न्यीशी जनजाति: बहुपत्नी प्रथा, आध्यात्मिकता और पर्यावरण प्रेम

भारत में ऐसी बहुत-सी जनजाति है जिनकी खास परम्परांए, सभ्यतांए और संस्कृति लोगों को इनके बारें में जानने के लिए उत्सुक बनाती हैं। बहुत-सी जनजाति और कबीले ऐसे है जिनकी सभ्यता और संस्कृति आज भी जीवंत है। ऐसी ही एक न्यीशी जनजाति है जिसका संबध अरुणाचल प्रदेश से है और इस जनजाति में बहुपत्नी प्रथा को मान्यता प्राप्त है।
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न्यीशी जनजाति | स्त्रोत् : ट्रेवल हिप्पी

अरुणाचल प्रदेश के न्यासी जनजाति के लोग आज भी अपनी सभ्यता, परम्परा और संस्कृति को बनाए रखे हुए हैं। इस जनजाति की खास पोशाक, मान्यतांए, रहन-सहन इन्हें हमारे समाज में बेहद खास बनाते हैं। इनकी आध्यात्मिक तौर-तरीके बेहद अलग हैं जो हमारे देश की विविधता की खासियत को समेटे हुए हैं। न्यीशी जनजाति अरुणाचल के सुबनसिरी, निचले सुबनसिरी, कुरुंग कुमेय, पापुम पारे , पूर्वी कामेंग प्रांतों और अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के कुछ हिस्सों में बसी हुई हैं। सभी न्यीशी जनजाति के लोग पौराणिक रुप से अपना पूर्वज अबोटानी को मानते हैं। इनके पूर्वजों का संबध अरुणाचल और तिब्बत से है। इस जनजाति के लोग तिब्बती-बर्मन भाषा का प्रयोग करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस जनजाति के लोग आज भी अपने पूर्वजों की परम्पराओं को मानते हैं इस जनजाति के लोग आज भी बहुपत्नी विवाह को मानते हैं। यहां संयुक्त परिवार प्रणाली को मान्यता दी जाती है।

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न्यीशी जनजाति के पुरुषों की पोशाक |  स्त्रोत् :  लेंस कल्चर

आर्थिक स्तर पर अगर शहरी जीवनशैली से इन लोगों की तुलना की जाए, तो शिक्षा और बड़े स्तर की नौकरियों का इनके जीवन में अभाव है। ये लोग झूम खेती और जंगल में शिकार करके अपना जीवनयापन कर रहे हैं। इस के अलावा इस जनजाति की महिलांए बुनाई करती हैं जबकि पुरूष टोकरी बनाने का कार्य करते है। आज के समय में हस्तकला से संबधित कार्यों को इस जनजाति के लोग अपना रोजगार मानते हैं। इन लोगों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी समस्यांए आज भी एक चुनौती का विषय बना हुआ हैं जिस पर सरकार का ध्यान केंद्रित करना अंत्यत जरुरी है।

इनके वेशभूषा की बात की जाए तो इस जनजाति के पुरूष अपने बालों को सजा-धजा का रखना पंसद करते हैं। ये अपने बाल काफी लंबे रखते हैं और माथे के ठीक ऊपर बालों की लटों को एक टाइट गाँठ में बाँधते हैं। माथे के पास इनके गुंथे हुए बालों को 'पदुम' कहा जाता है। ये अपनी कमर के चारों ओर बेंत की पट्टियाँ पहनती हैं।  ये लोग बोपिया नामक टोपी भी पहनते हैं जो इनके लिए पक्षियों के देवता के साथ संबध का प्रतीक हैं। हॉर्नबिल नामक पक्षी के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए इनकी टोपी पक्षी की चोंच जैसी है और पंखों से सुशोभित है। इनकी लोककथाओं और पौराणिक कथाओं में इस पक्षी का आध्यत्मिक महत्व है।

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न्यीशी जनजाति की महिलांए | स्त्रोत् : इन्डिजनस  पीपल लिटरेचर

इनके धर्म और रीति-रिवाजों की बात की जाए तो इनका मुख्य धर्म ईसाई है। इसके पीछे इतिहास यह है कि 1970 के दशक में ईसाई मिशनरियों द्वारा अधिकांश न्यीशीयोंं को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया था। इनकी  मान्यता आपको हैरानी में डाल सकती है ये आत्माओं में विश्वास रखते है कि मृत्यु के बाद उसकी आत्मा 'पूर्वजों के गांव' में चली जाती है। ये पैतृक देवताओं के अलावा सूर्य और चंद्रमा की भी पूजा करते हैं। न्यीशी जनजाति के लोग नयोकुम नाम का त्यौहार हर साल फरवरी में पूरे उल्लास के साथ मनाते है। इस त्यौहार का उद्देश्य गांव के लोगों की समृद्धि की कामना करने के लिए, प्राकृतिक आपदाओं से अनाज की रक्षा करना है। इस जनजाति के पुरुष और महिलाएं इस समारोह में अपना पसंदीदा नृत्य रिकमपाडा करते हैं।

पर्यावरण संरक्षण के प्रति इनकी सद्भावना निस्वार्थ है। ये प्रोटेक्ट हॉर्नबिल्स प्रोजेक्ट के साथ जुड़े हुए हैं जिसका उद्देश्य हॉर्नबिल्स नामक पक्षी को लुप्त होने से बचाना है इसके गैरकानूनी शिकार और इनके आवास को बढ़ावा देना है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के खतरों से इनकी रक्षा करना है। हॉर्नबिल्स नामक पक्षी का इनके जीवन में आध्यात्मिक महत्व है इसे सम्मानित करने के लिए ये बोपिया नामक टोपी भी पहनते है। निष्कर्ष के रुप में कहा जा सकता है कि न्यीशी जनजाति के लोगों के जीवन में आज भी कोई परिवर्तन नहीं आया है। आज भी ये लोग अपनी परम्पराओं के साथ जुड़े हुए हैं। लेकिन सवाल ये है कि इनका संबध पिछड़े इलाकों से होने के कारण सरकार ने कभी इनकी मौलिक समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया और न ही इन्हें आधुनिकता की ओर ले जाने का प्रयास किया गया है। रोजगार, शिक्षा और व्यवसाय के स्तर पर ये लोग आज भी हशिये पर विराजमान हैं।

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