असली भारत गांवों में रहता है
यह देश के इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री की कहानी है जो प्रधानमंत्री के तौर पर कभी संसद नहीं गए। यह चौधरी चरण सिंह की कहानी है जिनके पास सत्ता तो आई पर शक्ति नहीं।
यह उस समय की बात है जब देश में इंदिरा विरोधी लहर चल रही थी। हर कोई इमर्जेंसी लागू करने के फै़सले को लेकर इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहा था। कई दिग्गज नेता भी इस विरोध में शामिल थे। उनमें से एक उस समय जनता पार्टी के सबसे बड़े किसान नेता चौधरी चरण सिंह भी थे।
चौधरी चरण सिंह इंदिरा गांधी के फैसले के इतने खिलाफ़ थे की हर हाल में उन्हें जेल भेजना चाहते थे।
चौधरी साहब में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण मौजूद थे। वो शिक्षित थे, राजनीति का अच्छा अनुभव उनके पास था, किसानों का भारी समर्थन भी उन्हें प्राप्त था लेकिन यदि उन्हें कुछ नहीं आता था तो वह था ढोंग, नाटक और छल। वह एक ईमानदार और साफ़ दिल के व्यक्ति थे। जो उनके दिल में होता था वही उनकी ज़ुबाँ पर होता था। लेकिन यह उनकी ताक़त नहीं सबसे बड़ी कमज़ोरी थी।
राजनीति में हर शब्द सोच समझ कर बोलना होता है क्योंकि आपकी ज़ुबाँ से निकला एक ग़लत अल्फाज़ आपकी छवि को ख़राब कर सकता है लेकिन चौधरी साहब को जैसे यह कला आती ही नहीं थी। जब भी कोई पत्रकार उनसे सवाल पूछता तो वह बड़े खुले शब्दों में उसको जवाब दे देते थे। जिनके लिए उनकी अत्यधिक निंदा भी होती थी।
एक दिन जब एक पत्रकार ने चौधरी साहब से सवाल पूछा कि क्या आप प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत उत्सुक है? तो यह सवाल सुन कर चरण सिंह को गुस्सा आ गया और वह बोले कि मैं इस देश के प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जरूर करता हूं लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैं मोरारजी देसाई को उनके पद से हटाने के लिए षड्यंत्र कर रहा हूं, चरण सिंह यहां पर ही नहीं रुकें उन्होंने कहा कि एक दिन मोरारजी देसाई मरेंगे उसके बाद मैं प्रधानमंत्री बन जाऊँ तो इसमें क्या बुराई है।
देश का प्रधानमंत्री बनना उनका सपना था जो एक दिन सच भी हुआ। लेकिन जब वो प्रधानमंत्री मंत्री बने तो उनके इस फै़सले की बहुत निंदा हुई क्योंकि जिस इंदिरा गांधी का वो विरोध करते थे, जिस इंदिरा गांधी को वह जेल भेजना चाहते थे उसी इंदिरा गांधी का समर्थन लेकर वह प्रधानमंत्री बने।
लेकिन केवल 1 महीने के भीतर ही कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह से अपना समर्थन वापस ले लिया और देश में दोबारा चुनावों का ऐलान हुआ। अगले चुनावों में कांग्रेस को बहुमत प्राप्त हुआ और इंदिरा गांधी पुनः देश की प्रधानमंत्री बनी।
इंदिरा गांधी को लोगों ने सिर्फ इसलिए वोट दिया क्योंकि वो एक स्थायी सरकार चाहते थे। जनता पार्टी टूट चुकी थी, आधिक्तर बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी और जो बचे थे वो आपस में लड़ते रहते थे।
इंदिरा और नेहरू को कोई हमदर्दी नहीं थी देश के किसानों से, किसानों के साथ उनका कोई सामाजिक रिश्ता नहीं था, देश के बड़े घरों में पैदा हुए, विदेशों में पढ़ाई की इसलिए जानबूझ कर या अनजाने में देश की सेवा कर नहीं पाए ~ चौधरी चरण सिंह।
चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा तो ज़रूर हुआ लेकिन सिर्फ नाम के लिए। लेकिन फ़िर भी लोग आज उन्हें याद करते है, एक महान किसान नेता के रूप में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में और एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में।
जितने भी लोग उन्हें निजी तौर पर जानते थे, वह उनके बारे में यही बताते थे की जितने साधारण उनके वस्त्र थे उनसे भी साधारण उनका जीवन था। वह उन नेताओं में से नहीं थे जो सांप्रदायिक दंगों की आग में अपनी रोटियाँ सेकते थे। उन्हें राजनैतिक दांवपेच आते ही नहीं थे वह समस्याओं को बढ़ाने में नहीं उन्हें सुलझाने में यकीन करते थे।
शायद यही कारण है की आज भी हर किसान दिवस पर सबसे पहले उन्हें ही याद किया जाता है। उनका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था की किसी के लिए भी उन्हें भूल पाना संभव नहीं है।