बन्दे में था दम
बापू , मोहनदास गांधी का नाम नहीं है बल्कि बापू नाम है उस लम्बी लड़ाई का जो महात्मा गांधी ने सरकार के खिलाफ लड़ी, समाज की रूढ़िवादी सोच के खिलाफ लड़ी, सत्य के लिए लड़ी, अहिंसा के लिए लड़ी, हमारे और आपके लिए लड़ी, इस देश के लिए लड़ी और 2 अक्टूबर इसी लड़ाई का विजय दिवस है।
आजादी बहुत लंबी लड़ाई थी, कई ज़िंदगियाँ गुलामी की आग में झुलस गई, कई लोगों ने इसे पाने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया और कई लोगों ने अपनी जान भी दे दी। सालों की कुर्बानियों और कोशिशों के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिली थी इसलिए यह पूरे देश के लिए एक बहुत ही खुशी का क्षण था। इस दिन एक व्यक्ति को छोड़कर पूरा देश उत्सव में डूबा हुआ था और वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि महात्मा गांधी थे। वह दिल्ली के जश्न से दूर, बटवारें की आग में झुलस रहे बंगाल में जहां हिंदू और मुसलमान एक दूसरे की हत्या कर रहे थे और एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे, राष्ट्रपिता वहां शांति स्थापित करने के प्रयासों में लगे हुए थे।
'वैश्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे; पर-दुख्खे उपकार करे तोये मन अभिमान ना आणे रे' इस भजन को वह दिन रात गाते रहते थे जिसका अर्थ था - सच्चा वैष्णव वही है जो दूसरों की पीड़ा को समझे। जब वह दूसरों के दुखों पर उपकार करें, तो उसके मन में कोई अभिमान न आने दें। दूसरों के लिए अपने प्राण हथेली पर लेकर घूमने वाले गांधी जी के जीवन का सार भी यही है।
कमजोर कभी क्षमाशील नहीं हो सकता है। क्षमाशीलता ताकतवर की निशानी है। - महात्मा गांधी
गांधी जी का जीवन उन प्रयासों और प्रयोगों की दास्ताँ है जो उन्होंने अपने जीवन काल में अपनाए। पूरी ज़िन्दगी, यहाँ तक की मरते दम तक वह सत्य के साथ प्रयोग करते रहे। उनका जन्म किसी गरीब घर में नहीं हुआ था। उनके पिता एक समय पर दीवान थे वह यदि चाहते तो अपने पिता की विरासत और पद को संभालकर खुशी से सभी ऐशो आराम के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने लिए दुनिया का सबसे कठिन पथ चुना। जिस पर चलना किसी के लिए भी संभव नहीं था, गांधी जी के बाद उस पथ पर चलने में केवल नेल्सन मंडेला सफल हुए।
मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा बनने का उनका सफर आसान नहीं था। ना ही महात्मा बनने की उनकी कोई योजना थी लेकिन उनकी ज़िन्दगी के अनुभवों, त्याग और उनके द्वारा चुने गए रास्तों ने उन्हें महात्मा बना दिया।
उनके विचारों पर सबसे बड़ा प्रभाव उनके द्वारा दक्षिण अफ्रीका में बिताए गए 21 वर्षों का था। जिसके बाद उनकी सोच, नज़रिए, व्यक्तित्व सभी को परिवर्तित हो गए। अफ्रीका में उन्हें रंग भेद से झूझना और लड़ना पड़ा। बार बार वहाँ उनके आत्मसम्मान को चुनौती दी गई, भरी ठंड में उन्हें ट्रेन से उतार दिया गया।
जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने 21 साल तक अफ्रीका में रह कर जातीय भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। इस लड़ाई में उन्होंने अहिंसा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया और 'सत्याग्रह' की खोज की।
गांधी जी के भारत आने से पहले ही उनकी कहानियाँ भारत तक पहुँच चुकी थीं। सभी जानते थे कि कैसे उन्होंने अफ्रीका में अंग्रेजों और उनकी सोच के खिलाफ और भारतीय मूल के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। भारत में उनका भव्य स्वागत किया गया। चम्पारण में उनके पहले सत्याग्रह और उसकी कामयाबी ने गांधी जी को जन जन का प्रिय बना दिया।
हम जो करते हैं और हम जो कर सकते हैं, इसके बीच का अंतर दुनिया की ज्यादातर समस्याओं के समाधान के लिए पर्याप्त होगा। - महात्मा गांधी
महात्मा गांधी को गुजरते हुए देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ती। धीरे धीरे गांधी जी से लोगों की आस जुड़ने लगी। लोग उन्हें चमत्कारी पुरुष समझने लगे, इसलिए जब उन्होंने असहयोग आंदोलन की घोषणा की तब लोगों ने बिना आगे पीछे की सोचे अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। लेकिन गांधी जी आज़ादी के लिए अहिंसा की कुर्बानी करने के लिए तैयार नहीं थे इसीलिए चौरी चौरा कांड के बाद उन्होंने यह आंदोलन वापस ले लिया। इससे उनकी छवि को गहरी ठेस पहुँची। गांधी जी के समर्थक उनके आलोचक बनने लगे लेकिन गांधी जी अपने रास्ते पर और आदर्शों पर अड़िग रहे।
देश की देखभाल करते हुए उनका परिवार बिखर गया। उन्होंने 35 वर्ष की आयु में ब्रह्मचर्य ग्रहण किया। उनके बड़े बेटे हरिलाल उनसे विमुख हो गए। कस्तूरबा गांधी का जीवन शायद महात्मा गांधी जी से भी अधिक कठिन था लेकिन उन्होंने फिर भी अपने पति का साथ कभी नहीं छोड़ा, मरते दम तक नहीं।
बापू और देश के करोड़ों स्वतंत्रता सेनानियों की मेहनत आखिरकार रंग लाई। अंततः ब्रिटेन ने भारत को आज़ाद करने का ऐलान कर दिया। लेकिन आज़ादी अपने साथ तोहफ़े में जो हिंसा और हिन्दू-मुस्लिम दंगे लाई थी उन्होंने बापू को अंदर से तोड़ दिया। राजनीति से बापू ने मुँह मोड़ लिया और अपना बाकी का जीवन दूसरों की सेवा करके बिताने का निर्णय लिया।
सभी जानते है की जवाहरलाल नेहरू उनके बेहद करीबी थे। महात्मा गांधी के शव के सामने जब उनकी प्रिय भतीजी मन्नू उनका मनपसंद भजन गा रही थी तब आँखों में नमी लिए नेहरू उनसे बोले ज़रा ज़ोर से गाओ क्या पता बापू जाग जाए।
बापू दुनिया से जा चुके है, शायद उनके साथ उनका सत्य और अहिंसा भी चला गया। हर जेब में बापू है लेकिन बड़ी दुःख की बात है की हर दिल में नहीं। आज के भारत और भारतीयों को देख कर लगता ही नहीं है की इस देश में बापू भी कभी जन्मे थे। उन्होंने कहा था की उनका जीवन उनका सन्देश है लेकिन शायद उनका यह सन्देश सुनने से पहले ही हमने अपने कान बंद कर लिए। यदि हमने कुछ सुना तो केवल उनकी आलोचनाएँ और उनके निजी जीवन से जुड़ी सच्ची झूठी अफवाहें। जहाँ एक ओर पूरी दुनिया उन्हें सराहती है वहीं दूसरी ओर भारत में उनके आलोचक आपको घर घर मिल जाएंगे लेकिन कभी मौका मिले तो उन मूर्खो से आप एक प्रश्न पूछियेगा की क्या उन्होंने कभी पुलिस का एक डंडा भी खाया है या 4 दिन भी बिना अन्न के रहे है यदि नहीं तो उन्हें बापू की बुराई करने का भी कोई हक़ नहीं है जिन्होंने आज़ादी के लिए हज़ारों डंडे हस्ते हस्ते खाये, देश में शांति बनी रही इसलिए 21 दिन तक अन्न का एक दाना भी नहीं खाया। उनके जन्मदिन को पूरी दुनिया अहिंसा के दिवस के रूप में मनाती है लेकिन शायद भारत ही अहिंसा की ताकत को भूल गया है। आईये इस दिन प्रण ले कि बापू के देश में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होगा, यदि स्थान होगा तो केवल प्रेम के लिए, भाईचारे के लिए और सत्य के लिए।