जितना सुंदर नाम, उससे भी सुंदर कहानी

आम लोग हमेशा दूसरों की बनाई हुई राह पर चलते है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते है जो भीड़ से अलग अपनी एक राह बनाते है। कुछ लोग इस प्रयास में सफल होते है और कुछ असफल। असफल लोगों को लोग भूल जाते है लेकिन वो चुनिंदा सफल लोग अमर हो जाते है। मलयालम फ़िल्मों से पटकथा लेखक और निर्देशक पी.पद्माजारन उन्हीं कुछ चुनिंदा लोगों में से एक थे।
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पी.पद्माजारन; स्रोत: आईएमबीडी

यह पी.पद्माजारन की कहानी है जो अपने ज़माने के सबसे सफ़ल लेखकों और फ़िल्म निर्देशकों में से एक थे। उनकी फ़िल्मों में एक नवीनता थी जो न केवल लोगों को भाँति थी बल्कि मूवी समीक्षकों और बुद्धिजीवियों की भी तारीफ़े बटोरति थी। उन्होंने अपने शुरुआती जीवन में काफी कठिनाइयों का सामना किया था। रेडियो जॉकी से लेकर मूवी निर्देशक तक का सफ़र काफी कठिन था। लेकिन इस सफ़र में वो अकेले नहीं थे उनकी पत्नी राधालक्ष्मी उनके साथ थी।

राधालक्ष्मी से पद्माजारन की मुलाकात तब हुई थी जब वह ऑल इंडिया रेडियो में काम करते थे। राधालक्ष्मी भी वंही काम करती थी। पर कहते है न इश्क़ और मुश्क छुपाए नहीं छुपते। जल्द ही राधालक्ष्मी के परिवार को पद्माजारन के साथ उनके रिश्ते की ख़बर हो गई।

राधालक्ष्मी का परिवार उनके प्यार के खिलाफ़ था।

राधालक्ष्मी के परिवार ने उन पर दबाव डाला और परिवार के दबाव में आकर राधालक्ष्मी ने इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद वो वापस चित्तूर अपने घर चली गई। लेकिन वह पद्माजारन से जुदाई का दर्द सह नहीं पा रही थी इसलिए उन्होंने आत्महत्या का प्रयास किया। उस समय राधालक्ष्मी केवल 21 साल की थी।

डॉक्टरों ने जैसे तैसे उनकी जान बचा ली। उनके परिवार ने उनका माहौल बदलने के लिए उन्हें उनके भाई के पास मद्रास भेज दिया। लेकिन वँहा उनकी मुलाक़ात पद्माजारन से दोबारा हुई। आख़िरकार उनके परिवार को दोनों के प्यार के सामने झुकना पड़ा और 1970 में उन दोनों की शादी दोनों परिवारों की रजामंदी के साथ हुई।

वह एक बेहतरीन लेखक थे। उनके लेखन में सब था। छल, हत्या, रोमांस, रहस्य, जुनून, जलन, आज़ादी, अराजकता, व्यक्तिवाद, सामाजिक व्यवस्था, मानव मानसिकता इत्यादि। लगभग समाज के हर तत्व और मानव के हर भावना को पी.पद्माजारन ने अपने लेखन में जगह दी। शायद यही कारण था की उनके द्वारा लिखे गए उपन्यासों को जनता का इतना प्यार मिला। इसके अलावा उन्हें केरल साहित्य अकादमी अवार्ड से भी नवाज़ा गया था।

वह इतना अच्छा लिखते थे की उनकी कला ने उनके लिए कामयाबी के सभी रास्ते खोल दिए।

उनके द्वारा निर्देशित फ़िल्मों को भी जनता का उतना ही प्यार मिला क्योंकि अपनी फ़िल्मों की पटकथा ज़्यादातर वो खुद लिखते थे जिनमें न कोई ड्रामा होता था और न ही कल्पना। वह हमेशा मानव के असली संबंधों और असली भावनाओं को पर्दे पर उतारते थे जो आगे चल कर उनकी खासियत बन गई थी।

उनकी मृत्यु 1991 में कालीकट के होटल में अचानक हृदय गति रुकने के कारण हुई। वह उस समय केवल 45 वर्ष के थे और उनके विवाह को केवल 21 वर्ष ही हुए थे। राधालक्ष्मी एक बहुत ही मजबूत महिला थी उन्होंने पद्माजारन के जाने के बाद न केवल खुद को बल्कि अपने बच्चों को भी संभाला। लेकिन अगर वह आज हमारे बीच होते तो दक्षिण भारत के सबसे बड़े फ़िल्म निर्देशकों में से एक होते।

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