शहीदों के सरताज
यह एक सिख गुरु की सहन शक्ति और एक मुग़ल सम्राट की क्रुरुता की कहानी है। यह गुरु अर्जन देव पर, मुग़ल सम्राट जँहागीर द्वारा किए गए जुल्मों की दास्ताँ है।
गुरु अर्जन देव सिखों के पांचवे गुरु थे। उन्होंने ही स्वर्ण मंदिर की नींव रखी थी। उस समय इस पवित्र स्थल को हरमिंदर साहब के नाम से जाना था। इतना ही नहीं स्वर्ण मंदिर का नक्शा भी गुरु अर्जन देव ने ही बनाया था।
गुरु अर्जन देव ही वो गुरु थे जिन्होंने आदि ग्रंथ की रचना की थी जिसका विस्तारित रूप गुरु ग्रंथ साहिब है। सभी धर्मों के लोगों में उनकी मान्यता थी। लेकिन कट्टर पंथी मुसलमानों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने यह अफ़वाह फैलाना शुरू कर दिया कि आदि ग्रंथ में कुछ शब्द इस्लाम के खिलाफ़ लिखे हुए है।
मुग़ल शासक जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया। जँहागीर के आदेश पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। जँहागीर ने उनके सामने प्रस्ताव रखा की यदि वह इस्लाम को स्वीकार कर लेते है तो उन्हें मुक्त कर दिया जायेगा। परन्तु गुरु अर्जन देव जी इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
इतिहासकारों के अनुसार शहजादे खुसरो को शरण देने के कारण भी जहांगीर गुरु अर्जन देव से नाराज था।
यह 1606 ईसवी की भीषण गर्मी का समय था। गुरु अर्जन देव को लाहौर में बंदी बनाकर रखा गया था। जँहागीर ने उन्हें 'यासा व सियासत' कानून के तहत सजा सुनाई। यासा व सियासत के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है।
30 मई 1606 ईसवी का दिन गुरु अर्जन देव को यातनाएं देने के लिए तय किया गया। उन्हें लोहे के गर्म तवे के ऊपर बैठाया गया। उनके शीश पर गर्म गर्म रेत डाली गई। इतनी यातनाएं सहने के बाद भी गुरु देव बिल्कुल शांत थे, न उनके चेहरे पर कोई घबराहट थी और न ही कोई डर। उन्होंने सारे कष्ट हँसते हँसते झेल लिए और यही अरदास की- तेरा कीआ मीठा लागे॥ हरि नामु पदारथ नानक मांगे॥
लोक मान्यताओं के अनुसार तपता तवा उनके शीतल स्वभाव के सामने सुखदाई बन गया और तपती रेत भी उनकी निष्ठा भंग नहीं कर पाई।
इन्ही कहानियों के अनुसार जब गुरु जी का बदन गर्म रेत के कारण झुलसने लगा तो उन्हें रावी नदी में नहाने के लिए भेजा गया। नदी में पहली डुबकी लगाते ही उनका शरीर नदी में विलुप्त हो गया। कुछ अन्य कहानियों के अनुसार जँहागीर ने गुरु अर्जन देव की हत्या करवा दी थी।
जिस जगह रावी नदी में गुरु अर्जन देव का शरीर लुप्त हुआ था वंहा उनकी याद में डेरा साहिब गुरुद्वारा बनाया गया। जो अब पाकिस्तान में है।
इन कहानियों में कितनी सच्चाई है और कितना झूठ यह हम नहीं जानते। जँहागीर ने गुरु अर्जन देव की हत्या राजनैतिक कारणों से करवाई या धार्मिक कारणों से इसके भी पक्के सबूत हमारे पास नहीं है। लेकिन जिस क्रूरता से उन पर अत्याचार किए गए वह जहाँगीर की कट्टरता और अमानवीय व्यवहार के साक्ष्य के अलावा और कुछ नहीं है।
गुरु अर्जन देव को सिख धर्म के पहले शहीद के रूप में याद किया जाता है। श्री गुरु अर्जन देव जी को उनकी विनम्रता के लिए याद किया जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में किसी से दुर्वचन नहीं कहा।
यँहा तक की उन्हें यातनाएं देने वाले पत्थर दिलों से भी वह बड़ी विनम्रता से बात करते रहे। उनकी शहीदी से गुरु अर्जन देव जी तो हमें छोड़ कर चले गए लेकिन उनके विचार और उनके कार्य सदा के लिए अमर हो गए। यही जँहागीर की सबसे बड़ी हार थी और गुरु अर्जन देव जी की सबसे बड़ी जीत।
आज भी सिखों द्वारा 30 मई को गुरु अर्जन देव के शहीद पर्व के रूप में मनाया जाता है।