कलकत्ते का ब्लैक होल

20 जून 1756 का दिन भारत के इतिहास में एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। कोलकाता में एक ऐसी घटना हुई, जिसके एक साल बाद ही, 1757 में, दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति भारत पर एक ब्रिटिश कंपनी का कब्जा हो गया।
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यूरोप में प्रचलित द ब्लैक होल ऑफ कैलकटा के चित्रांकन। (साभारः वर्ल्ड हिस्टरी एन्साइक्लोपीडिया)

यह कहानी इतिहास के ब्लैक होल की है, अंतरिक्ष की नहीं।

हम जानते हैं, ब्लैक होल अंतरिक्ष में होते हैं। जीनियस अल्बर्ट आइंस्टाइन ने ऐसा बताया। ये ब्रह्मांड में ऐसे संभावित इलाके हैं, जहां गुरुत्व बल बहुत-बहुत प्रचंड है। एक साथ लाखों-करोड़ों सूनामी जैसा कुछ। अंतरिक्ष के इन मायावी गड्ढों में सब कुछ समा जाता है। वह प्रकाश भी, जिसकी गति से तेज कुछ भी नहीं है। ये दिखते भी नहीं हैं।

इन्हें ब्लैक होल क्यों कहते हैं - यह भी गुत्थी है। नासा में एस्ट्रोफिजिसिस्ट होंग यी चीयू (Hong Yee-Chiu) मानते हैं कि ब्लैक होल का नामकरण भारतीय इतिहास की एक घटना से प्रेरित है। पश्चिमी दुनिया उसे 'द ब्लैक होल ऑफ कैलकटा' कहती है।

बात 20 जून 1756 की है। तब कलकत्ता कुछ भी नहीं था। उससे बड़ी जगह मुर्शिदाबाद थी। बंगाल की राजधानी। नवाब था सिराजुद्दौला। काफी ताकतवर। तब तक अंग्रेज और फ्रांसीसी व्यापारी भारत में पैर जमा चुके थे। गुजरात में सूरत, दक्षिण में कालीकट और मद्रास तो पूरब में कलकत्ते तक। अपनी सुरक्षा के बहाने गोदामों और बस्तियों को वे किले में तब्दील करने लगे थे।

यूरोप में अंग्रेज और फ्रांसीसी लड़-मर रहे थे। वे बंगाल में भी ऐसा कर सकते हैं। यह खतरा भांपकर सिराजुद्दौला ने दोनों फिरंगी कौमों को किलाबंदी न करने का हुक्म दिया। फ्रांसीसी मान गए। ईस्ट इंडिया कंपनी ने किलेबंदी जारी रखी।

यह देखकर नवाब ने कलकत्ता में ईस्ट इंडिया कंपनी के फोर्ट विलियम की घेराबंदी करवा दी। मगर, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की छोटी-मोटी फौज का कमांडर नहीं माना। वह अपने फौजी साथियों को लेकर भाग गया। किले की खिदमत करने वाले चंद लोग वहां छोड़ दिए। वे सिविलियन थे। नवाब की फौज ने इन्हें एक कमरे में बंद कर दिया। सुबह तक उसमें ज्यादातर की जान जा चुकी थी। शायद दम घुटने से।

वही कमरा ब्लैक होल ऑफ कैलकटा कहलाता है।

यह समाचार यूरोप पहुँचकर बड़ी कहानी बन गया। किस्सागो था - जॉन होलवैल। ईस्ट इंडिया कंपनी में सर्जन और सीनियर अफसर। फौजी कमांडर उसी के भरोसे किला छोड़कर भागा था।

उसने लिखा है कि नवाब ने उसे वादा किया था कि किसी को कोई नुक्सान नहीं होगा। रात आठ बजे उन्हें एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया गया। पौ फटने तक कई सांसें उखड़ चुकी थीं। एक आंकड़ा है कि 146 में से 123 लोग मर गए। कुछ इतिहासकार कहते हैं, यह तीन-चार गुना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया आंकड़ा है। यूरोप में इस घटना से प्रेरित होकर कई कहानियां, उपन्यास, पेंटिंग बने। कलकत्ते में स्मारक बने। हॉलीवुड से लेकर टीवी सीरियल तक में इस घटना के संदर्भ भांति-भांति से दिखाए जाते हैं।

खैर, 20 जून 1756 की वह घटना भारत के इतिहास में टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। तब मद्रास से ईस्ट इंडिया कंपनी का कमांडर रॉबर्ट क्लाइव ताकत बटोरकर बंगाल आया। प्लासी की लड़ाई में उसने कैसे बंगाल के गद्दार दरबारियों के साथ मिलकर नवाब को हरा और मार दिया, यह अलग कहानी है। (23 जून, 1757: प्लासी की लड़ाई)

साल बीतते-बीतते ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल की मालिक बन गई।

फिर अगले सौ साल के भीतर वह बंगाल से लेकर पंजाब-सिंध तक सैकड़ों नवाबों और महाराजाओं को अपने अधीन कर चुकी थी।

भारत अब गोरों के ब्लैक होल में समा गया।

पूरे 190 साल तक यह सिलसिला चला।

इतिहास में कई किस्से हैं, जब एक मुल्क ने दूसरे मुल्क को कब्जा लिया।

पर कोई प्राइवेट कंपनी दुनिया के सबसे अमीर मुल्क को निगल जाए, यह पहला किस्सा है।

आज के अर्थशास्त्री मानते हैं, उस समय भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। चीन से भी बड़ा।

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