जिसने भारतीय राजनीति को बदल कर रख दिया

यह कोई पहली बार नहीं था। 1953 में भी एक योग का गठन हुआ था जिसकी अगुवाई काका कालेलकर के हाथों में थी। कालेलकर आयोग ने दो साल बाद 1955 में रिपोर्ट सौंपी जिसमें भारत में 2399 पिछड़ी जातियाँ/समुदाय चिन्हित की, जिनमें भी 837 अत्यंत पिछड़ी जातियाँ मानी गईं। लेकिन, कालेलकर आयोग असफल रहा। क्योंकि, ऐसे तर्क आए कि इनमें वे ही जातियाँ शामिल की गईं जो हिन्दू धर्म से सम्बंधित थीं। इस तरह कालेलकर रिपोर्ट नकार दी गई।
पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह रैली को संबोधित करते हुए : चित्र साभार - हिन्दुस्तान टाइम्स

पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह रैली को संबोधित करते हुए : चित्र साभार - हिन्दुस्तान टाइम्स

साल 1977, इमरजेंसी खत्म हुए लगभग दो साल होने को आए थे। लोकसभा चुनाव सर पर थे। सभी जानते थे इंदिरा फिर से सरकार नहीं बना सकती। हुआ भी यही कांग्रेस को हार का मुँह देखना पड़ा। जनता पार्टी ने सत्ता संभाली और प्रधानमंत्री बने मोरार जी देसाई। देसाई सरकार द्वारा दुबारा कराए विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को मुँह की खानी पड़ी। जनता पार्टी ने कांग्रेस को चारों खाने चित्त कर दिया। उसी विधानसभा चुनाव में बिहार सरकार की कमान संभाली कर्पूरी ठाकुर ने। उन्होंने सरकार के दूसरे ही वर्ष के कार्यकाल में सरकारी नौकरी में पिछड़े वर्ग को 20 फ़ीसदी आरक्षण दे दिया। यह ऐसा कानून था जिसने उत्तर भारत की राजनीति की काया पलट कर रख दी। इसके साथ ही अन्य राज्यों के साथ-साथ केन्द्रीय सेवाओं में भी आरक्षण की मांग उठने लगी।

हालाँकि, यह कोई पहली बार नहीं था। 1953 में भी एक योग का गठन हुआ था जिसकी अगुवाई काका कालेलकर के हाथों में थी। कालेलकर आयोग ने दो साल बाद 1955 में रिपोर्ट सौंपी जिसमें भारत में 2399 पिछड़ी जातियाँ/समुदाय चिन्हित की, जिनमें भी 837 अत्यंत पिछड़ी जातियाँ मानी गईं। लेकिन, कालेलकर आयोग असफल रहा। क्योंकि, ऐसे तर्क आए कि इनमें वे ही जातियाँ शामिल की गईं जो हिन्दू धर्म से सम्बंधित थीं। इस तरह कालेलकर रिपोर्ट नकार दी गई।

इसके 22 साल बाद जब मोरार जी सरकार के समय दुबारा मांग उठी तो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मधेपुरा से तत्कालीन सांसद बी.पी. मंडल के अध्यक्षता में एक योग का गठन हुआ जो मंडल आयोग कहलाया। मंडल आयोग ने दो सालों तक पूरे भारत की यात्रा कर दिसंबर, 1980 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। लेकिन, तब तक देसाई सरकार गिर चुकी थी। सत्ता में दुबारा कांग्रेस आ गई और मंडल आयोग की रिपोर्ट ठन्डे बस्ते में चली गई।

दस सालों तक उस पर कोई काम नहीं हुआ। 1989 के आख़िरी महीने में जब जनता पार्टी की गंठबंधन वाली सरकार दुबारा सत्ता में आई तो प्रधानमंत्री का पद संभाले वी.पी. सिंह ने 1990 में मंडल आयोग की उस रिपोर्ट को दुबारा बाहर निकाला। उस रिपोर्ट में 3500 से भी ऊपर पिछड़ी जातियों की पहचान हुईं जिन्हें सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफ़ारिश थी। उसमें लिखा था, “सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने की जंग को पिछड़ी जातियों के ज़हन में जीतना ज़रूरी है। भारत में सरकारी नौकरी पाना सम्मान की बात है। ओबीसी वर्ग की नौकरियों में भागीदारी बढ़ने से उन्हें यकीन होगा कि वे सरकार में भागीदार हैं। पिछड़ी जाति का व्यक्ति अगर कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक बनता है, तो ज़ाहिर तौर पर उसके परिवार के अलावा किसी और को लाभ नहीं होगा, पर वह जिस समाज से आता है, उन लोगों में गर्व की भावना आएगी, उनका सिर ऊंचा होगा कि उन्हीं में से कोई व्यक्ति ‘सत्ता के गलियारों’ में है।” सात महीने के भीतर ही 7 अगस्त, 1990 को वी.पी.सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की बात को मान लेने की घोषणा कर दी और इसके साथ ही दिल्ली से शुरू हुई विरोध की लहर देखते ही देखते पूरे उत्तर भारत में फैल गई।

स्टूडेंट्स से शुरू हुए विरोध में हरियाणा के किसान भी कूद पड़े और बाद पार्टी के अन्दर भी विरोध के कई स्वर फूटे। जब हरियाणा के किसान आन्दोलन में उतरे तो आन्दोलन ने हिंसक रूप ले लिया। पुलिस ने गोलीबारी की जिससे दो-तीन लोग मर गए और एक बार के लिए आन्दोलन रुक गया। लेकिन, इसने दुबारा रफ़्तार पकड़ी। यह इतने ख़राब मोड़ पर पहुँच गया कि होस्टलों - कोलेजों में, पिछड़ी जातियों से आए लोगों के साथ भेदभाव शुरू हो गया। दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र राजीव गोस्वामी ने ख़ुद को आग लगा दी। उसके बाद ऐसी और भी घटनाएं आती रहीं। बाहर से समर्थन कर रही भारतीय जनता पार्टी ने भी साथ छोड़ने का दबाव बनाया। उधर, उड़ीसा में भी हिंसक आन्दोलन शुरू हो गए जिसकी वजह से पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा जिससे जनहानि हो गई। इस घटना से उड़ीसा के मुख्यमंत्री जो ख़ुद जनता पार्टी के थे, वीपी सिंह के विरोध में खड़े हो गए। ऐसे कर एक-एक लोग वी.पी सिंह का साथ छोड़ते गए। बीजेपी ने ख़ुद को अलग कर रामजन्म भूमि से जोड़ लिया ताकि लोगों का ध्यान उस पर न जाए। आख़िरकार, दो महीने के बाद वी.पी. सिंह ने 7 नवम्बर, 1990 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया। मंडल आयोग की सारी बातें नहीं मानी गई। लेकिन, मंडल आयोग की यह रिपोर्ट भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई।

राजीव गोस्वामी को बचाते हुए उनके साथी : चित्र साभार - द क्विंट

राजीव गोस्वामी को बचाते हुए उनके साथी : चित्र साभार - द क्विंट

5 likes

 
Share your Thoughts
Let us know what you think of the story - we appreciate your feedback. 😊
5 Share