देवगढ़ रियासत की राजकुमारी

एक राजकुमारी जिसका जन्म महलों की चार दीवारी के अंदर घूँघट में रहने के लिए हुआ था लेकिन उन्होंने राजनीति की कठिन राह चुनी। लक्ष्मी कुमारी चूंडावत उन सभी के लिए एक सीख थी जो महिलाओं को कमज़ोर समझते थे।
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लक्ष्मी कुमारी चूंडावत; Source: Indianwomenblog

हर बेटी अपने पिता की लाडली होती है, चाहे पिता राजा हो या रंक। लक्ष्मी कुमारी चूंडावत भी अपने पिता की लाडली थी। उनका जन्म 1916 में मेवाड़ राजघराने की देवगढ़ रियासत के विजयसिंह रावत के घर में हुआ था।इतने बड़े घर में पैदा होने के बावजूद वह कभी स्कूल नहीं गई। उन्होंने जो भी सीखा वो घर में रहकर ही सीखा।

लक्ष्मी कोई आम लड़की नहीं थी। उनके पास क्या नहीं हैं, यह सोचने की बजाय उन्होंने सोचा की उनके पास क्या है। उनके भाई को जो मास्टर घर पर पढ़ाने आते थे उन्हीं से लक्ष्मी ने पढ़ना लिखना सीखा।

लक्ष्मी को बचपन से ही लिखने का शौक था। उन्होंने राजस्थानी और हिंदी में कई बेहतरीन किताबें लिखी।

वह कभी स्कूल नहीं गई लेकिन राजस्थानी साहित्य में योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार मिला।

उनका विवाह 1934 में रावतसर के तेज सिंह रावत के साथ हुआ। वह अपने समय की उन चुनिंदा महिलाओं में से एक थी जो गाड़ी चलाना जानती थी। लेकिन उनके लिए भी यह सब कुछ उतना आसान नहीं था। उनके ससुराल में वह हमेशा लंबे घूँघट में रहती थी। गाड़ी चलाना सीखने के लिए भी उन्होंने ड्राइवर अपने मायके से बुलवाया था। वह जंगल में जाकर गाड़ी चलाना सीखती थी।

इसके अलावा वह अखबारों में आर्टिकल भी लिखती थी लेकिन ससुराल में किसी को पता न चले इसलिए वह अपना नाम बदल कर इन आर्टिकल्स को लिखने लगी।

लक्ष्मी की आकांक्षाएँ किसी भी आम लड़की के मुकाबले काफी अधिक थी। उन्होंने 1950 के दशक में राजनीति में जाने का फैसला किया। लेकिन वह ससुराल से चुनाव नहीं लड़ सकती थी इसलिए उन्होंने अपने मायके की ओर कांग्रेस की टिकट लेने का फैसला किया।

सभी राजपूत घरानें उनके इस फैसले के खिलाफ थे और उनके ससुराल में तो इस बारे में किसी को जानकारी ही नहीं थी। उनके भाई ने जब अपने एक जागीरदार से लक्ष्मी को वोट देने को कहा तो उन्होंने जवाब दिया -

आप हमारे मालिक है हम आपके लिए सिर कटा सकते है, लेकिन नाक नहीं।

लक्ष्मी को कुछ राजपूतों ने मारने की धमकी भी दी थी लेकिन लक्ष्मी बिना डरे मैदान मे डटी रही। लक्ष्मी के सभी विरोधियों के मूँह पर सबसे बड़ा चांटा तब पड़ा जब लक्ष्मी वह चुनाव जीत गई।

लक्ष्मी 1962 से 1971 तक कांग्रेस पार्टी के तहत लोकसभा की सदस्य रही तथा 1972 से 1978 तक राज्यसभा की सदस्य रही। वह राजस्थानी प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनी।

अगर उनकी सफ़लता का श्रेय किसी को जाता है तो वह केवल और केवल लक्ष्मी को जाता है क्योंकि उस समय में किसी महिला के लिए इतनी प्रगति करना आसान नहीं रहा होगा। लेकिन उनकी कोशिशों के बलबूते पर वह अपने समय की कुछ सफ़ल महिलाओं में से एक बन गई।

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