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रामायण में एक ऐसी कहानी है जो सभी के दिलों को छू जाती है, जिससे हमें यह सन्देश मिलता है की भक्ति एक पवित्र रिश्ता होता है, खुद श्री राम ने ये सन्देश दिया था।
क्यों करती रही सबरी राम का इंतज़ार और किस तरह पहुंची वो कुटिया में अपनी ज़िन्दगी बिताने।
शाबर जाति का राजा (प्रमुख), जो भील जाति की एक उपजाति थी। उनके घर एक कन्या उत्पन्न हुई, जिसका नाम श्रमण रखा गया। शबरी बचपन में पक्षियों के साथ बातें किया करती थी, जो सभी के लिए आश्चर्य की बात थी। शबरी धीरे-धीरे बढ़ी होने लगी, लेकिन उसकी कुछ हरकतें भील जाती के प्रमुख और उनकी रानी की समझ से परे थीं। परेशान होकर भीलरानी और मुखिया ने एक ब्राहमण को सारी बात बताई। ब्राहमण ने सलाह दी की शबरी की शादी करा दी जाए। बस फिर क्या था, सभी उनकी शादी की तैयारी में जुट गए।
तैयारी के दौरान शबरी ने देखा की वहां बहुत सारे जानवर लाये गए हैं, शबरी ने इसका कारण जानना चाहा। शबरी को पता चला की इन सभी जानवरों की बलि दी जायेगी। यह बात उन्हें ज़रा भी पसंद नहीं आयी और उन्होंने सभी जानवरों को वहां से मुक्त कर दिया और खुद भी शादी से एक दिन पूर्व वहां से भाग निकली।
इसके बाद वो भाग कर ऋषिमुख पर्वत पहुंच गयी। शबरी वहां पर छुप कर रहने लगी क्यूंकि उसे लगता था की वो भील जाती की है जिस कारण से उसे ऋषि मुनि स्वीकार नहीं करेंगे किन्तु वो उनकी सेवा करना चाहती थी। वह रोज़ सुबह उठकर रास्ते में झाड़ू लगाती, वहां से काटें हटाती।
कभी उनके हवन के लिए लकड़ियां इक्कठा करती तो कभी फूल लाती, ऋषिमुनि रोज़ आश्चर्यचकित हो जाते की यह सब हो कैसे रहा है। एक दिन ऋषियों ने उसे देख लिया, कुछ ऋषियों ने उससे पूछा की वो कौन है? ऋषि मतंग ने जब उसकी कहानी सुनी तो उन्होंने उसे अपने यहाँ शरण दे दी।
समय बीतता गया और शबरी वही उनकी सेवा में जुटी रही, एक दिन जब ऋषि मतंग को एहसास हुआ की अब उन्हें अपना शरीर छोड़ना होगा तो उन्होंने शबरी को बताया की अब वह इस दुनिया से विदा लेने जा रहे हैं। शबरी अपने पिता के बाद उन्हें ही अपना पिता मानकर जीवन काट रही थी, शबरी ने कहा अगर आप भी चले जाएंगे तो मैं क्या करुँगी। ऋषि मतंग ने बताया की तुम्हे श्री राम का इंतज़ार करना होगा।
शबरी ने पूछा राम कौन हैं? और कहाँ मिलेंगे? तब मतंग ने कहा की राजा राम खुद तुम्हारे पास इस कुटिया में आएंगे तुम्हे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है।
शबरी अपने पिछले जन्म में एक महारानीं हुआ करती थी उनका नाम रानी परमहीसी था, एक बार राजा और रानी परमहीसी मेले में गए। रानी ने वहां देखा की सभी ऋषि मंत्र पढ़ रहे हैं और हवन कर रहे हैं, रानी का बड़ा मन हुआ की वो भी मंत्र पढ़ कर उनका हिस्सा बने उन्होंने इसकी आज्ञा राजा से मांनी, लेकिन राजा ने ये बोलकर मना कर दिया की वो महारानी है और वहां जाकर ये सब करना उन्हें शोभा नहीं देगा।
रानी को बहुत बुरा लगा, उन्हें बहुत रोना आया। रात को परमहीसी त्रिवेणी तट की ओर गयीं, वहां पर जाकर उन्होंने गंगा मैया का ध्यान लगाना शुरू किया और उनसे माँगा की, मैया मुझे अगले जन्म में रानी न बनाना। ये कहकर उन्होंने आज्ञा ली की वो गंगा में समाना चाहती है और फिर रानी परमहीसी गंगा में समा गयी। अगले जन्म में उन्होंने शबरी के रूप में जन्म लिया और ऋषि मुनियों की सेवा की।
महर्षि मतंग ने जैसा कहा शबरी बस वैसा ही करने लगी, वो रोज़ उठकर आँगन साफ़ करती, रोज़ बेर तोड़ कर लाती, वो नहीं चाहती थी की राम एक भी बेर फीका खाएं इसलिए वो रोज़ बेर को खुद खाती और वो अगर फीका होता तो उसे फ़ेंक देती, सभी मीठे बेर इकट्ठे करके वो राम का इंतज़ार करती। देखते ही देखते उनका शरीर भी जवाब देने लगा।
अब वो बूढ़ी हो चली थी, एक दिन उनको खबर आयी की दो सुन्दर बालक उन्हें धुंध रहे हैं, वो तुरंत समझ गयी की ये राम ही होंगे, उनके बूढ़े शरीर में मानो जान आ गयी हो, उन्होंने श्री राम का स्वागत किया। श्री राम सबरी का प्रयास और भक्ति देख अति प्रसन्न हुए। उन्होंने बेर खाने के बाद बोला की "कहे रघुपति सुन भामिनी बाता, मानहु एक भगति कर नाता."
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