करणी माता का मंदिर जहाँ चूहों को भोग लगाया जाता है

एक समान्य घर में पैदा हुई करणी माता जल्दी ही स्थानीय लोगों में देवी के रूप में प्रचलित हो गयी. विवाह के बाद उनकी प्रसिद्धि और भी बढ़ती चली गयी. ऐसा कहते हैं, उनके वंश चूहों के रूप में उन्हीं के आसपास घूमते हैं.
सुवाप, जहाँ करणी माता का जन्म हुआ : चित्र साभार - charan.org

सुवाप, जहाँ करणी माता का जन्म हुआ : चित्र साभार - charan.org

यह 1365-66 ईस्वी की कहानी है. किनिया गौत्र के मेहाजी की शादी बालोतरा तहसील के असाढा गाँव की देवल से हुई. मेहाजी सुवाप गाँव के रहने वाले थे. दोनों की पाँच बेटियाँ हुईं. मेहाजी को उम्मीद थी कि कम से कम एक बेटा तो हो! लेकिन, ऐसा हुआ नहीं. उम्मीद निराशा में बदलती गयी. कबीर ने कहा है – दुःख में सभी भगवान को याद करते हैं. मेहाजी ने भी यही किया. वे मन में आशा लेकर बलूचिस्तान की लंबी यात्रा पर निकल गए. वे हिंगलाज देवी को मानते थे. वहाँ से आशीर्वाद लेने के बाद वे सुवाप लौट आए. जल्दी ही, देवल को गर्भ ठहर गया.

बीस माह बीत गए लेकिन, बच्चे होने के कोई संकेत नहीं. यह देखकर मेहाजी और देवल दोनों घबरा गए. गाँव वालों की बात तो ख़त्म ही नहीं होती. एक रात देवल को दुर्गा माँ का सपना आया. जिसमें उन्होंने देवल को धीरज रखने को कहा. वे बोली, “ मैं तुम्हारी कोख से जन्म लूंगी.” एक महीने बाद, 1387 ईस्वी के अश्विन शुक्ल सप्तमी के दिन मेहाजी और देवल के घर एक बच्ची का जन्म हुआ. जिसका नाम रिधू बाई रखा गया. जैसे-जैसे रिधू बाई बड़ी होती गयी, खेल-खेल में चमत्कार करती गयी. गाँव वालों ने रिधू बाई को करणी कहकर बुलाना शुरू कर दिया. एक उम्र के बाद करणी की शादी बीकानेर के देपाजी बिठु के साथ हुई. तब तक करणी आसपास के क्षेत्रों में करणी माता का दर्जा पा चुकी थीं.

करणी देवी बीकानेर के राजपरिवार की कुलदेवी है. बीसवीं शताब्दी में महाराजा गंगा सिंह ने बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक में करणी माता का मंदिर बनवाया. आज जिस जगह यह संगमरमर का मंदिर है, एक समय वहाँ गुफा थी जहाँ वे लीं रहती थीं. कहते हैं, आज भी वह गुफा परिसर में मौजूद है. लोगों का मनना है करणी माता 151 साल जीवित रही. आज की तारीख में करणी माता मंदिर में लगभग 25,000 चूहे हैं. वे इधर से उधर दौड़ते रहते हैं. वहाँ के श्रद्धालुओं का मानना है कि सफ़ेद चूहे करणी माता के अवतार हैं और यदि वे दिख जाए तो बहुत शुभ माना जाता है. इतनी बड़ी तादाद में चूहों के होने की वजह से कई बार वे कुचले भी जाते हैं. ऐसी स्थिति में जिसमें सामर्थ्य होता है वह चाँदी का चूहा चढ़ाता है. लेकिन, इतनी बड़ी संख्या में चूहे होने के बावजूद वहाँ कभी कोई बीमारी – ख़ासकर प्लेग जैसी भयंकर बीमारी जो कि चूहों से ही फैलती है, कभी नहीं सुनने को मिली. उसके अलावा न कभी कोई बदबू या गंदगी देखी गयी. जो शायद अपने आप में एक चमत्कार है. चमत्कार तो यह भी है कि वहाँ जाने वाले श्रद्धालु चूहों को भोग लगाते हैं और फिर वही उनका प्रसाद भी हो जाता है. करणी माता, आज राजस्थान के सबसे बड़े, प्रसिद्द मंदिरों में से एक है. जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है – इस आशा में कि उनकी मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँ या कम से कम एक सफ़ेद चूहा ही दिख जाए!

एक बार करणी माँ का एक बेटा कोलायत तालाब में डूब गया. बेटे के जीवन की याचना के लिए उन्होंने यमराज को याद किया. लेकिन, यमराज नहीं माने. उसके बाद करणी माँ ने अपने बेटे को जिंदा किया लेकिन, यमराज से कहा कि अब तुम्हारे यहाँ मेरी कोई संतान, कोई वंशज नहीं आएगा. लोगों का ऐसा मानना है कि देपाजी के वंशज, जो देपावत कहलाए, मृत्यु के बाद यम लोक नहीं जाते. वे धरती पर ही चूहे बन देशनोक स्थित करणी माँ के मंदिर में घूमते हैं. इसलिए, आम लोगों में वे चूहों वाली देवी से भी प्रसिद्द हो गयीं. वे चूहे काबा कहलाते हैं. इसलिए स्थानीय लोग करणी माँ को काबा वाली करनलां भी कहते हैं.

देशनोक स्थित मंदिर में करणी माता की मूर्ति : चित्र साभार - pinterest

देशनोक स्थित मंदिर में करणी माता की मूर्ति : चित्र साभार - pinterest

करणी माता मंदिर, देशनोक : चित्र साभार - makemytrip

करणी माता मंदिर, देशनोक : चित्र साभार - makemytrip

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