नववर्ष बिखेरती है, खुशियों की सौगात
आज की हमारी जीवन शैली पर पश्चिम दुनियां का गहरा असर हैं। हम वजन, मुद्रा और गणना से लेकर तिथि और काल गणना भी पाश्चात्य परिपाटी के मुताबिक़ करते हैं। दुनिया के सबसे अधिक देशों में ईसाई नव वर्ष मनाए जाने की परंपरा है। ईसाई वर्ष 1 जनवरी से शुरू होकर 31 दिसंबर तक 12 महीनों में बंटा हुआ है।
1 जनवरी को नये साल के रूप में मनाने की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 में हुई थी। पहले ये कभी 25 मार्च तो कभी 25 दिसंबर को मनाया जाता था। सबसे पहले रोम के राजा नूमा पोंपिलस ने रोमन कैलेंडर में बदलाव किया और कैलेंडर में जनवरी को पहला महीना माना। बता दें कि इस बदलाव से पहले तक मार्च को पहला महीना माना जाता था। मार्च का नाम मार्स (mars) ग्रह पर रखा गया है। मार्स यानी मंगल ग्रह को रोम में लोग युद्ध का देवता मानते हैं। सबसे पहले जिस कैलेंडर को बनाया गया था उसमें सिर्फ 10 महीने होते थे। ऐसे में एक साल में 310 दिन और 8 दिन का एक सप्ताह माना जाता था।
रोमन शासक जूलियस सीजर ने कैलेंडर में बदलाव किया। और सीजर ने ही 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत की थी। जूलियस द्वारा कैलेंडर में बदलाव करने के बाद साल में 12 महीने कर दिए गए। जूलियस सीजर ने खगोलविदों से मुलाकात की, जिसके बाद पता चला कि धरती 365 दिन और छह घंटे में सूर्य की परिक्रमा करती है। इसको देखते हुए जूलियन कैलेंडर में साल में 365 दिन कर दिया गया।
लीप ईयर क्या है
पोप ग्रेगरी ने साल 1582 में जूलियन कैलेंडर में लीप ईयर को लेकर गलती खोजी थी। उस समय के मशहूर धर्म गुरू सेंट बीड ने बताया कि एक साल में 365 दिन, 5 घंटे और 46 सेकंड होते हैं। इसके बाद रोमन कैलेंडर में बदलाव किया गया और नया कैलेंडर बनाया गया। तब से ही 1 जनवरी को नया साल मनाया जाने लगा।
दिनों की गिनती में बचे 6 घंटे को लीप ईयर का कॉन्सेप्ट दिया गया। यही वजह है, कि हर 4 साल में यह 6 घंटे मिलकर 24 घंटे यानी कि एक दिन हो जाते हैं। इसी वजह से हर चौथे साल फरवरी को 29 दिन का किया गया और इस साल को लीप ईयर नाम से जाना जाता है।
भारत ही एक ऐसा देश है जहां एक साल में पांच बार नववर्ष मनाएं जाते है, और विश्वभर में नया साल मनाने के तरीके भी अलग-अलग है। सभी धर्मों में नया साल एक उत्सव की तरह अलग-अलग अंदाज में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। कोई नाच-गाकर तो कोई पूजा-अर्चना के साथ नए साल का स्वागत करता है।
हिंदू नववर्ष
हिन्दू नव वर्ष का इतिहास विक्रमादित्य के साथ जुड़ा हुआ हैं। आज से तकरीबन दो हजार वर्ष पूर्व विक्रमादित्य ने शको के भारत पर निरंतर हमलों को रोकने के लिए सभी राज्यों को एकता के सूत्र में बांधा और सन 57 ई पू में शकों को उनके ही घर अरब में मात देकर अभूतपूर्व विजय प्राप्त की थी।
इन्ही वीर विक्रमादित्य की विजय की याद में यह पंचाग चला जो कालान्तर में दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय तक चलता रहा।
ऐसी भी मान्यता है, कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अप्रैल में आती है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादी आदि नामों से भारत के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है।
ईसाई नववर्ष 1 जनवरी से
1 जनवरी से नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई। इसके कैलेंडर का नाम ग्रिगोरियन कैलेंडर है। जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर बनाया। तब से 1 जनवरी को नववर्ष मनाते हैं।
पारसी नववर्ष : नवरोज से
पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव मनाया जाता है। 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने नवरोज मनाने की शुरुआत की थी।
पंजाबी नववर्ष: होली से
पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होली के दूसरे दिन से नए साल की शुरुआत मानी जाती है।
जैन नववर्ष
दीपावली के अगले दिन से | जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत भी कहा जाता है। इसी दिन से जैनी अपना नया साल मनाते हैं।
नववर्ष अनके क्षेत्रों में अलग अलग नाम से मनाएं जाते है। लेकिन नववर्ष का मुख्य कार्य सिर्फ खुशियों की सौगात, उमंग और उत्साह को हर घर में फैलाना होता है ।