हर चीज़ कि कमी हो गयी थी।**
दरअसल बात उस समय कि है जब कुबेर जी को अपने धनि होने पर घमंड आ गया था। ब्रहम्मा के आशीर्वाद से उनके पास किसी भी चीज़ कि कमी न थी। हर तरह का भोजन, हर तरह के आभूषण और न जाने क्या क्या उनकी सेवा में रखा रहता था। सोने कि लंका भी उन्ही कि हुआ करती थी वो तो आगे चलकर उनके सौतेले भाई रावण ने उनसे लंका छीन ली थी।
खूब धन होने के कारण उनका वैभव इतना उठ गया कि उन्होंने उसका प्रदर्शन करने के लिए शिव को भोजन पर आमंत्रित करने का विचार बनाया। सोच विचार कर अपने धन कि प्रदर्शन हेतु वो कैलाश पर्वत कि ओर चल देते हैं। वाहन पहुँच कर उन्हें पता चलता है कि भगवान शिव तो ध्यान लगाएं बैठे हैं। कुछ समय बाद भगवान् अपनी आँखें खोलते हैं और देखते हैं कि कुबेर आये हुए हैं। शिव उनके आने का कारण समझ जाते हैं।
फिर भी वह उनसे पूछते हैं कि कहो कुबेर कैसे आना हुआ। कुबेर कहते हैं भगवान मैं आपको अपनी सोने कि लंका में भोजन पर आमंत्रित करना चाहता हूँ। भगवान मुस्कुराते हैं और कहते हैं कि मैं तो नहीं आ पाऊंगा पर चूँकि तुम मुझे बुलाने यहाँ तक आये हो मैं अपने पुत्र गणेश को वहाँ भेज दूंगा।
कुबेर मन ही मन बड़े प्रसन्न होते हैं और वहाँ से चल देते हैं। वह सोचते हैं कि गणेश आएंगे और उनके धन, उनकी लंका को देख उनकी प्रसंशा करेंगे। तय दिन के आने पर भगवान गणेश अपने मुसक के साथ कुबेर कि लंका चल देते हैं। उधर कुबेर उनका स्वागत करने के लिए खूब तैयारियां करते हैं। अलग-अलग तरह के पकवान बनवाते हैं। जैसे ही गणेश वहाँ पहुँचते हैं तो कुबेर उनको लंका भ्रमण के लिए पूछते हैं।
भगवान गणेश बोलते हैं कि मैं तो यहाँ भोजन ग्रहण करने हेतु आया हूँ मैं लंका घूम कर क्या करूँगा। कुबेर ने तुरंत भोजन लगवाया और गणेश जी आसन पर ग्रहण हो गए। गणेश जी को भोजन बहुत प्रिय था जब तक वह अपनी माता पार्वती के हाथों का निवाला न खाते थे तब तक उनका पेट नहीं भरता था। कुबेर ने गणेश जी के लिए ५६ तरह का भोजन लगा दिया। भगवान गणेश ने भोजन ग्रहण करना शुरू किया और वो पल भर में सब चट कर गए।
कुबेर ने और भोजन लगवाया गणेश तुरंत उसे भी खा गए। कुबेर खाना लगवाते जाते और गणेश जी खाते जाते, बहुत देर तक ऐसा ही चलता रहा। देखते ही देखते गणेश कुबेर के यहाँ का सारा भोजन खा गए, कुबेर ने तुरंत बावर्चियों को काम पर लगाया लेकिन उसका कोई फायदा न हुआ।
बावर्ची जितना खाना बनाते गणेश उतना ही खा जाते। अंत तक आते आते उन्होंने वहाँ का सारा अन्न खत्म कर दिया। कुबेर समझ ही नहीं पा रह थे कि यह क्या हो रहा है। कहीं-कहीं तो ये भी कहा गया है कि भगवान गणेश ने उनके यहाँ के सारे आभूषण भी खा लिए थे। परेशान होकर कुबेर शिव के पास पहुंचे।
उन्होंने शिव को सब बताया। सारी बातों को ध्यान से सुनकर भगवान शिब ने कुबेर को पार्वती के बनाये एक हथेली चावल दिए और बोले कि जाओ ये जाकर गणेश को खिला दो। कुबेर के मन में आया कि इतने से चावल से कैसे उस बालक का पेट भरेगा? वापस जाकर कुबेर ने वैसा ही किया जैसा उन्हें बताया गया था। गणेश ने जैसे ही वो चावल खाये वैसे ही वो शांत हो गए और उनका पेट भर गया। उस दिन कुबेर को सीख मिली ऐसा भी क्या धन जो एक बालक का पेट न भर पाए।