कुल्लू घाटी की नाटी

हिमाचल प्रदेश में जब रंग-बिरंगे परिधान पहने लोग नाटी नृत्य करते हैं तो बर्फ से लकदक वादियों में एक अलग ही समाँ दिखता है। खास कुल्लू घाटी की नाटी ने तो विश्व के सबसे बड़े लोकनृत्य के तौर पर गिनीज़ बुक में जगह पा ली है। यह कहानी इसी लोकनृत्य की है।
Nati-SirmourDance.jpg

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर में नाटी मंचन। (चित्र साभारः गोसाईं.कॉम)

दशहरे या नए साल पर कभी हिमाचल के कुल्लू जैसे शहरों में जाइए। बर्फीली चोटियों और खूबसूरत वादियों के अलावा आपको यहां की एक खास संस्कृति देखने को मिलेगी। सैकड़ों स्त्री-पुरुष ठेठ पहाड़ी परिधानों में सजकर गीत-संगीत की धुन पर समूह नृत्य करते हैं तो देखने वाले भी लोकधुनों पर थिरक पड़ते हैं।

नाटी वैसे तो पहाड़ी लोकगीत शैली है। वह कई और लोकगीतों की तरह पहाड़ों में नृत्य रूप में गाया जाता है। हिमाचल के कुल्लू, मंडी, चंबा, सिरमौर, शिमला, किन्नौर से लेकर पड़ोसी उत्तराखंड के टिहरी-उत्तरकाशी और देहरादून के जौनसार इलाके तक कुछ-कुछ स्थानीय भिन्नता के साथ यह नृत्य-गीत लोकप्रिय है। इसीलिए अब इसे स्थानीय स्तर पर कुल्लवी नाटी, सिरमौर नाटी, किन्नौरी नाटी आदि के रूप में भी जानते हैं।

फिर भी, नाटी चाहे किसी इलाके की हो, कुछ खासियतें समान हैं। जैसे, देसी गाजे-बाजों ढोल-दमाऊ, ढोलक, नगाड़े, नरसिंघा, शहनाई, मशकबीन, तुरही आदि के साथ मंद नृत्य की लय में गीत गाना। देसी परिधान इसे अलग रंगत देते हैं। इसमें आम तौर पर रासलीला या कृष्ण-गोपियों के प्रसंग गाए जाते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र की पद्यमय नाटिका श्रीचंद्रावली के प्रसंगों का मंचन भी होता है। नाटी मंचन का पूरा समाँ ऐसा रंगबिरंगा नजर आता है कि आज की दृश्य प्रधान दुनिया ने इसे गीत से ज्यादा नृत्य रूप में पहचान देनी शुरू कर दी है। इसमें कोई हर्ज भी नहीं है, स्थानीय संस्कृतियों की खुशबू दुनिया भर में फैलनी चाहिए, देखने वाले चाहे जिस रूप में देखें।

अपनी संस्कृति के प्रसार की कुछ ऐसी ही कोशिश हिमाचल प्रदेश सरकार ने 2015 में की। दशहरे के दिन कुल्लू में एक मंच पर 13 हजार से ज्यादा कलाकार जमा हुए। उद्देश्य था “बेटी है अनमोल” का संदेश देना। इसके लिए नाटी से बेहतर प्लेटफॉर्म और क्या हो सकता था। इस सांस्कृतिक घटना के गवाह हजारों लोग बने। कलाकारों को बार-कोड दिए गए थे। सिर्फ 9892 कलाकारों को बार-कोड दिए जा सके। फिर भी यह एक ऐतिहासिक आयोजन बन गया। अगले साल जनवरी में गिनीज़ बुक ने इसे विश्व के सबसे बड़े नाटी लोक नृत्य के रूप में मान्यता देने की घोषणा की। खास बात यह है कि इसमें सिर्फ महिलाओं ने भाग लिया था। इससे पहले वाले दशहरे में नौ हजार से कुछ कम कलाकारों के साथ हुए नाटी उत्सव को लिमका बुक में जगह मिल चुकी थी। इस तरह नाटी के बारे में देश-दुनिया में प्रचार होने लगा।

लेकिन, अभी सफर लंबा है। नाटी को यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शामिल होने का रास्ता खुला है। अभी कुल्लू की नाटी को नई पहचान मिली है। लेकिन, हिमाचल और गढ़वाल हिमालय की दूसरी नाटी शैलियां भी इस दौड़ में शामिल हो सकती हैं। नाटी परंपरा के मूल तत्वों को कायम रखते हुए इसे जलवायु परिवर्तन, तमाम तरह की गैर-बराबरियां दूर करने जैसी नई सोच से जोड़कर शायद नाटी को विश्व धरोहर का दर्जा मिलना आसान हो जाए।

8 likes

 
Share your Thoughts
Let us know what you think of the story - we appreciate your feedback. 😊
8 Share