वरदान का मान रख कर भी विष्णु जी ने किया एक असुर का वध

नरसिंघ अवतार विष्णु का एक ऐसा अवतार है जो की सभी अवतार में से खास है। नरसिंघ अवतार विष्णु का चौथा अवतार है, ये अवतार उन्होंने अपने भक्त के लिए लिया था, उनका भक्त प्रह्लाद एक जानलेवा संकट में था। ये संकट उसे किसी और से नहीं, बल्कि उसके अपने पिता हरिण्या कश्यप से ही था।
हरिण्यकश्यप का वध करते नरसिंघ रूप में विष्णु जी और उनको हार पहनाता भक्त प्रह्लाद। स्रोत: https://www.vcm.org.in/

हरिण्यकश्यप का वध करते नरसिंघ रूप में विष्णु जी और उनको हार पहनाता भक्त प्रह्लाद। स्रोत: https://www.vcm.org.in/

दरसल, बहुत समय पहले एक ऋषि हुआ करते थे। उनका नाम था ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी का नाम दिति था। ऋषि कश्यप और दिति के दो पुत्र थे, जिनमे से एक का नाम हरिण्याक्ष और दूसरे का नाम हरिण्यकश्यप था। दिति के दो पुत्र अमंगल कामना करने हेतु हुए थे, जिसके कारण दोनों पुत्र बड़े ही अधर्मी थे, ऋषि कश्यप को ज्ञात था की इनका वध करने के लिए विष्णु जी को अवतार लेना होगा।

दोनों पुत्र जन्म से ही पर्वत जैसे विशाल थे। हरिण्याक्ष ने सृष्टि में खूब आतंक मचाने के कारण, विष्णु के अवतार वराह को उसका वध करना पड़ा। दोनों पुत्रों के अलावा दिति की एक पुत्री भी थी जिसका नाम सिहिंका रखा गया। हरिण्याक्ष पुरे भ्रमांड पर राज करना चाहता था। उसका राज दक्षिण भारत पर था। हरिण्याक्ष अपने तीनो लोकों पर विजय पाने के ख्वाब में इतना आगे निकल गया था की उसने ब्रह्मा पर भी अजय पा ली थी और अमर वरदान भी हासिल कर लिया था।

विष्णु के अवतार वराह ने जब पृथ्वी को उठाकर समुन्द्र के ऊपर रख दिया तो उनका ध्यान हरिण्याक्ष पर गया। हरिण्याक्ष ने अहंकार में आकर विष्णु को ललकारा, आखिर में उसका वध हुआ। अपने भाई का वध देख हरिण्यकश्यप क्रोध से भर गया।

हरिण्यकश्यप ने ठान लिया की वो दुनिया जीत लेगा, उसने तीनो लोको पर राज करने का फैसला। भाई का बदला और भ्रमांड पर राज का फैसला बनाये, अहंकार से भरा हुआ हरिण्यकश्यप तपस्या करने बैठ गया। उसने बहुत घनघोर तपस्या करनी शुरू कर दी।

कहते हैं की अपने पूर्व जन्म में हरिण्यकश्यप और उसके भाई ने ब्रह्मा के पुत्रों का अपमान किया था और उनको परेशान भी किया था जिसके कारण उन्हें श्राप मिला की अगले तीन जन्म तक उनका जन्म राक्षश कुल में ही होगा और उनका वध भी विष्णु के ही हाथों होगा। ठीक श्राप के मुताबित दोनों भाइयों ने दैत्य के रूप में जन्म लिया।

हरिण्यकश्यप की तपस्या के दौरान देवताओ ने उसकी नगरी को हथिया कर वहां अपना साशन शुरू कर दिया। हरिण्यकश्यप की पत्नी का नाम क्याक्षु था। नारद मुनि ने उसे अपनी कुटिया में शरण दी। वहीँ पर उसने एक बालक को भी जन्म दिया जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। नारद मुनि की शरण में पलने के कारण प्रह्लाद भी विष्णु का ही भक्त हो गया।

इधर हरिण्यकश्यप की तपस्या का अंत आ गया था, ब्रह्मा ने उसे वरदान मांगने को कहा। हरिण्यकश्यप ने ब्रह्मा से माँगा की उसे कोई भी वो जीव न मार पाए जिसका निर्माण ब्रह्मा ने किया हो, न कोई मनुष्य मार पाए और न ही कोई जानवर, न तो उसका वध रात में हो और न ही दिन में, न तो वो किसी अस्त्र से मरे न ही किसी शस्त्र से, न ही वो आस्मां में मरे और न ही ज़मीन पर, इतना ही नहीं, न तो वो घर के भीतर मरे, न ही बाहर।

ब्रहम्मा से ये वरदान पाकर हरिण्यकश्यप और बलवान हो गया। वह उनका ग़लत इस्तेमाल करने लगा। उसने हर जगह आतंक मचा दिया, ऋषि मुनियों को बंधी बना लिया, पूजा पाठ में भंग डालना शुरू कर दिया, यहाँ तक की इंद्रदेव का आसन भी छीन लिया। उसने सभी को आदेश दिया की सब उसे भगवान समझें और पूजें।

हाल ये था की उसका अपना पुत्र, प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था, वह हमेशा उनकी भक्ति में लीन रहता। हरियनाकश्यप को यह बात ज़रा भी पसंद नहीं आयी। उसने प्रारम्भ में तो उसे डरा धमकाकर रोकना चाहा, लेकिन जब वो नहीं माना तो उसने उसपर जानलेवा अत्याचार करवाना शुरू कर दिया, वो कभी उसे ज़हरीले सांपों के बीच छोड़ देता तो कभी हाथियों से कुचल देने के षडयंत्रो को अंजाम देता।

अपने भक्त पर अत्याचार देख भगवान विष्णु उसे बचा तो लेते, किन्तु मन ही मन क्रोधित भी होते।

हरिण्यकश्यप की बहन होलिका को ब्रह्मा का वरदान था की अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। हरिण्यकश्यप ने उसे बोला की वो प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए जिससे की वह कहीं भाग भी न पाए। होलिका ने ठीक ऐसा ही किया वो प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गयी और फिर जो हुआ वो देखने लायक था, होलिका जिसे वरदान था की अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी अग्नि में धु धु करके जलने लगी, और विष्णु भक्त प्रह्लाद यूँ ही सुरक्षित बाहर आ गया।

दरसल, ब्रहम्मा ने होलिका का वरदान देते वक़्त कहा था की अगर इस वरदान का तुम ग़लत इस्तेमाल करोगे तो ये स्वंम ही काम नहीं करेगा।

उधर भगवान विष्णु प्रह्लाद पर हो रहे अत्याचार से तंग आ चुके थे। एक दिन हरियनाकश्यप क्रोध और अहंकार में प्रह्लाद से विष्णु के होने के प्रमाड़ मांगने लगा। भक्त प्रह्लाद ने निडर हो कर कहा की विष्णु तो हर जगह हैं। इसपर और क्रोधित होकर हरिण्यकश्यप ने एक खम्बे की ओर इशारा किया और पूछा क्या विष्णु इसमें भी हैं ? भक्त प्रह्लाद ने इसपर भी हामी भर दी।

फिर क्या था हरिण्यकश्यप ने वो खम्बा ही तोड़ दिया, जैसे ही उसने वो खम्बा तोडा उसमे से साक्षात विष्णु का नरसिंघ अवतार निकल आया। नरसिंघ का आधा शरीर मनुष्य का था और आधा शरीर सिंह का था। नरसिंघ हरिण्कश्यप को लेकर घर की चौखट पर जा पहुंचे और उसे अपनी गोद में रख, अपने पैने नाखूनों से उसका वध किया। यह सब शाम के समय हुआ था।

इस तरह से विष्णु ने हरिण्यकश्यप को मिले वरदान के अनुसार ही उसका वध किया।

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