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सन् 1910 तक आते-आते भीलों ने अंग्रेजों के सामने तैंतीस मांगे रखी। जिनमें मुख्य रूप से अंग्रेजों और रजवाड़ों द्वारा करवाई जा रही बंधुआ मज़दूरी और लगान से जुड़ी मांगे थी। अंग्रेजों के अलावा वहाँ के स्थानीय ज़मींदार, सामंत भी इनका शोषण करने में पीछे नहीं थे। इसी के विरोध में गोविन्द दुरु ने भगत आन्दोलन शुरू किया था।
मानव अत्याचारों की दुनिया से
13 अप्रैल, 1919.
जगह जालियाँवाला बाग़, अमृतसर, पंजाब। इस घटना को शायद ही कोई भारतीय होगा जो नहीं जानता होगा। यह घटना भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की किताब का एक बहुत महत्वपूर्ण अध्याय रही है। हज़ारों की संख्या में आम लोग इस घटना से प्रभावित हुए और स्वतंत्रता संग्राम में उतरने का फैसला किया। ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों के हिसाब से इस बर्बर हत्याकांड में कुल 379 लोग मारे गए और 1200 से अधिक घायल हुए, लेकिन तत्कालीन अख़बारों के अनुसार मृत्यु का आंकड़ा 1000 के आसपास रहा था।
ऐसा ही दर्दनाक और वीभत्स हत्याकांड दक्षिणी राजस्थान में भी हुआ था। जो इतिहास के पन्नों में दूसरी घटनाओं के तले छुप गया। यह हत्याकांड जालियाँवाला बाग़ में हुए हादसे से भी बड़ा था। ‘मानगढ़ धाम हत्याकांड’ जालियाँवाला बाग़ हत्याकांड से क़रीब 6 साल पहले हुआ। मानगढ़ एक पहाड़ी का नाम है जहाँ यह घटना घटी थी। तारीख़ थी, 17 नवम्बर, 1913।
गोविन्द गुरु, एक सामाजिक कार्यकर्त्ता थे तथा आदिवासियों में अलख जगाने का काम करते थे। उन्होंने सन् 1890 ईस्वी में एक आन्दोलन शुरू किया। जिसका उद्देश्य था, आदिवासी-भील कम्युनिटी को शाकाहार के प्रति जागरूक करना और उन आदिवासियों में फैले नशे की लत को दूर करना। इस आन्दोलन का नाम दिया गया ‘भगत आन्दोलन’। इस दौरान भगत आन्दोलन को मजबूती प्रदान करने के लिए गुजरात से संप-सभा, जो एक धार्मिक संगठन था, उसने भी सहयोग देना शुरू कर दिया। संप-सभा, भीलों से करवाई जा रही बेगारी के ख़िलाफ़ काम करता था। इस आन्दोलन से अलग-अलग गाँव से कुल पाँच लाख के आसपास आदिवासी-भील जुड़ गए थे।
इस दौरान अंग्रेजो ने आख़िरी चाल और चली। इसमें उन्होंने जुताई के बदले साल के सवा रुपये देने का वादा किया जिसें आदिवासियों ने ठुकरा दिया। तब अंग्रेजों ने 15 नवम्बर, 1913 तक पहाड़ी को खाली कर देने का आदेश दे डाला।
उन्हीं दिनों एक घटना और घटी। हुआ यूँ के गठरा और संतरामपुर गाँव के लोग गुजरात के थानेदार गुल मोहम्मद के अत्याचारों से परेशान थे। उससे निपटने के लिए गोविन्द गुरु के सबसे नज़दीकी सहयोगी पूंजा धीरजी पारघी ने कुछ लोगो के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी। एक ही समय इन दो घटनाओं, पहाड़ी पर जमा होना और गुल मोहम्मद की हत्या, से अंग्रेजों को बहाना मिल गया।
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