एक अनोखा सरदार, एक अनोखी मैराथन, एक अनोखा स्कूल

यह कहानी 25 साल पहले अमृतसर के एक आदमी की गुमनाम मैराथन दौड़ से शुरू होती है, जिसने झुग्गी बस्ती के कचरा बीनने और भीख माँगने वाले बच्चों के लिए स्कूल खोलने में मदद की। आज यहाँ 200 से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं। उनके कई सीनियर अब बैंकों, अस्पतालों, एयरलाइंस, होटलों में अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं।
Nishkam Sewa Public School Amritsar.jpg

अमृतसर में विदेशी छात्राओं के साथ निष्काम सेवा पब्लिक स्कूल के छात्र। (फोटोः निष्काम स्कूल)

अमृतसर में ऐतिहासिक रामबाग में सिविल लाइंस थाने से सटा एक स्कूल सबका ध्यान खींचता है। निष्काम सेवा पब्लिक स्कूल। इसकी टैगलाइन हटकर है- भारतीय प्रजातंत्र/लोकतंत्र को समर्पित। इसकी कहानी भी दिल खुश करने वाली है।

इस स्कूल के शुरू होने की कहानी इसी शहर में मजीठा रोड निवासी एलिसबेथ गिल बताती हैं। उन्हीं के शब्दों में:

हर महीने पति को तनख्वाह मिलते ही मैं पिंगलवाड़ा जाती थी। यह एक चैरिटी संस्था है। एक दिन पिंगलवाड़ा की प्रधान डॉ. इंदरजीत कौर ने कहा, एलिसबेथ यहां कई मददगार आते हैं, क्या तुम रेलवे लाइनों के पास रहने वाले बच्चों के लिए कुछ कर सकती हो?

एलिसबेथ के अनुसार, यहां आए तो देखा कि आसपास झुग्गी बस्ती है। बच्चे स्कूल नहीं जाते। अपने मां-बाप के साथ दिन भर कचरा बीनते हैं। सोचा, ये भी हमारे बच्चों की तरह पढ़ें। स्कूल भी पास हो। पिंगलवाड़ा की प्रधान भी यही चाहती थीं।

बात 1997 की शुरुआत की है। तब उनके पति सरदार सिंह गिल भारतीय खाद्य विभाग (एफसीआई) में नौकरी करते थे।

सरदार गिल के तीन बच्चे स्कूल में पढ़ने थे, लेकिन वह रेलवे लाइन वाले बच्चों के लिए भी कुछ करना चाहते थे। संसाधन इतने नहीं थे। एक दिन सुबह सैर करने वाले साथी ने शर्त लगाई। कंपनी बाग के 42 चक्कर मारकर दिखाओ तो 12 हजार रुपए ईनाम दूंगा। यह साथी आय कर अफसर थे। गिल ने दोपहर तक 27-28 चक्कर लगा डाले तो उसने कहा, अब बंद भी करो, शर्त जीतकर क्यों मेरी बेइज्जती करने पर तुले हो।

गिल कहते हैं, बात शर्त जीतने से आगे बढ़ चुकी थी। शाम तक 37 चक्कर काटे, घर आकर पैरों की सिकाई की और लौटकर बाकी पांच चक्कर भी लगा डाले। बाग का एक घेरा डेढ़ किलोमीटर का है। गिल कहते हैं, मुझे करीब 10 घंटे लगे, पर मैं 65 किमी पूरे करके ही माना। यानी डेढ़ मैराथन।

सरदार को शर्त के मुताबिक ईनाम तो नहीं मिला, मगर यह किस्सा सुबह की सैर करने वालों में मशहूर हो गया। एक व्यापारी ने सुना तो बतौर ईनाम सात हजार रुपए दे दिए। उसी साल गिल ने सिविल लाइंस थाने के बाहर चौड़ी सड़क के किनारे झोपड़ी डालकर स्कूल खोल दिया। वह भारतीय स्वतंत्रता का गोल्डन जुबली साल भी था।

2004 आते-आते गिल अपनी नौकरी से वीआरएस लेकर पूरी तरह स्कूल को समर्पित हो गए। अब थाने के सामने एक सरकारी भवन में स्कूल चलता है। एलिसबेथ बताती हैं, 25 बरस पहले जिन बच्चों के साथ स्कूल शुरू किया, वे अब पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े हैं। संगीता स्टाफ नर्स है। संजना एमए कर रही है। रेनू होटल मैनेजमेंट पढ़ रही है। ये कुछ उदाहरण हैं। अब यहां लगभग 165 बच्चे पढ़ते हैं। ऐसे बच्चे जिनके लिए स्कूल जाना आज भी सपना है।

खुद अमृतसर के मशहूर सेंट फ्रांसिस और माल रोड स्कूल में पढ़ीं एलिसबेथ गिल जीवनभर गृहिणी रहीं मगर अब पति के साथ स्कूल संभालती और चलाती हैं। उनके बड़े बेटे सुमेश गिल सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। बेटी आंचल एक एयरलाइंस में फ्लाइट क्रू मेंबर हैं। छोटा बेटा सुमेर अभी पढ़ रहा है।

सरदार सिंह गिल के पिता म्यांमार के विस्थापित थे। उनका बचपन पंजाब के ऐतिहासिक और धार्मिक शहर गोइंदवाल साहिब में बीता। बाद में मां अमृतसर आ गईं। गिल बताते हैं, मां ने घरों में काम कर किसी तरह मुझे पढ़ाया। उन्होंने 1965-66 में पंडित बैजनाथ स्कूल से हायर सैकेंडरी की और फिर हिंदू कालेज बेरी गेट से 1971-72 में बीए कर नौकरी शुरू कर दी। मां ने ही सिखाया कि वेतन का दसबंध सेवा पर लगाना है। इस स्कूल के पीछे भी मां की यही प्रेरणा है।

Nishkam Sewa Public School Amritsar 1.jpg

अमृतसर में निष्काम सेवा पब्लिक स्कूल। (फोटोः योगी)

10 likes

 
Share your Thoughts
Let us know what you think of the story - we appreciate your feedback. 😊
10 Share