मासिक शिवरात्रि
नाथों के नाथ भोलेनाथ, जो इस दुनिया के पालनहार हैं, जो आदि और अनंत हैं। इस धरती पर भगवान शिव एक नहीं बल्कि कई रूप में मौजूद हैं, जिनके कई नाम हैं। जहाँ कुछ लोगों के लिए भगवान शिव भोला भंडारी है तो कुछ लोगों के लिए कालों के काल महाकाल हैं।
हिन्दू धर्म में भोलेनाथ को सबसे बढ़कर माना गया है। इस संसार में सिर्फ शिव ही ऐसे भगवान हैं जिनकी लिंग और मूर्ति दोनों के रूप में पूजा होती है। बाकी सभी देवी-देवता को मूर्ति के रूप में पूजा जाता है। वैसे तो भक्तों के लिए हर दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए हर दिन खास होता है, लेकिन कुछ महीने और दिन भगवान शिव के लिए समर्पित हैं। जैसे सावन का महीना, महा शिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि। ऐसी मान्यता है कि इन खास दिनों में भगवान शिव की पूजा आराधना करने से खास फल की प्राप्ति होती है।
महा शिवरात्रि की महत्ता तो हम सभी जानते हैं। ये दिन भोलेनाथ की भक्ति के लिए बहुत खास माना जाता हैं । कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव अपने भक्तों पर खास कृपा करते हैं। ऐसा ही कुछ मासिक शिवरात्रि का दिन होता है। इस दिन भी सच्चे मन से भोलेनाथ की भक्ति करने पर उनकी खास कृपा प्राप्त होती है। इस खास दिन भक्त भोलेनाथ के साथ मां पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
मासिक शिवरात्रि यानी मास शिवरात्रि, हिंदू चंद्र कैलेंडर में सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है। चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा के घटते चरण (कृष्ण पक्ष) के दौरान ये तिथि पड़ती है। मतलब हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर शिवरात्रि मनाई जाती है। भक्त भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन व्रत रखते हैं। एक साल में 12 मासिक शिवरात्रि होती हैं और हर महीने का अपना महत्व होता है। हिंदू शास्त्रों केमुताबिक , फरवरी या मार्च के दौरान पड़ने वाली इन सभी 12 शिवरात्रि में महा शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण है।
मासिक या मासा शब्द का अर्थ है 'मासिक' और शिवरात्रि का अर्थ है 'भगवान शिव की रात । शिवरात्रि के दिन भक्त भगवान शिव की पूजा रात में करते हैं। भक्त पूरी रात जागरण कर भोलेनाथ की उपासना की है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से वैवाहिक जीवन में पैदा हो रही समस्याएं दूर हो जाती हैं। कहा जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति सच्चे मन से व्रत और पूजा करता है वो तनाव, क्रोध, ईर्ष्या, अभिमान और लालच से छुटकारा पा जाता है। वहीँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, अविवाहित लड़कियां भी इस दिन व्रत रखती हैं ताकि उन्हें एक आदर्श जीवन साथी मिल सके, तो वहीं विवाहित महिलाएं शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन के लिए ये व्रत रखती हैं।
मासिक शिवरात्रि में पूजा रात में होती है। चूंकि एक रात में 4 पहर होते हैं इसलिए चारों पहर में भोलेनाथ का दूध, दही, घी, शहद, से अभिषेक किया जाता है। इस दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। हम आपको बता दें कि पहला पहर सूर्यास्त के बाद शुरू हो जाता है। इसी के साथ शिव भगवान की उपासना भी शुरू हो जाती है। दूसरा पहर शुरू होता है रात के 9 बजे से और तीसरा पहर शुरू होता है मध्यरात्रि 12 बजे से। चौथा और अंतिम पहर सुबह तीन बजे से शुरू होता है और ब्रह्म मुहूर्त तक पूजा का समापन हो जाता है।
मासिक शिवरात्रि मनाने के पीछे कई किंवदंतियां हैं। पौराणिक कथाओं में भी इसका उल्लेख है। पौराणिक कथा के मुताबिक चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। वो जानवरों की हत्या करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। चित्रभानु ने एक साहूकार से कर्जा लिया था। वो कर्जा समय से चुका नहीं सका तो नाराज साहूकार ने चित्रभानु को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन मासिक शिवरात्रि थी। मंदिर में भोलेनाथ की पूजा हो रही थी। चित्रभानु ने ये सब देखा और तल्लीनता से शिवरात्रि व्रत की कथा सुनी। शाम होते ही साहूकार ने शिकारी को अपने पास बुलाया और ऋण को लेकर बात की।
शिकारी चित्रभानु ने अगले दिन पूरा ऋण लौटा देने का वचन दिया तो साहूकार ने उसे छोड़ दिया। शिकारी वहां से आया और अपनी दिनचर्या के मुताबिक जंगल में शिकार के लिए चला गया। बंदी गृह में रहने की वजह से वो भूख-प्यास से परेशान था।वो शिकार की खोज में बहुत दूर तक निकल गया। अंधेरा होने की वजह से उसे रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। उसने जंगल में ही रात बिताने का सोचा। वो जंगल में एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया और रात बीतने का इंतजार करने लगा। इसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जो बेलपत्र से ढाका हुआ था। शिकारी को इसकी जानकारी नहीं थी।
पड़ाव बनाते समय शिकारी ने बेल की जो टहनियां तोड़ीं, वो संजोग से शिवलिंग पर गिर गई।इसी तरह से इस खास दिन पर पूरे दिन भूखे-प्यासे रहने की वजह से शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गया। जब रात्रि का एक पहर बीत गया तभी एक हिरणी जो गर्भवती थी तालाब पर पानी पीने पहुंची।उसे देख शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर जैसे ही प्रत्यंचा खीचीं, हिरणी ने कहा- 'मैं गर्भिणी हूं। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, ये ठीक नहीं है। मैं तुमसे वादा करती हूँ कि अपने बच्चे को जन्म देकर जल्द ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब मुझे मार लेना।' शिकारी हिरणी की बात मान गया और उसे जाने दिया। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के समय कुछ बेल पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गया।
इस प्रकार शिकारी से अनजाने में ही पहले पहर की पूजा हो गई। कुछ समय बाद एक और हिरणी उधर से निकली जिसे देख शिकारी की ख़ुशी का ठिकाना न रहा।करीब आने पर शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया।उसे देखकर हिरणी ने बड़ी विनम्रता से निवेदन किया- 'हे शिकारी ! मैं कुछ देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूं। अपने साथी की खोज में इधर-उधर भाग रही हूं।अपने पति से मिलकर मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' चित्रभानु ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार हाथ में आकर निकल जाने से उसका माथा ठनका। रात का आखिरी पहर बीत रहा था और धनुष से लग कर कुछ बेल पात्र फिर शिवलिंग पर जा गिरा। इस तरह दूसरे पहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया। उसी समय शिकारी ने देखा कि एक और हिरणी अपने बच्चों के साथ जा रही है। उसने फिर धनुष पर तीर चढ़ाया और फिर हिरणी ने कहा कि अपने बच्चे को उसके पिता के पास छोड़कर वो उसके पास लौट आएगी।
शिकारी ने दया वश उसे जाने दिया। भूख-प्यास से परेशान शिकारी बेल पत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। सुबह होने को था तभी उसे एक हिरन दिखा। उसने अपनी प्रत्यंचा तान दिया जिसे देखकर हिरन ने कहा- यदि तुमने तीन हिरणियों और छोटे छोटे बच्चों को मार डाला है, तो तुम मुझे भी मारने में देर न करो। मैं उनका पति हूं। यदि उन्हें जीवनदान दिया है तो कुछ पल का जीवन मुझे दे दो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे पास लौट आऊंगा। शिकारी को फिर दया आ गई और वो उसे जाने दिया और इस तरह सुबह हो गई। अनजाने में ही शिकारी से शिवरात्रि का व्रत और पूजन ही गया। उसे तत्काल ही इसका फल भी मिल गया। शिकारी का मन निर्मल हो गया। उसके मन में दया का वास हो गया। जब हिरन और सभी हिरणिया उसके पास आई तो उसने सबको जाने दिया।