जब हमने अपने वीरों को खोया था, उस दिन तिरंगा भी रोया था
जब तक सूरज चाँद रहेगा 'वीरों' अमर तुम्हारा नाम रहेगा। न केवल इतिहास के पन्नों में, न केवल अशोक चक्र प्राप्तकर्ताओं में, न केवल देश के वीरों की सूची में बल्कि हमारे दिलों में भी।
26 नवंबर 2008 यह सिर्फ एक तारीख नहीं बल्कि एक काला दिन था जिसने मुंबई और पूरे भारत को हिला कर रख दिया था। 26/11 के हमलों ने कई लोगों के कई परिवारों को तबाह कर दिया और कई लोगों को असहनीय दुख में छोड़ दिया। समुद्र के रास्ते घुसे आतंकवादियों ने मुंबई को अपना निशाना बनाया. आतंकवादियों की इस साजिश में। 26 नवंबर की रात करीब 9 बजे छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से सबसे पहले फायरिंग की खबर आई थी। जहाँ दो आतंकवादियों ने रेलवे स्टेशन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दिया था, जिससे करीब 15 मिनट में 52 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि करीब 109 लोग बुरी तरह घायल हो गए थे। सिलसिला यहीं नहीं रुका इसके बाद आतंकवादियों ने साउथ मुंबई के लियोपोल्ड कैफे, बोरी बंदर, विले पार्ले, ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस को अपना निशाना बनाया।
मुंबई उस दिन आतंक और खून से लथपथ था। लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है और उनके परिवार के सदस्य जो घर से बाहर थे, घर लौटेंगे या नहीं। मुंबई पुलिस में काम करने वाले हर व्यक्ति का परिवार सिर्फ उनके अपनों की सलामती की दुआ मांग रहे थे।
कुछ ऐसी ही दुआ हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, अशोक कामटे, सदानंद दाते, कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन, सुशांत शिंदे, नानासाहेब भोंसले, तुकाराम ओंबले, प्रकाश मोरे, दुदगुड़े, विजय खांडेकर, जयवंत पाटिल, योगेश पाटिल, अंबाडोस पवार और एम.सी. चौधरी के परिवार वालों ने भी मांगी होंगी लेकिन किसे पता था कि वे अपने चाहने वालों से दोबारा कभी नहीं मिल पाएंगे।
हेमंत करकरे आतंकवाद विरोधी दस्ते के प्रमुख थे। जब मुंबई में हुए आतंकी हमले की खबर आई तो सबसे पहले उनका दस्ता हरकत में आया, लेकिन उन हमलों ने देश के उस बहादुर पुलिस अधिकारी को हमसे हमेशा के लिए छीन लिया।
हेमंत की यह शहादत उनकी हार नहीं थी, बल्कि उपलब्धि थी जो उनकी उपलब्धियों की सूची में सबसे ऊपर आती है क्योंकि वह जीवन के खतरे के बावजूद अपने कर्तव्य से नहीं हटे, यह जानते हुए कि शायद वह अपने 3 बच्चों से फिर कभी नहीं मिल पाएंगे, उन्होंने अपने देश के लिए लड़ने और उसे आतंकवादियों के नापाक मंसूबों से उसे बचाने की कोशिश की।
इंजीनियरिंग के बाद, उन्होंने मुंबई आतंकवाद विरोधी दस्ते के प्रमुख के रूप में पदभार संभाला। यदि उन्हें मृत्यु का खौफ होता तो वह कभी यह नौकरी नहीं करते बल्कि इंजीनियर की नौकरी उन्हें एक पुलिस अधिकारी के मुकाबले काफी अधिक वेतन दिलवा सकती थी। वह देश की सेवा करना चाहते थे जो उन्होंने मरते दम तक की।
वह अकेले नहीं थे जो उस दिन शहीद हुए, उनके जैसे कई वीर लोग थे। जिनमें से एक विजय सालस्कर भी थे। विजय एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर जाने जाते थे। उन्होंने अपने जीवन में लगभग 75-80 आतंकवादियों और अपराधियों को मार गिराया था। शायद उस दिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। उस समय अंडरवर्ल्ड की जानकारी रखने वाले विजय से कुछ आरोपों के चलते उसकी पिस्तौल वापस ले ली गई थी। जिस समय कसाब और उसके साथी अंधाधुन फायरिंग कर रहे थे, विजय उनके सामने अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए निहत्थे खड़े थे।
सरकार ने दोनों वीरों की वीरता के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया।
इन जांबाजों की शहादत ने इन्हें सदा सदा के लिए अमर कर दिया। जब जब इन वीरों की कहानी दोहराई जाएगी तब तब पूरी दुनिया इनकी बहादुरी को सलाम करेगी। जिस प्रकार आज हम कर रहे है।