जानकी देवी बजाज: जिन्होंने आराम का जीवन त्याग, ख़ुद को देश सेवा में लगा दिया.
एक अमीर परिवार में जन्मी और देश के सबसे बड़े उद्यमी परिवार में ब्याही जानकी देवी के सामने आराम की ज़िंदगी जीने का चुनाव खुला पड़ा था लेकिन, उन्होंने अपने पति जमना लाल बजाज के नक्श-ए-क़दम पर चलने का निश्चय किया और देश को आज़ाद करवाने में अपनी अहम भूमिका निभाई.
भारत की पहली महिला पायलट ‘उषा सुंदरम’ की कहानी
उषा सुंदरम ऐसा नाम है जिसे कम ही लोग जानते हैं. लेकिन, वह भारत की पहली महिला पायलट रही हैं. वे इतनी कुशल हवाई जहाज चालक थीं कि उस समय राष्ट्रपति से लेकर गृहमंत्री यहाँ तक कि मैसूर का राज-परिवार भी उन्हीं के साथ हवाई यात्रा पर निकलना पसंद करता था.
‘द ग्रेट गामा’ पहलवान जो अपनी ज़िन्दगी में एक भी कुश्ती नहीं हारा
कुश्ती भारत में आज से नहीं है. प्राचीन भारत का मल्ल-युद्ध जिसमें भीम को महारत हासिल थी, समय के साथ बदलता हुआ आज कुश्ती, दंगल और पहलवानी जैसे नामों से जाना जाता है. गामा पहलवान ऐसे ही दंगालबाज़ थे जिनसे विश्व के पहलवान खौफ़ खाते थे. यहाँ तक कि ब्रूस ली ख़ुद गामा पहलवान से अभ्यास की कुछ तकनीक सीख कर गए. यह उसी महान पहलवान ‘द ग्रेट गामा’ की कहानी है.
शकुंतला देवी: जिनके लिए गणित की गणनाएँ बाएँ हाथ का खेल थीं
शकुंतला देवी ने अपनी सांख्यिकीय गणनाओं से सभी को हैरान कर दिया था. बेहद कम उम्र में ही पिता द्वारा प्रतिभा को पहचाने जाने के बाद विश्व ने भी उनकी योग्यता का ससम्मान स्वागत किया. उन्हें ‘ह्यूमन कंप्यूटर’ भी कहा जाने लगा. वे पहली भारतीय थीं, जिन्होंने समलैंगिकों पर एक किताब लिखी.
बेगम अख़्तर: हिन्दुस्तान की मल्लिका-ए-ग़ज़ल
तवायफ़ की बेटी होने के कारण कई सालों तक अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी को भी लोग तवायफ़ समझते रहे। लेकिन, उनकी माँ मुश्तरीबाई ने कभी अपनी बेटी अख़्तरी उस रास्ते नहीं भेजा। वे तो गायकी की दुनिया से भी दूर रखना चाहती थी। लेकिन, होना कुछ और ही था। अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी, अपनी आवाज़ और गायकी से हिन्दुस्तान की मल्लिका-ए-ग़ज़ल कहलाई।
बे-सहारा लोक कलाकारों को छत देने वाले देवीलाल सामर
देवीलाल सामर ने उन लोगों आश्रय दिया जो धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रहे थे. यह देवीलाल सामर की दूरदृष्टि का ही कमाल था कि आज लोक कला मंडल विश्वभर में कठपुतली और उनके साथ जादूगरी करते कलाकारों के नाम से जाना जाता है.
अभेद्य रणथम्भौर दुर्ग जिसे कोई नहीं जीत सका
रणथम्भौर युद्ध से पहले, हम्मीर सिंह ने अपनी रानियों और राजकुमारियों को बोला - युद्ध के बाद अगर काले झंडे फहराने लगे तो केसरिया झंडे पहनकर जौहर कर लेना और केसरिया रंग आसमान में उड़ता दिखे तो समझ जाना जीत हो चुकी है. भयंकर युद्ध में खिलजी की हार हुई. लेकिन, वे तीन गद्दार सेनापति हाथ में काला झंडा लिए किले की तरफ़ दौड़ने लगे. यह देखकर किले में बंद स्त्रियों को लगा राणा की हार हो गयी है. तीनों सेनापतियों के पीछे राणा हम्मीर सिंह अपना घोड़ा लेकर दौड़े. लेकिन, देर हो चुकी थी. रानियाँ अग्नि जौहर और राजकुमारियाँ जल जौहर ले चुकी थी.
700 साल पुरानी फड़ चित्रकला और उसकी कहानी कहते भोपा-भोपी
फड़ चित्रकला राजस्थान के भीलवाड़ा शहर से निकली एक लोक कला है. यह धर्म से भी जुड़ी है और मर्म से भी. रात भर चलने वाला यह प्रदर्शन आज सीमित हो गया है लेकिन, जोशी परिवार ने प्रतिकूल समय में भी इस ख़ूबसूरत परंपरा को बचाए रखा है.
जानकी थेवर: जो 18 की उम्र में अपने ज़ेवर बेच कर आज़ाद हिन्द फ़ौज से जुड़ गयी
जानकी थेवर ने अपने पिता के विरुद्ध जाकर, मात्र 18 की उम्र में आज़ाद हिन्द फ़ौज से जुड़ गयी. एक ऊँचे परिवार में जन्मी जानकी के लिए सेना की ज़िन्दगी आसान नहीं थी. लेकिन, अपने जूनून के बल पर वे न सिर्फ़ झाँसी रेजिमेंट में चुनी गयी बल्कि सेकंड-इन-कमांड का पद भी हासिल किया. यह तब की बात है जब महिलाओं का घर से बाहर निकलना तक क्रांति समझा जाता था.
करणी माता का मंदिर जहाँ चूहों को भोग लगाया जाता है
एक समान्य घर में पैदा हुई करणी माता जल्दी ही स्थानीय लोगों में देवी के रूप में प्रचलित हो गयी. विवाह के बाद उनकी प्रसिद्धि और भी बढ़ती चली गयी. ऐसा कहते हैं, उनके वंश चूहों के रूप में उन्हीं के आसपास घूमते हैं.