सीता नहीं, वेदवती है रावण की मृत्यु के पीछे का कारण
वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही उस आगंतुक ने वेदवती को छूकर ज़ोर-ज़बरदस्ती करने की कोशिश की. अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के कारण वेदवती ग़ुस्सा हो गई और उन्होंने शाप दे दिया – “मैं अगले जन्म में रावण की पुत्री के रूप में जन्म लूंगी और तेरी मृत्यु का कारण बनूँगी.”
हमारे वेद-पुराण दिलचस्प कहानियों से भरे हुए हैं. एक ही घटना से कई कहानियाँ जुड़ी हैं. इतना ही नहीं, वे एक युग से दूसरे युग में भी यात्रा करती है. उसके साथ यात्रा करते हुए परत-दर-परत नयी कहानियाँ जुड़ने लगती हैं. शायद, इसलिए उन्हें सबसे बड़े कहानीकार का तमगा हासिल है. रावण और सीता की कहानी हम सभी ने सुनी है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि रावण और सीता की कहानी उससे भी पुरानी है. रावण की मृत्यु का कारण भी वही है. रामायण के सत्रहवे अध्याय ‘उत्तरकाण्ड’ में वेदवती से जुड़ी एक एक कहानी है -
राम और सीता से बहुत पहले एक ब्रह्मऋषि कुशध्वज हुए. वे गुरु ब्रहस्पति की संतान थे. ब्रह्मऋषि कुशध्वज और मालावती के बेटी हुई. ऐसा कहा जाता है वह लक्ष्मी का अंश थी. जब वह पैदा हुई तब वह रोई नहीं, रोने की जगह वह वेदमंत्रों का जाप करने लगी. यह देखकर कुशध्वज इतने ख़ुश हुए कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम ‘वेदवती’ रख दिया.
जैसे – जैसे वेदवती बड़ी होती गई वह भगवान विष्णु की भक्ति में उतरती गयी. कुशध्वज जानते थे कि वेदवती लक्ष्मी का ही अवतार है और उन्होंने घोषणा की कि भगवान विष्णु के अलावा और कोई वेदवती से शादी नहीं कर सकता. वेदवती ने विष्णु का ध्यान जारी रखा. ऐसा कहते हैं, लम्बे समय तक तप करने के बाद भी वेदवती की सुन्दरता में कोई कमी नहीं आई. एक दिन आकाशवाणी हुई कि अगले जन्म में तुम्हें विष्णु पति के रूप में मिलेंगे. लेकिन, वेदवती ने आकाशवाणी सुनने के बावजूद अपना ध्यान जारी रखा. वह और भी कठिन तपस्या के लिए गंधमादन पहाड़ पार चली गयी. एक दिन जब वे पूरी तन्मयता के साथ उपासना में लीन थीं, तभी उनके सामने एक आगंतुक आया. वह वेदवती की सुन्दरता देखते ही जड़ हो गया. वेदवती ध्यान में थीं. उस आगंतुक ने ध्यान भंग कर वेदवती को साथ चलने को कहा. वेदवती ने मना कर दिया. वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही उस आगंतुक ने वेदवती को छूकर ज़ोर-ज़बरदस्ती करने की कोशिश की. अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के कारण वेदवती ग़ुस्सा हो गई और उन्होंने शाप दे दिया – “मैं अगले जन्म में रावण की पुत्री के रूप में जन्म लूंगी और तेरी मृत्यु का कारण बनूँगी.” वह व्यक्ति और कोई नहीं ख़ुद रावण था. यह कहकर क्रोधित और दुखी वेदवती, वहीं योग की अग्नि में कूद गयी और अपने को समाप्त कर दिया.
त्रेतायुग में जब मंदोदरी ने एक बेटी को जन्म दिया तो रावण को वेदवती का शाप ध्यान हो आया. वह डर गया और उसने उस बच्ची को सागर में फेंक दिया. यह सब सागर की देवी वरुणी देख रही थी. रावण के जाने के बाद वरुणी ने उस बच्ची को पृथ्वी को सौंप दिया. पृथ्वी ने उस अबोध बच्ची को राजा जनक और रानी सुनैना के हाथ में रख दिया. वह बच्ची सीता कहलाई. कुछ समय बाद, सीता का विवाह अयोध्या के राजकुमार श्री राम से हुआ. श्री राम और कोई नहीं स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे. इस तरह सीता के रूप में जन्मी वेदवती अपनी भक्ति के कारण भगवान विष्णु को पति के रूप में पा लिया. लेकिन, अभी भी एक और घटना, जो सीधे वेदवती से जुड़ी थी, का होना बाक़ी था. वनवास के दौरान, त्रेतायुग में फिर सतयुग की घटना दुहराई. रावण ने दुबारा वन में एक अकेली स्त्री अपनी बुरी नज़र डाली. लेकिन, इस बार वेदवती की जगह सीता थी. वह नहीं जनता था कि इस घटना के साथ ही उसका अंत शुरू हो गया है. आख़िरकार, वेदवती के रूप में, सीता रावण की मृत्यु का कारण बनी.
भारतीय पौराणिक कथाएँ चक्र में विश्वास करती है. ऐसा कहते हैं - यह घटना हर युग में घटित हुई है. सतयुग में वेदवती के रूप में, त्रेतायुग में सीता के रूप में, द्वापर में द्रौपदी के रूप में और अब कलयुग में पद्मावती. अब यह समय बताएगा जब वह दुबारा उसी जगह लौटकर आएगा कि अगली कहानी किस रूप में बाहर आएगी!