मुख्यमंत्री का बॉलीवुड प्यार

यह एक ऐसे मुख्यमंत्री की कहानी है जिसका जन्म तो छोटे परिवार में हुआ था लेकिन उसकी मृत्यु छोटे परिवार में नहीं हुई थी। एक ऐसे मुख्यमंत्री जिसका राजनीति में जितना नाम हुआ उतना ही विवादों में भी। यह बॉलीवुड के जाने माने अभिनेता रितेश देशमुख के पिता की कहानी है!
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महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नेता; स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

कहते हैं की महाराष्ट्र में राजनीति और बॉलीवुड साथ साथ चलते है और देशमुख परिवार की कहानी सुनकर यह सच भी लगता है। देशमुख परिवार महाराष्ट्र का जाना माना परिवार है और उस परिवार के सुपुत्र रितेश देशमुख बॉलीवुड की जानी मानी हस्ती है। लेकिन क्या आप जानते है की रितेश देशमुख के पिता कौन थे? वह महाराष्ट्र के नेता थे। इसके अलावा वो 2 बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे।

महाराष्ट्र के लातूर जिले के गांव में उनका जन्म हुआ था। उन्हें सफ़लता तोहफ़े में नहीं मिली थी। उन्होंने उस सफ़लता के छोटे छोटे कदम उठाए। सबसे पहले उन्होंने अपने गांव के सरपंच का चुनाव लड़ा और जीता भी। इसके बाद उन्हें लातूर से कांग्रेस की टिकट मिल गई। लेकिन उन्होंने अपनी कोशिशें तब तक कम नहीं की जब तक वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं बन गए।

बड़े ही गर्व की बात है की उसी लातूर क्षेत्र से आज उनके 2 बेटे अमित देशमुख और धीरज देशमुख विधायक है।

विवादों से विलासराव का कुछ अलग ही नाता रहा। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका नाम विवादों में छाया रहा। फिल्म निर्माता सुभाष घई को गैर कानूनी ज़मीन देना हो या अपने रिश्तेदारों के लिए मुंबई पुलिस पर दबाव डालना हो।

कहते हैं न नाम बनाने में पूरी ज़िंदगी लग जाती है लेकिन गवानें के लिए एक पल ही काफी होता है। 26/11 का हमला विलासराव देशमुख के लिए ऐसा ही दिन बन गया।

26/11 की घटना उनके मुख्यमंत्री पद के लिए ग्रहण साबित हुई।

उस समय विलासराव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। लेकिन जब वह हमले के बाद ताज होटल का मुआयना करने पहुंचे तो उनके साथ उनके बेटे रितेश देशमुख और फिल्म निर्माता राम गोपाल वर्मा को देख कर जनता, मीडिया और विपक्ष ने उनकी बहुत आलोचना की। जिसको देखते हुए कांग्रेस को उन पर दबाव बनाना पड़ा की वह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दें।

इस्तीफ़ा देते हुए उन्होंने कहा की लोगों के गुस्से और लोगों की असुरक्षित भावनाओं का लोकतंत्र में सम्मान होना चाहिए।

इस घटना से शायद ही उनके राजनैतिक जीवन पर कोई प्रभाव पड़ा होगा क्योंकि कुछ ही समय में वह मनमोहन मंत्री मंडल में शामिल कर लिए गए। सब सही चल रहा था लेकिन उनकी सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी।

2011 में उन्हें उनकी बिगड़ती सेहत के संकेत मिले लेकिन यह वर्ष उनके परिवार में ढेर सारी खुशियां लाया था, उनके दो बेटों रितेश और धीरज का विवाह इसी साल हुआ था इसीलिए विलासराव ने यह बात केवल खुद तक रखी। अगस्त 2012 आते आते उनकी सेहत अत्यधिक बिगड़ गई। उनके लीवर और किडनी खराब हो चुके थे उन्हें तुरंत ही ट्रांसप्लांट की ज़रूरत थी।

ट्रांसप्लांट के लिए उन्हें चेन्नई ले जाया गया लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। जिस व्यक्ति का लीवर और किडनी विलासराव को ट्रांसप्लांट किया जाना था वह 1 दिन पहले ही चल बसा, अगले दिन विलासराव जी ने भी जीवन से हार मान ली।

उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया और तीनों बेटों के सिर से पिता का साया उठ गया। उस समय विलासराव कांग्रेस में थे लेकिन शायद ही ऐसा कोई बड़ा नेता होगा जिसने उनके जाने का दुख न जताया हो। उनके जनाज़े के साथ चल रही भारी भीड़ ही उनकी जमा पूँजी थी। कई विवादों में नाम आने के बावजूद उन्होंने जो लातूर और महाराष्ट्र के लिए किया उसको भूलना नामुमकिन है।

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