लंका के जलने का क्या था माता पार्वती से नाता?

हिन्दू धर्म की माने तो हनुमान के हाथों ही सोने कि लंका को भस्म किया गया था। पर ये बात यहिं तक सिमित नहीं है। सोने कि लंका का जलना काफी समय पहले से ही तय हो चूका था और इसका असली कारण थी माता पार्वती। माता पार्वती ने ही लंका का निर्माण करवाया था।
माता पारवती और रावण। स्रोत: https://i.timesnowhindi.com/

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रावण बहुत विद्वान था, कहा जाता है की वो एक अद्भुत पंडत भी था। उसके पिता का नाम ऋषि विश्रवा था।रावण ने कभी भी सोने कि लंका नही बनवायी थी बल्कि उसने तो ये लंका अपने सौतेले भाई कुबेर से हथियाई थी। असल में इसके पीछे एक कहानी है जो कि माता पार्वती और शिव से भी संबधित है ।

भगवान शिव शुरुवात से ही साधा जीवन व्यतीत करते थे और माता पार्वती ने अपना शादी से पहले का जीवन एक राजकुमारी कि तरह बिताया था। सभी देवताओं के पास अपना अपना एक धाम था। माता पार्वती के मन कि भी ये इक्छा थी कि वह भी एक भव्य महल बनवाएं और उसमे रहे।

एकबार जब माता लक्ष्मी शिव के पर्वत पर आयीं तो उन्होंने आश्चर्य होकर पार्वती से ये सवाल किया। माता पार्वती आप इतनी ठंड में यहाँ कैसे रहती हैं ? जबकि, आपने तो अपना जीवन एक एक राजकुमारी कि तरह बिताया है। ये सब सुनकर माता पार्वती को थोड़ा दुःख हुआ। माता लक्ष्मी बैकुण्ड धाम रहती थी उन्होंने पार्वती को अपने यहाँ आंमत्रित किया।

जब माता पार्वती लक्ष्मी के यहाँ पहुंची तो उन्होंने उनका वो भव्य महल देखा और अति प्रसन्न हुईं। महल देखकर पार्वती के महल बनाने कि इक्छा और बढ़ गयी।

माता पार्वती ने यह इक्छा शिव के आगे रखी। भगवान शिव ने उन्हें खूब समझाया पर माता पार्वती नहीं मानी। उनके न मानने पर भगवान शिव ने विश्वकर्मा को बुलाया। शिव ने सारी बात विश्वकर्मा को बतायी और एक सोने का भव्य महल तैयार करने को कहा। विश्वकर्मा शिव का आदेश पाकर अपने काम में जुट गए। उन्होंने कड़ी मेहनत कर एक बहुत खूबसूरत सोने का महल बनाया। ऐसा महल तीनो लोकों में नहीं था। सभी देवी देवतायें इस भव्य महल को देखने वहाँ पधारे थे।

खुद माता पार्वती को स्वर्ण महल खूब पसंद आया। आख़िरकार अब उनके पास अपना एक भव्य स्वर्ण महल था। माता पार्वती ने सभी को आमंत्रित करने का फैसला किया और स्वर्णमहल में वस्तुप्रतिष्ठा कि पूजा रखवानी चाहि। उन्होंने सभी देवी देवताओं, ऋषि मुनियों को पूजा में आमंत्रित किया। सोने कि लंका को खूब अच्छे से सजाया गया। सभी के स्वागत कि तैयारी कि गयी।

सभी ऋषि मुनि, देवी देवता वहाँ पधारे और सभी ने स्वर्ण महल को देख उसकी प्रसंशा कि। हर कोई सोने कि लंका देख बड़े खुश था। पूजा करने आये ऋषियों में से एक ऋषि थे विश्रवा। जो कि रावण के पिता थे। उन्होंने भी लंका को देखा। लंका को देख उनका मन थोड़ा भटक सा गया। वह पहले तो पूजा में लग गए। सभी प्रस्तुत देवी देवताओं ने पूजा में साथ दिया और जैसे ही पूजा ख़त्म हुई तो भगवान शिव ने ऋषियों को दक्षिणा देना शुरू किया।

जैसे ही ऋषि विश्रवा कि बारी आयी तो उन्होंने भगवान शिव से कहा कि भगवान मुझे दक्षिणा के तौर पर ये भव्य सोने कि लंका चाहिए। भगवान शिव ने कुछ नहीं बोला। माता पार्वती दंग रह गयी कि ऋषि ने ये क्या मांग लिया। भगवान शिव ने ऋषि विश्रवा का मान रखते हुए उन्हें सोने कि लंका दे दी। लेकिन क्रोधित पार्वती ने तुरंत ऋषि को यह श्राप दिया कि आपकी ये सोने कि लंका एक दिन जल कर राख हो जाएगी।

यही कारण था कि आख़िर में आकर रामायण में हनुमान के हाथों लंका दहन होती है।

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