अपराधों की दुनिया में एक मसीहा

जिस गुंडे को पकड़ने के लिए पुलिस अफसर ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी, उसकी कहानी सुन कर ऐसा क्या हुआ की वही अफसर उसकी जान बचाने की गुहार करने लगा। था तो वो डकैत ही फिर लोग उसकी पूजा क्यों करते थे !
अंग्रेजों की माल गाड़ी को लूटते हुए सुल्ताना डाकू की एक काल्पनिक तस्वीर; स्त्रोत: deviantart

अंग्रेजों की माल गाड़ी को लूटते हुए सुल्ताना डाकू की एक काल्पनिक तस्वीर; स्त्रोत: deviantart

अच्छाई और बुराई की कोई परिभाषा नहीं होती। हर किस्से के दो पहलु हो सकते है अगर आप की सोच अलग है तो इतिहास का एक किस्सा दोहराते है। किस्से को पूरा पढ़ने के बाद बताना की जिस अपराधी के अपराधों की दास्ताँ है ये , वो आपकी नज़र में अपराधी था भी या नहीं।

सुल्ताना डाँकू छोटे से कद का साँवला सा आदमी, देखने में बिल्कुल भी डरावना नहीं था लेकिन पूरी अंग्रेजी सरकार उसके नाम से थर थर कांपती थी। इसका सबसे बड़ा सबूत यह था की उसे गिरफ्तार करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने 300 सिपाहियों की एक टोली भेजी थी जिसमे 50 घुड़सवार भी थे। बहुत कोशिशों के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन हैरानी की बात यह थी की जिस पुलिस अधिकारी ने उसे गिरफ्तार करवाया उसी ने कई प्रयास किये उसे माफ़ी दिलवाने की , कठोर सज़ा से बचाने की लेकिन वो नाकामयाब रहा। पर ऐसी कौन सी वजह थी की जिस अफसर ने अपनी जान पर खेल कर उस डाँकू को गिरफ्तार करवाया था वही अफसर अब उसकी माफ़ी के लिए सरकार और जज से विनती कर रहा था।

अफसर का नाम था फ्रेडी यंग। वह ब्रिटिश मूल के थे , जब लम्बे समय तक स्थानीय पुलिस उन्हें पकड़ने में असफल रही तब उन्हें ख़ास तौर पर सुल्ताना को पकड़ने के लिए बुलाया गया था। लेकिन जब फ्रेडी यंग ने उनकी कहानी सुनी तो वह उनकी नज़र में एक हीरो बन गए।

जिम कॉर्बेट ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘माई इंडिया’ के अध्याय ‘सुल्ताना: इण्डियाज़ रोबिन हुड’ में सुल्ताना के चरित्र का आकलन करते हुए एक जगह लिखा है: “एक डाकू के तौर पर अपने पूरे करियर में सुल्ताना ने किसी निर्धन आदमी से एक कौड़ी भी नहीं लूटी। सभी गरीबों के लिए उसके दिल में एक विशेष जगह थी। जब जब उससे चंदा माँगा गया उसने कभी इनकार नहीं किया, और छोटे दुकानदारों से उसने जब भी कुछ खरीदा उसने उस सामान का हमेशा दो गुना दाम चुकाया।”

ऐसा भी क्या था उनकी कहानी में की फ्रेडी इतना भावुक हो गए थे ,अपराधियों से मिलना उनकी दुःख भरी बातें सुन्ना तो उनका रोज़ का काम था तो अब क्या नया हो गया था। चलो माना की वह सिर्फ अमीरों को लूटता था, गरीबों को नहीं। जब भी कोई गरीब उनके पास चंदा मांगने आता था तो कभी खाली हाथ नहीं जाता था। था तो वह एक डाँकू लेकिन जब भी किसी गरीब से कुछ ख़रीदता था तो उसे उसकी दो गुनी कीमत देता था। चोरी करता था लेकिन जिसके घर में चोरी करने वाला होता था उसे पहले से चिट्ठी भेज कर सूचित कर देता था की उसके साथ क्या होने वाला है। इतने उसूल तो पुलिस वालों के भी नहीं होते।

लेकिन फिर भी था तो एक डाँकू ही। हाँ ये बात अलग है की किसी औरत के साथ कभी कोई बदतमीज़ी नहीं की ,ज़्यादातर अंग्रेज़ो की माल गाडी को लूटता था जो देश को कई सालों से लूट रहे थे। गरीबों की हर परेशानी का हल बन गया था और हर अमीर की परेशानी की वजह। अमीरों का दुश्मन गरीबों का मसीहा बन गया था। जितनी उंगलियाँ उसके खिलाफ़ नहीं उठती थी उससे कहीं गुना ज़्यादा हाथ उसे आशीर्वाद देने के लिए उठते थे। पर इन सब बातों से इस सच को तो नहीं बदला जा सकता की उसके खिलाफ कई मुक़दमे दर्ज थे जिनके लिए उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए थी। वो डकैत अपनी मर्ज़ी से नहीं बना था बल्कि इन्हीं अमीरों ने उससे उसका सब कुछ चीन लिया था।

ना जाने क्यों फ्रेडी को इतना दुःख हो रहा था उन्हें सज़ा दिलवाकर। उन्होंने तो एक बहुत बहादुरी का काम किया था जिसके लिए उन्हें प्रमोशन भी मिला था। फिर भी फ्रेडी खुश नहीं थे। लेकिन हर अंग्रेज़ फ्रेडी तो नहीं हो सकता था ना। आखिरकार कोर्ट ने सुल्ताना को उसके किये की सज़ा दे ही दी। 7 जुलाई 1924 उनकी फांसी का दिन था। एक आखरी इच्छा थी सुल्ताना की, कि उसका 7 साल का बेटा अच्छी पढ़ाई करे और डांकू ना बने।

सुल्ताना तो सूली पर चढ़ गया पर पीछे छोड़ गया उस पछतावें को जो फ्रेडी को जीने नहीं दे रहा था। फ्रेडी सुल्ताना को तो बचा नहीं पाया पर उससे किया हुआ वादा उसने उम्र भर निभाया। सुल्ताना के बेटे को पढ़ने के लिए उसने इंग्लैंड भेजा और उसके पिता के नाम की वजह से कोई उसे परेशान ना करे इसलिए उसे अपना नाम दिया। जब वह लड़का पढ़ लिख कर भारत आया तो वह एक बड़ा पुलिस अधिकारी बना।

सुल्ताना की मौत के बाद उसे याद करते हुए जिम कॉर्बेट ने ‘माई इंडिया’ के अध्याय ‘सुल्ताना: इण्डियाज़ रोबिन हुड’ में यह भी लिखा है – “समाज मांग करता है कि उसे अपराधियों से बचाया जाए, और सुल्ताना एक अपराधी था। उस पर देश के कानून के मुताबिक़ मुकदमा चला, उसे दोषी पाया गया और उसे फांसी दे दी गयी। जो भी हो, इस छोटे से आदमी के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है जिसने तीन साल तक सरकार की ताकत का मुकाबला किया और जेल की कोठरी में अपने व्यवहार से पहरेदारों का दिल जीता।”

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