क्रांति का दूसरा नाम
क्रांतिकारी शब्द सुनते ही हम सबके मन में भगत सिंह का ही नाम आता है। पर क्या आपको पता है की ऐसा भी एक क्रांतिकारी था जिसके सामने भगत सिंह खुद के बलिदान को तुच्छ समझते थे। यह कहानी भगवती चरण वोहरा की है।
कहते है क्रांतिकारी अपने सिर पर कफ़न बाँध कर चलते हैं। भगवती चरण वोहरा की कहानी इस कहावत का सबसे बड़ा उदाहरण है। भगवती चरण एक बड़े घर में पैदा हुए थे अर्थात् अगर वह चाहते तो पूरी उम्र भी बैठ कर खा सकते थे परंतु उन्होंने अपने लिए एक ऐसी राह चुन ली, जँहा हर कदम पर मौत का खतरा था। लेकिन उन्हें न मौत का डर था और न ही जीने का लालच। अगर उन्हें कुछ चाहिए था तो केवल भारत की आज़ादी।
भगवती चरण वोहरा ने कॉलेज के दिनों से ही क्रांति की राह चुन ली थी। भगवती चरण वोहरा, भगत सिंह और चंद्र शेखर आज़ाद उस समय के सबसे बड़े क्रांतिकारियो में से थे।
हमें ऐसे लोग चाहिये जो आशा की अनुपस्थिति में भी भय और झिझक के बिना युद्ध जारी रख सकें। हमें ऐसे लोग चाहिये जो आदर-सम्मान की आशा रखे बिना उस मृत्यु के वरण को तैयार हों, जिसके लिये न कोई आंसू बहे और न ही कोई स्मारक बने।~ भगवतीचरण वोहरा
सभी क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा और उनकी पत्नी को भैया और भाभी कह कर संबोधित करते थे। 14 वर्ष की उम्र में ही भगवती चरण की शादी दुर्गा देवी से हो गई थी। लेकिन और महिलाओं की तरह उन्होंने कभी अपने पति को क्रांति की मुश्किल राह पर जाने से नहीं रोका बल्कि दुर्गा भाभी ने भी क्रांति की राह पर अपने पति का साथ दिया। वह कई बार भेष बदल कर अपने पति के साथ जाती थी।
भगवती चरण वोहरा के जीवन की सबसे बड़ी क्रांतिकारी घटनाओं में से एक लॉर्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन को उड़ाने की साजिश थी। बम धमाका भी हुआ लेकिन लॉर्ड इरविन जिंदा बच गया। अगर उस दिन भगवतीचरण सफल हो जाते तो शायद इतिहास कुछ और होता।
इसके अलावा वह लाहौर षड्यंत्र केस, लखनऊ के काकोरी मामले और लाला लाजपत राय को मारने वाले अंग्रेज़ सार्जेंट सांडर्स की हत्या के दोषी थे लेकिन अचम्भे की बात यह थी की ब्रिटिश सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी सरकार कभी भगवती चरण वोहरा को पकड़ने में काम्याब नहीं हुई।
लेकिन केंद्रीय असेंबली हाॅल में बम विस्फोट के मामले में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को पकड़ लिया गया। चंद्र शेखर आज़ाद और भगवती चरण वोहरा ने उन्हें जेल से छुड़ाने की योजना बनाई। योजना के अनुसार भगत सिंह को जिस दिन दूसरी जेल में ले जाया जाने वाला था। उस दिन पुलिस की गाड़ी के आगे बम फेंक कर वह भगत सिंह को आज़ाद करवा लेते। लेकिन आज़ाद और भगवती चरण वोहरा नहीं चाहते थे की यह योजना फेल हो जाए।
आज़ाद और भगवती चरण वोहरा ने संतुष्टि के लिए बम का परीक्षण करने का फैसला किया। रावी नदी के किनारे वह बम का परीक्षण करने पहुँचे। आज़ाद उस समय बम से कुछ दूर बैठे थे और भगवती चरण वोहरा बम की जाँच करने लगे।
उसी समय एक धमाके की आवाज़ आई। उस हादसे में क्रांतिकारियों ने अपने दाहिने हाथ को सदा के लिए खो दिया। इस हादसे में भगवती चरण वोहरा की मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु पर भगत सिंह ने कहा -
युद्ध हमारे साथ आरम्भ नहीं हुआ है और हमारे जीवन के साथ समाप्त नहीं होगा। हमारे तुच्छ बलिदान उस श्रृंखला की कड़ी मात्र होंगे जिसका सौन्दर्य कामरेड भगवतीचरण के दारुण पर गर्वीले आत्म त्याग और हमारे प्रिय योद्धा आज़ाद की गरिमामय मृत्यु से निखर उठा है। ~ सरदार भगत सिंह (3 मार्च 1931)
इस हादसे का दुख पूरे देश और क्रांतिकारियों से भी अधिक उनके परिवार को हुआ था। दुर्गा भाभी जो अपने पति के शव को देख भी नहीं पाई थी। उन्होंने अपने की मृत्यु पर कहा -
मेरे पति की मृत्यु 28 मई 1930 में रावी नदी के किनारे बम विस्फोट के कारण हुई थी। उनके न रहने से भैया (आज़ाद) कहते थे कि उनका दाहिना हाथ कट चुका है। ~ दुर्गा भाभी
शायद क्रांतिकारियों की सूची में उनका नाम सबसे बड़े क्रांतिकारियों में इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उनकी मृत्यु एक हादसे में हुई। चंद्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की तरह उनकी हत्या नहीं की गई थी। लेकिन उनका जीवन और क्रांति की कोशिशें आज़ाद और भगत सिंह से कहीं कम नहीं थी।
आज बहुत कम लोग भगवती चरण वोहरा के बारे में जानते है क्योंकि भगवती चरण वोहरा ने आजीवन जो भी काम किए थे वह कभी नाम के लिए किये ही नहीं थे इसलिए उनके लिए यह कभी चिंता का विषय था ही नहीं। लेकिन क्रांति लाने में उनके योगदान को अनदेखा करना उन सभी क्रांतिकारियों का अपमान है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राण गवा दिए।