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दौलत सिंह कोठारी ने बतौर रक्षा सलाहकार, यूजीसी अध्यक्ष, और फिर जेएनयू में दस साल डीन रहकर अपना जीवन जिया। उन्होंने शिक्षा को लेकर कई अहम सुझाव दिए। उसकी अध्यक्षता में बना कोठारी आयोग आज भी चर्चित है। वे नेहरु की विज्ञान नीति के सदस्य भी रहे, जहाँ उन्होंने साथ सी.वी. रमन, होमी जहाँगीर भाभा और उनके गुरु मेघनाद साहा के साथ कमरा साझा किया। ऐसा कहा जाता है कि गांधी और लोहिया के बाद यदि भाषा को लेकर किसी ने ज़मीनी स्तर पर काम किया तो वे दौलत सिंह कोठारी ही थे।
भारतीय वैज्ञानिक-शिक्षाविद् दौलत सिंह कोठारी , जिनके एक निर्णय से भारतीय विद्यार्थियों का जीवन बदल गया
एक वैज्ञानिक, शिक्षाविद् और भाषाप्रेमी दौलत सिंह कोठारी चाँदी का चम्मच मुँह में रखे पैदा नहीं हुए थे। उदयपुर के एक बेहद सामान्य परिवार में जन्में कोठारी ने महाराणा की ओर से दी जाने वाली छात्रवत्ति से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। शुरूआती समय उदयपुर और इंदौर में गुज़ारने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मास्टर्स की। वहाँ उनकी पढ़ाई विश्व को ‘साहा समीकरण’ देने वाले प्रसिद्ध खगोलशास्त्री मेघनाद साहा की देखरेख में हुई। साहा समीकरण वही है जो तारों में भौतिकी और रसायनिकी की व्याख्या करता है। उसके बाद वे कैम्ब्रिज चले गए। जहाँ से अर्नेस्ट रदरफोर्ड के सानिध्य में अपनी पीएचडी पूरी की। नोबल पुरस्कार विजेता अर्नेस्ट रदरफोर्ड उनसे इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने उस समय दिल्ली विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर सर मोरिस ग्वायर को पत्र भेजा, जिसमें लिखा था – “मैं बिना किसी हिचक के कोठारी को कैम्ब्रिज में प्रोफ़ेसर के पद पर देख रहा हूँ। लेकिन, यह लड़का तो रुकना ही नहीं चाहता है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद ही अपने देश लौटना चाहता है।”
वे वाक़ई वहाँ नहीं रुके और भारत लौट आए। सन् 1940 में 34 की उम्र में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के भौतिक विभाग में प्रोफ़ेसर बन गए। बाद में, उसी विभाग के विभाग प्रमुख भी बने। इस बीच 1948 में वे रक्षा मंत्री के मुख्य सलाहकार के रूप में चुने गए। वे भारत के पहले रक्षा सलाहकार थे, जहाँ वे 1961 तक पद पर बने रहे। एक बार जब वे रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन के साथ साइबेरिया की यात्रा पर जा रहे थे तो यात्रा के दौरान कृष्ण मेनन और अन्य अधिकारीयों ने डी.एस.कोठारी से एक चुहल की। कृष्ण मेनन ने डॉ कोठारी से कहा – “साइबेरिया की ठण्ड से बचने के लिए आपको वोदका तो लेनी ही पड़ेगी कोठारी साहब, वरना मारे जाओगे।” इतना कहते ही विमान में हँसी फूट पड़ी। डॉ. कोठारी शराब और मांसाहार नहीं करते थे। उस चुहल पर डॉ कोठारी ने जवाब दिया – “आप मेरी चिंता न करें सर मुझे ज़ुकाम भी नहीं होगा।” साइबेरिया में चर्चा के बाद खाने के दौरान जब टोस्ट की रस्म में वोदका दी गई तो डॉ कोठारी ने अपने सामने रखे खाली गिलास में पानी भरा और अपना हाथ ऊपर कर बोले – “हमारी मित्रता के लिए जो कि इस एक्वा प्यूरा की तरह निर्मल और पवित्र है।” यह सब रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन और भारतीय अधिकारी देख रहे थे। जब सभी की नज़रे मिली तो चेहरे मुस्कराहट से भर गए।
रक्षा सलाहकार के बाद उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी संभाली और अपने जीवन के कुछ बेहद महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए। उन्होंने भारतीय सिविल परीक्षा में भाषा की समस्या को हल किया। उन्होंने स्नातकोत्तर तक अन्य भारतीय भाषाओं में भी परीक्षाएं आयोजित करने का सुझाव दिया जिसे अंततः सिविल सेवा परीक्षा में सरकार द्वारा लागू किया गया। उन्होंने परीक्षा केन्द्र भी बढ़ाने को कहा। ये दोनों सुझाव ऐसे थे जिसने भारतीय सिविल सेवा का रूप बदल कर रख दिया। दोनों फैसलों की वजह से ही सिविल सेवा सुदूर गाँवों-क़स्बों तक पहुँच पाई। जब 2013 में कोठारी आयोग की सिफारिशों के विपरीत भारतीय भाषाओं को सिविल सेवा परीक्षा से बाहर का रास्ता दिखाने का निश्चय किया तो निर्णय के ख़िलाफ़ पूरे हिन्दुस्तान ने आवाज़ उठाई। नतीजतन, सरकार को अपने निर्णय पर दुबारा विचार करना पड़ा।
जब डॉ कोठारी यूजीसी के अध्यक्ष बने तो सबकी सहमती से कैंटीन में शाकाहारी खाने की शुरुआत करवाई। उस दौरान जो भी उनसे मिलने आता तो वे किसी पाँच सितारा होटल की बजाए उसे यूजीसी की कैंटीन में ही खाना खिलाते। जब उनसे पुछा गया कि ऐसा क्यों तो उन्होंहे जवाब दिया – “हमें टैक्स पेयर्स के पैसों को फालतू के कामों में खर्च नहीं करना चाहिए।”
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