दिल्ली सल्तनत की शुरुआत और महरौली
दिल्ली के 7 ऐतिहासिक शहरों में से एक है महरौली, जो अपने अंदर हज़ारों खंडहर समेटे हुए है और हज़ारों कहानियाँ भी!
शहीदों के सरताज
यह एक सिख गुरु की सहन शक्ति और एक मुग़ल सम्राट की क्रुरुता की कहानी है। यह गुरु अर्जन देव पर, मुग़ल सम्राट जँहागीर द्वारा किए गए जुल्मों की दास्ताँ है।
असली भारत गांवों में रहता है
यह देश के इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री की कहानी है जो प्रधानमंत्री के तौर पर कभी संसद नहीं गए। यह चौधरी चरण सिंह की कहानी है जिनके पास सत्ता तो आई पर शक्ति नहीं।
क्रांति का दूसरा नाम
क्रांतिकारी शब्द सुनते ही हम सबके मन में भगत सिंह का ही नाम आता है। पर क्या आपको पता है की ऐसा भी एक क्रांतिकारी था जिसके सामने भगत सिंह खुद के बलिदान को तुच्छ समझते थे। यह कहानी भगवती चरण वोहरा की है।
रोशनी हमारे बीच नहीं रही
इस दिन 1964 में देश को दूसरा सबसे बड़ा झटका लगा था। देश अभी तक गाँधी जी को खोने के दुख से उभर भी नहीं पाया था की देश ने अपना पहला प्रधानमंत्री भी खो दिया। पैरालिटिक अटैक और हार्ट अटैक के कारण हमने जवाहरलाल नेहरू जी को खो दिया।
मुख्यमंत्री का बॉलीवुड प्यार
यह एक ऐसे मुख्यमंत्री की कहानी है जिसका जन्म तो छोटे परिवार में हुआ था लेकिन उसकी मृत्यु छोटे परिवार में नहीं हुई थी। एक ऐसे मुख्यमंत्री जिसका राजनीति में जितना नाम हुआ उतना ही विवादों में भी। यह बॉलीवुड के जाने माने अभिनेता रितेश देशमुख के पिता की कहानी है!
हर मुश्किल से जीतने वाला आज जिंदगी से हार गया
आग में कूद कर अपने प्यार को बचाना हो, बेटे के ड्रग्स से छुटकारा दिलवाना हो या जेल से, लोगों के हज़ारों किलो मीटर की पैदल यात्रा हो, या फिर अपने असूलों के लिए सांसद के पद से इस्तीफा देना हो, सुनील दत्त कभी नहीं हारे लेकिन 2005 में आज के दिन वो जिंदगी से हार गए।
देवगढ़ रियासत की राजकुमारी
एक राजकुमारी जिसका जन्म महलों की चार दीवारी के अंदर घूँघट में रहने के लिए हुआ था लेकिन उन्होंने राजनीति की कठिन राह चुनी। लक्ष्मी कुमारी चूंडावत उन सभी के लिए एक सीख थी जो महिलाओं को कमज़ोर समझते थे।
जितना सुंदर नाम, उससे भी सुंदर कहानी
आम लोग हमेशा दूसरों की बनाई हुई राह पर चलते है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते है जो भीड़ से अलग अपनी एक राह बनाते है। कुछ लोग इस प्रयास में सफल होते है और कुछ असफल। असफल लोगों को लोग भूल जाते है लेकिन वो चुनिंदा सफल लोग अमर हो जाते है। मलयालम फ़िल्मों से पटकथा लेखक और निर्देशक पी.पद्माजारन उन्हीं कुछ चुनिंदा लोगों में से एक थे।
नाम से राजा, काम से राजा
एक योद्धा जिसकी न कोई सेना थी और न ही हथियार, फिर भी वो सबसे मुश्किल लड़ाई जीत गया। एक लड़ाई समाज की कुरीतियों के खिलाफ, एक लड़ाई समाज की कुप्रथाओं के खिलाफ और एक लड़ाई पूरे समाज के खिलाफ।