सड़क हादसे रोकने के लिए एक महिला की मुहिम
लंदन में जब पहली बार किसी मोटर कार की टक्कर से एक महिला की मौत हुई तो न्यायिक अधिकारी ने उम्मीद की थी कि भविष्य में ऐसी कोई दुर्घटना नहीं होगी मगर आज विश्व भर में लगभग 15 लाख लोग ऐसे हादसों का शिकार हो रहे हैं और इनकी सबसे बड़ी संख्या भारत में है। ऐसे लोगों को नवंबर के तीसरे रविवार को याद किया जाता है और इसके पीछे भी एक और महिला के संघर्ष की कहानी छिपी हुई है:
17 अगस्त 1896 की बात है। लंदन के एक श्रमिक की 44 साल की पत्नी ब्रिजिट ड्रिस्कॉल अपनी बेटी और उसकी सहेली के साथ सड़क पार कर रही थी। तभी एक मोटर प्रदर्शनी में आई कार ने उसे टक्कर मार दी। तब लंदन में गिनी-चुनी कारें थीं। यह गवाहों ने कहा था कि गाड़ी बड़ी तेज़ दौड़ रही थी। घोड़ागाड़ी से भी तेज़। कुछ दिन पहले ही ब्रिटिश संसद कारों की गति सीमा 2 मील प्रति घंटे से बढ़ाकर 12 मील प्रति घंटे करने का क़ानून पारित किया था। इस कार की स्पीड क्षमता लगभग 8 मील प्रति घंटे थी। हादसे के समय तो गति 4 मील प्रति घंटा भी नहीं थी।
इसी हादसे पर दुःख जताते हुए न्यायिक अधिकारी ने आशा व्यक्त की थी कि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाएं नहीं घटेंगी। किंतु तब से गाड़ियों की गति दस गुणा से भी तेज़ हो चुकी है। दुनिया भर में हादसे बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में बताया कि दुनिया भर में हर साल 13.5 लाख लोग सड़क हादसों के शिकार हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में एक लक्ष्य इन्हीं हादसों की संख्या 2020 तक आधी करना था। यह अपने लक्ष्य से बहुत दूर है। सड़कों पर हताहत होने वाले आधे लोग पैदल यात्री, साइकिल चालक या दोपहिया चालक होते हैं। इन्हें “असुरक्षित सड़क उपयोगकर्ता” कहा जाता है। इनकी सर्वाधिक संख्या विकासशील या अल्पविकसित देशों में है।
चिंताजनक बात यह है कि 5 से 29 साल के लोगों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण सड़क यातायात हादसे ही हैं।
ऐसे हादसों को रोकने की कोशिश लंदन की ही एक और महिला ब्रिजिट चौधरी (Brigitte Chaudhry, MBE) ने शुरू की। अक्तूबर 1990 में उनके 26 साल के इकलौते बेटे मंसूर को रेड लाइट के बावजूद एक वैन चालक ने कुचलकर मार दिया था। उन्होंने देखा कि पीड़ित की चाहे कोई गलती नहीं हो, ड्राइवर कितना ही अंधाधुंध गाड़ी चला रहा हो, सड़क हादसे में हुई मृत्यु को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता, जितना किसी और कारण से हुई मौत को।
सरकार के इसी रवैये को बदलने के लिए उन्होंने लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ी। रोडपीस (RoadPeace) संगठन बनाकर अपने जैसे और पीड़ित परिवारों को जोड़ा। सड़क दुर्घटना के पीड़ितों के लिए पहली हेल्पलाइन 1992 में शुरू करवाई। फिर 1993 में पहला यादगार दिवस मनाया। बाद में यूरोपियन फ़ेडरेशन ऑफ़ रोड ट्रैफ़िक विक्टिम्स़ (FEVR) बना तो वह इसकी अध्यक्ष भी रहीं।
एक माँ की इस मुहिम को ब्रिटिश सरकार ने भी सराहा। ब्रिजिट को एम.बी.ई. (मैडल ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर) से नवाजा गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2003 में इस मुहिम को समर्थन दिया। दो बरस बाद 2005 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने इस दिन को मनाने और सड़क हादसे के शिकार लोगों को याद करने और उनके परिवारों के साथ खड़े होने का आह्वान किया। तब से अधिक से अधिक देश इससे जुड़ रहे हैं। हर साल नवंबर के तीसरे रविवार को यह दिवस मनाया जाता है।