संत प्रहलाद जानी: आध्यात्म और विज्ञान के रहस्य से जुड़ी एक कहानी
हमारे भारत में आध्यात्म एक विषय रहा है जिसे विज्ञान ने जितना सुलझाने का प्रयास किया उतना ही विज्ञान इस गुत्थी को सुलझाने में असर्मथ रहा। आध्यात्म की चमत्कारिक शाक्ति को केवल भक्ति से परिपूर्ण व्यक्ति ही समझ सकता है। आइए एक ऐसे संत की कहानी जानते है जिनकी आध्यात्मिक शाक्तियों का रहस्य वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए है।
संत प्रहलाद जानी जिन्हें चुनरी वाली माताजी के नाम से भी जाना जाता है, देवी अंबा की भक्ति में इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। दावा किया जाता है कि देवी अंबा की भक्ति के कारण ही इन्हें कुछ आध्यात्मिक शाक्तियां प्राप्त हुई। यह संत 80 वर्ष तक बिना खाए-पिए जीवित रहे थे। इसके अलावा इन्हें देवी अंबा के आशीर्वाद से दिव्य दृष्टि भी प्राप्त थी, लोगों की खतरनाक बीमारियों को पल-भर में दूर कर दिया करते थे। हमारे भारत में ऐसे कई संतों ने जन्म लिया है जिनके पास ऐसी अविश्वनीय और चमत्कारी आध्यात्मिक शाक्तियां हैं जिनके आगे विज्ञान ने भी अपने घुटने टेक दिए है। कहा जा सकता है कि विज्ञान चाहे कितना भी शक्तिशाली हो, भक्ति और आस्था के आगे हमेशा ही कमजोर रहता है। केवल ऐसा व्यक्ति ही आध्यात्मिक रहस्यों को जान सकता है जिसकी ईश्वर पर अटूट आस्था हो।
अगर आप भारत के छोटे गांव और कस्बों का भम्रण करेंगें तो आपको ऐसी आध्यात्मिक कहानियों के बारें में जानने का मौका मिलेगा, जिन्हें जानकर आपको हैरानी होगी। इसके अलावा ऐसे आध्यात्मिक संतों की शक्तियों के बारें में आपको जानकारी मिलेगी जिस पर शायद आप यकीन न कर पाएँ। ऐसे ही एक संत की कहानी है जिनके चमत्कार के किस्से पूरे गुजरात में मशहूर हैं।
प्रह्लाद जानी का जन्म 13 अगस्त 1929 को गुजरात के चावड़ा में हुआ था। उनके पांच भाई और एक बहन थी। महज दस वर्ष की आयु में ही उन्होंने आध्यात्मिक जीवन के लिए अपना घर छोड़ दिया था। जब वह अपना घर छोड़कर गए तो उनके मन में देवी अंबा के प्रति असीम भक्तिमय प्रेम की भावना जाग्रत होने लगी। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन कहा जाता है कि महज ग्यारह वर्ष की आयु में इन्होंने अन्न और पानी का त्याग कर दिया था। उन्होंने माउंट आबू समेत महाबलेश्वर में तपस्या की। कहा जाता है कि तपस्या के दौरान उन्हें माता के दर्शन हुए। माता इनसे प्रसन्न हुई और इन्हें आशीर्वाद स्वरुप चुनरी प्रदान की। तभी से इन्हें चुनरी वाली माताजी के नाम से भी जाना जाता है। माता की भक्ति का प्रभाव इनकी वेशभूषा में भी देखा जाता है, माता की तरह ही साड़ी, सिंदूर और नाक में नथ पहनते थे। वह पूरी तरह से माता की तरह श्रृंगार करते थे। पिछले पचास वर्ष से संत प्रहलाद जानी गुजरात के अहमदाबाद से 180 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर अंबाजी मंदिर की शेष नाग के आकार वाली गुफा के पास रहते थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि ये एड्स जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज सिर्फ एक फल की मदद से करते थे। इसके अलावा नि:संतान व्यक्तियों का भी इलाज भी किया करते थे।
वैज्ञानिकों ने भी इनकी अद्भुत शक्तियों का पता लगाने के लिए इन पर शोध भी किया लेकिन वे इनकी शरीरिक संरचना की सच्चाई नहीं जान पाए। प्रह्लाद जानी ने जिन वैज्ञानिकों को हैरानी में डाला था, उनमें देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी शामिल थे। वह प्रह्लाद जानी की अनूठी जीवनशैली का रहस्य जानने के लिए उत्सुक थे। इस रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए जानी के कई मेडिकल टेस्ट भी हुए। रक्षा क्षेत्र में काम करने वाली देश की जानी-मानी संस्था डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की टीम ने सीसीटीवी कैमरे की नजर में 15 दिनों तक 24 घंटे उन पर नजर रखी थी। यहां तक की उनके आश्रम के पेड़-पौधों का भी टेस्ट किया गया था। बावजूद उनका जीवन एक रहस्य बना रहा। इतने वर्षों तक उनके बिना कुछ खाए या पिये जिंदा रहने के दावे का बार-बार चिकित्सकीय और वैज्ञानिक परीक्षण किया गया, लेकिन कोई इस पहेली को सुलझा नहीं सका। मशहूर टीवी चैनल ने इन पर डॉक्यूमेंटरी भी बनाई है। इनके प्रशंसक एपीजे अब्दुल कलाम से लेकर पीएम मोदी तक रह चुके है।
संत प्रहलाद जानी के निधन की बात करें तो इन्होंने अपनी इच्छा से 26 मई 2020 को देह का त्याग कर दिया था। इस क्षण पर बहुत सारे भक्तजन भी मौजूद थे जिन्होंने इन्हें अंतिम विदाई दी।