घर में घुसकर मारेंगे भी और दुनिया के सामने शान से दहाड़ेंगे भी
माफ़ करने वाला भारत दुनिया ने देखा था, बदला लेने वाले भारत को पहली बार दुनिया ने देखा। दुश्मन की ज़मीन पर दुश्मन को चकमा देकर आतंकवादियों के ठिकाने को तबाह करके यह साबित कर दिया की यह नया भारत है !
18 सितम्बर 2016 देश के इतिहास के सबसे दुःखद दिनों में से एक था क्यूंकि देश ने उस दिन अपने 18 वीर जवानों को खोया। निहत्थे जवानों को जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों ने अपना निशाना बनाया। 18 वीर जवानों के परिवारों के साथ साथ उस दिन पूरा देश रोया था, लोगों का गुस्सा और आक्रोश चरम पर था। जैश ए मोहम्मद का ठिकाना पाक अधिकृत कश्मीर में था। पाकिस्तानी सेना का उन्हें पूरा सहयोग प्राप्त था इसमें कोई दोराहें नहीं थी लेकिन फिर भी भारत चुप रहा। पूरी दुनिया में किसी भी देश को या उनकी ख़ुफ़िया एजेंसी को ऐसी कोई खबर नहीं थी की भारत कोई जवाबी कार्यवाही करने वाला है।
शहीद जवानों के खून का बदला खून से लेने की योजना बनाई गई। योजना यह थी की भारत के कुछ जवान पाक अधिकृत कश्मीर में घुस कर दुश्मन(जैश ए मोहम्मद) के ठिकाने को बर्बाद कर देंगे। योजना बेहद ही खतरनाक थी क्यूंकि सेना को इसकी कोई खबर नहीं थी की वहाँ हालात कैसे होंगे, कितने आतंकवादी होंगे, उन आतंकवादियों के पास कितने हथियार होंगे और स्थिति उनके पक्ष में होंगी या नहीं इसलिए स्पेशल फ़ोर्सेस को इस काम का ज़िम्मा सौंपा गया जिनके पास मुश्किल परिस्तिथि में निर्णय लेने की क़ाबिलियत और असंभव परिस्तिथियों में भी जीतने का हुनर होता है। प्रधानमंत्री मोदी और मौजूदा रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को पहले से पता था की क्या, कब और कैसे होने वाला है। सीमा पार करने के लिए 28 सितम्बर का दिन चुना गया।
28 सितम्बर को भारतीय सेना के वीर जवानों को सीमा पार करने का आदेश मिल गया। दुश्मन का ठिकाना सीमा से दूर था लेकिन योजना को अंजाम देने के बाद लौटने के लिए जवानों के पास केवल 15 से 20 मिनट ही थे। योजना कितनी सफल होगी या असफल, यह पूरी तरह उन जवानों पर निर्भर था जो अपने जान की बाज़ी लगा कर दुश्मन को सबक सीखाने के मकसद से सीमा पार दुश्मन के इलाके में जाने वाले थे।
हमला करने के लिए दुश्मन के 3 ठिकाने चुने गए और तीनों पर हमला करने के लिए 3 टीम बनाई गई। आधी रात को वह अपनी तय किए गए दुश्मन के ठिकाने तक पहुँच गए। योजना यह थी की वह सुबह होने के बाद ही हमला करेंगे ताकि हमला करने से पहले जवानों को दुश्मन और दुश्मन के ठिकाने की सही जानकारी मिल सके। पहली टीम ने सबसे पहले सर्जिकल स्ट्राइक कर दी और सबसे पहले भारत लौटने में सफल रही। दूसरी टीम पर सुबह 4 बजे के करीब दुश्मन की ओर से फायरिंग होने लगी। उस समय कुछ पलों के लिए जवानों को लगा की सर्जिकल स्ट्राइक करने का समय आ गया है लेकिन जवानों ने संयम रखा और कोई जवाबी कार्यवाही नहीं की क्यूंकि जिस प्रकार से यह फायरिंग हो रही थी उससे जवानों को यह अंदाज़ा हो गया की इन गोलियों का निशाना वो नहीं है वह शांति से ज़मीन पर लेटे रहे और अपने वहाँ होने की भनक भी दुश्मन को नहीं होने दी। लगभग 1 घंटे के बाद फायरिंग रुक गई।
29 सितंबर को सुबह 6 बजे को भारतीय जवानों ने दुश्मन पर धावा बोल दिया। दुश्मन के ठिकाने पर गोला बारी शुरू हो गई, जब तक वह आतंकवादी समझ पाते की क्या हो रहा है भारतीय जवान अपने मकसद को पूरा कर चुके थे। हमले में कई आतंकवादी मारे गए और दुश्मन का ठिकाना पूरी तरह बर्बाद हो चुका था लेकिन बम धमाकों की आवाज़ से पाकिस्तान की सेना को भी खबर हो चुकी थी की कुछ हुआ है। जल्द ही उन्होंने यह भी पता लगा लिया की भारतीय सेना ने सीमा पार कदम रखा है।
तीसरी टीम अभी भी दुश्मन का ठिकाना तबाह करने में व्यस्त थी। उन्हें भारत की ओर से वापस लौटने का आदेश दिया गया क्यूंकि यदि वह कुछ और पल वहाँ रहते तो उन सभी की जान को खतरा हो सकता था। अब भारतीय सेना का केवल एक ही मकसद था अपने सभी जवानों के साथ सही सलामत, बिना किसी जवान को पीछे छोड़े अपने देश लौटना। पाकिस्तानी सेना उन पर फायरिंग कर रही थी। पाकिस्तानी सेना की गोलियां और बम उनके बेहद ही करीब से गुज़रे लेकिन जल्द ही भारतीय जवान अपने देश वापस लौट आए।
सेना के घर वापिस आते ही वो हुआ जिसकी उम्मीद खुद पाकिस्तान ने भी नहीं की थी। भारत ने खुद इस घटना की जानकारी पूरी दुनिया को इंटरव्यू के माध्यम से दी की भारत ने पाकिस्तान की सीमा में घुस कर वहाँ मौजूद आतंकवादियों के ठिकाने को बर्बाद कर दिया है।
इस सर्जिकल स्ट्राइक ने देश में पुनः जोश भर दिया। शहीद हुए जवानों की मौत का बदला उनके लिए देश की सबसे बड़ी श्रद्धांजलि थी। यदि 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक की तरह दुश्मन को जवाब मिलते रहे तो इसमें कोई दोराहे नहीं की भारत का कोई भी दुश्मन भारत के खिलाफ कुछ करना तो दूर भारत की ओर नज़र उठा कर देखने से भी कतराएगा।