भोपाल गैस त्रासदी की याद में अभी भी घुटता भारत का दम

दुनिया को प्रदुषण से बचाना है, ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना है।। यह कहानी आपको ये बताएगी की कैसी इंसान की छोटी सी भूल कई हज़ार लोगों की ज़ान ले सकती है, उन्हीं में से एक कभी ना भूलने वाली बड़ी भूल भोपाल गैस त्रासदी है। जिसे हम भूल या गलती नही बल्कि लापरवाही कहेंगे जिसके कारण कई सारे लोगों और धरती को उसका कर्ज़ अब तक चुकाना पड़ रहा है ।
भोपाल गैस त्रासदी

भोपाल गैस त्रासदी

भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड मिथाइल आइसोसाइनाइट (MIC) नामक ज़हरीली के रिसाव के कारण हुई थी।

भोपाल गैस त्रासदी को दुनिया की अब तक की सबसे भीषण औद्योगिक आपदाओं में से एक है। इस दुर्घटना का असर सालों-साल तक चला था क्योंकि कैंसर और जन्म दोषों के काफी बढ़ गए थे।

यूनियन कार्बाइड कंपनी

यूनियन कार्बाइड की शुरुआत 1886 में हुई थी। उस वक्‍त यह कार्बन बनाने वाली कंपनी हुआ करती थी, लेकिन बाद में यह कंपनी कैमिकल इंडस्‍ट्री के क्षेत्र में उतर गई। इस क्षेत्र में उस समय जबर्दस्‍त होड़ लगी थी, जिसे ध्‍यान में रखते हुए चार कंपनियां एक साथ आईं और वर्ष 1917 में यूनियन कार्बाइड एंड कार्बन कॉर्प नाम की कंपनी का जन्‍म हुआ। नए नाम के साथ काम भी नया था। ऐसा काम, जो खतरनाक था, लेकिन डॉलर की चमक के आगे सब फीका पड़ गया।

1969 में स्थापित हुई यूनियन कार्बाइड

भोपाल में बसे जेपी नगर के ठीक सामने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 1969 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के नाम से भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली। इसके 10 सालों बाद 1979 में भोपाल में एक प्रॉडक्शन प्लांट लगाया। इस प्लांट में एक कीटनाशक तैयार किया जाता था, जिसका नाम सेविन था। सेविन असल में कारबेरिल नाम के केमिकल का ब्रैंड नाम था।

रिसाव का मुख्य कारण

इन रिसाव का मुख्य कारण दोषपूर्ण सिस्टम का होना था। दरअसल 1980 के शुरुआती सालों में कीटनाशक की मांग कम हो गई थी। इससे कंपनी ने सिस्टम के रखरखाव पर सही से ध्यान नहीं दिया। और कंपनी ने एमआईसी का उत्पादन नहीं रोका और अप्रयुक्त एमआईसी का ढेर लगता गया।

नवंबर 1984 में प्लांट काफी घटिया स्थिति में था। प्लांट के ऊपर एक खास टैंक था। टैंक का नाम E610 था जिसमें एमआईसी 42 टन था, जबकि सुरक्षा की नज़र से देखे तो एमआईसी का भंडार 40 टन से ज्यादा नहीं होना चाहिए था। और टैंक की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया गया था।

2-3 दिसंबर, 1984 की खौफनाक रात जिस दिन साइड पाइप से टैंक E610 में पानी घुसने के कारण टैंक के अंदर जोरदार रिएक्शन होने लगा जो धीरे-धीरे काबू से बाहर हो गया। और जंग लगे आइरन के अंदर एमआईसी पहुंचने से टैंक का तापमान बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था। इससे टैंक के अंदर दबाव बढ़ता गया।

इससे टैंक पर इमर्जेंसी प्रेशर पड़ा और 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन एमआईसी का रिसाव हुआ और टैंक से भारी मात्रा में जहरीली गैस बादल की तरह पूरे इलाके में फैल गई। गैस के उस बादल में नाइट्रोजन के ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, मोनोमेथलमीन, हाइड्रोजन क्लोराइड, कार्बन मोनोक्साइड, हाइड्रोजन सायनाइड और फॉसजीन गैस थी। जहरीले बादल के चपेट में भोपाल का पूरा दक्षिण पूर्वी इलाका आ गया।

राष्ट्रीय प्रदूषण रोकथाम दिवस को क्यों मनाया जाता है?

पेड़ लगाओं धरती बचाओं

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाना है। 2 दिसंबर को यह इसलिए मनाया जाने लगा क्योंकि, इस दिन भोपाल गैस त्रासदी हुई थी। जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई थी भोपाल गैस त्रासदी ने पूरी दुनिया को ये दिखाया कि कैसे प्रदूषण और पर्यावरण में जहरीली गैसों की उपस्थिति खतरनाक हो सकती है। इसलिए भारत में इस दिन को हमेशा याद रखने के लिए राष्ट्रीय प्रदूषण रोकथाम दिवस मनाया जाने लगा। यह दिन न केवल त्रासदी में अपनी जान गंवाने वाले लोगों के सम्मान में मनाया जाता है, बल्कि औद्योगिक आपदाओं या मानवीय लापरवाही से उत्पन्न प्रदूषण को रोकने के लिए भी मनाया जाता है। इस दिन भारत सरकार और गैर-सरकारी संस्था औद्योगिक आपदाओं के प्रबंधन और नियंत्रण के बारे में जागरूकता फैलाने का काम करते हैं। राष्ट्रीय प्रदूषण रोकथाम दिवस लोगों को और उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण अधिनियमों के महत्व को समझाने के लिए यह दिन मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य वायु, मिट्टी, ध्वनि और जल प्रदूषण जैसे प्राकृतिक संसाधनों की रोकथाम के बारे में जागरूकता फैलाना का भी है।

पोलीथीन का तुम करो बहिष्कार

अपने फ़ायदे के लिए

ना करो धरती का बलिदान ।।

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