विश्व रेडियोलॉजी दिवस
1901 में स्वीडिश अकादमी ने नोबेल पुरस्कार शुरू किए तो फ़िज़िक्स के लिए पहला नाम प्रो. विल्हम कॉनरड रोंटजन का चुना गया, जिन्होंने 8 नवंबर 1895 को अचानक एक्स-किरणों की खोज की थी। इसी ने इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर रेडियोलॉजी तक विज्ञान का एक नया संसार रच दिया।
इलेक्ट्रॉन की खोज 1897 में हुई। यह कहानी उससे दो साल पहले की है।
तब तक कैथोड किरणें वैज्ञानिकों की पकड़ में आ चुकी थीं लेकिन यह पता नहीं था कि ये इलेक्ट्रॉनों से बनी होती हैं। क्या ये किरणें काँच के आर-पार जा सकती हैं? जर्मनी के प्रो. विल्हम रोंटजन यही परख रहे थे। सामने कैथोड-रे ट्यूब थी। अचानक उन्होंने कुछ चमकता प्रकाश निकलते देखा। फिर कुछ प्रयोग किए। पाया कि ये नई किस्म की किरणें हैं। ये हड्डी जैसी कुछ ठोस चीजों को छोड़कर मानव शरीर से भी आर-पार चली जाती हैं।
उन्हें तुरंत कुछ नहीं सूझा तो इनका नाम एक्स-रे रख दिया। एक्स का मतलब अज्ञात। सात हफ्ते बाद दिसंबर 1895 में उन्होंने इस खोज का खुलासा किया तो वैज्ञानिक जगत में तहलका मच गया। इन्हीं एक्स-रे पर प्रयोग करते हुए दो साल बाद ब्रिटिश वैज्ञानिक सर जे. जे. थॉम्पसन ने इलेक्ट्रॉन की खोज की। उन्होंने ही बताया कि कैथोड किरणें इलेक्ट्रॉन से बनी होती हैं।
एक्स-रे को चिकित्सा विज्ञान ने तुरंत हाथोहाथ लिया। हड्डियों की जाँच होने लगी। फेफड़े देखे जाने लगे। शरीर में ट्यूमर इनसे जलाए जाने लगे। इसके साथ ही विज्ञान की एक नई शाखा रेडियोलॉजी का उदय हो गया।
इसलिए 1901 में पहली बार नोबेल पुरस्कार देने का फ़ैसला हुआ तो एक्स-रे की खोज के लिए प्रो. रोंटजन से शुरुआत की गई। और एक्स-रे के आधार पर इलेक्ट्रॉन खोजने वाले थॉम्पसन को 1906 में यह पुरस्कार मिला।
तब तक एक्स-रे की खूबियाँ ही देखी जा रही थीं। कुछ वैज्ञानिक भाँपने लगे थे कि यह रेडिएशन जीवन के लिए बड़ा खतरा भी है। फिर भी आम जीवन में इसका अनियंत्रित प्रयोग होने लगा। जैसे, अमेरिका में एक्स-रे मशीनें जूतों की दुकानों में रखी जाने लगीं। ग्राहकों को लुभाने के लिए कहा जाता था कि यहाँ अपने पैर का एक्स-रे कराइए और देखिए कि जूते कितने फिट हैं। एक्स-रे विकिरण घातक होने के वैज्ञानिक सबूत सामने आने पर यह दुरुपयोग रुका।
जैसे-जैसे विज्ञान ने तरक्की की, इलाज के नए-नए रूपों में रेडियोलॉजी का प्रयोग बढ़ गया। शरीर में अंदर फैल रहे कैंसर जैसे रोगों का पता लगाने से लेकर इलाज तक में।
आज रेडियोलॉजी के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। प्रो. रोंटजन के योगदान को याद रखने के लिए यूरोपियन सोसाइटी ऑफ रेडियोलॉजी ने पहली बार उनकी बरसी पर 10 फरवरी 2011 को यूरोपियन डे ऑफ़ रेडियोलॉजी मनाया। किंतु अगले साल इस संस्था के साथ-साथ अमेरिकन कॉलेज ऑफ़ रेडियोलॉजी और रेडियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका ने मिलकर विश्व रेडियोलॉजी दिवस बनाने की शुरुआत की। उन्होंने इसके लिए 8 नवंबर का दिन चुना। वह दिन जब एक्स-रे को पहली बार प्रो. रोंटजन ने पकड़ा था।
विश्व के कई संगठन अब इस आयोजन से जुड़ चुके हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की एक खबर के अनुसार, भारत में मध्य प्रदेश की रेडियोलॉजी एसोसिएशन तो 1996 से ही यह दिन मना रही है और इसका श्रेय इसके सचिव शिवकांत वाजपेयी तो जाता है।
विश्व रेडियोलॉजी दिवस हमें हर साल याद दिलाता रहेगा कि प्रयोगशाला में खोजी गई एक अज्ञात किरण ने किस तरह मानव जीवन को बदल कर रख दिया है।