'सिटी ऑफ़ जॉय' कोलकाता का फ़्रेंच प्रेमी

फ़्राँसीसी लेखक डॉमिनिक लैपियर ने कोलकाता को केंद्र में रखकर 'सिटी ऑफ़ जॉय' बेस्टसेलर तो लिखी ही, इसकी रॉयल्टी से यहाँ की मलिन बस्तियों के बच्चों के लिए स्कूल से लेकर अस्पताल तक खोले; 2 दिसंबर 2022 को उनकी मृत्यु के साथ भारत ने एक दोस्त खो दिया।
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पद्म भूषण डॉमिनिक लैपियर (30 जुलाई 1931- 2 दिसंबर 2022) भारत यात्रा के दौरान। (चित्र साभार: The Indian Express)

डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस की लेखक जोड़ी ने दुनिया को कई मशहूर किताबें दीं। दुनिया के कई ज्वलंत विषयों पर उन्होंने किताबें लिखीं। लेकिन भारत में वह भारत की आजादी की कहानी फ़्रीडम ऐट मिडनाइट, कोलकाता के निचले तबके की जिंदगी सिटी ऑफ़ जॉय और भोपाल गैस त्रसदी पर लिखी किताब फ़ाइव पास्ट मिडनाइट के लेखक रूप में याद किए जाते हैं।

डॉमिनिक लैपियर फ्रांस के थे, वहीं पले-बढ़े, फिर अमेरिका में पढ़ाई की, लेकिनफर्राटेदार बांग्ला भी बोलते थे। वह सिर्फ किताबें लिखने भारत नहीं आए थे। उन्होंने भारत को भरपूर जिया।

भारत आने से पहले उनकी पहली बड़ी किताब इज़ पैरिस बर्निग? (1965) दुनिया में धूम मचा चुकी थी। यह दूसरे विश्व युद्ध के दिनों में धुरी देशों द्वारा पैरिस की मोर्चाबंदी की दास्तान है। फिर 1972 में आधुनिक इस्नायल के उदय पर नई किताब लिखी- ओ! येरुशलम को भी पाठकों ने हाथोहाथ लिया।

उनकी लेखन यात्रा का अगला पड़ाव भारत था। शुरुआत भारत की आजादी की कहानी से की। फ़्रीडम ऐट मिडनाइट (1975) में उन्होंने भारत में ब्रिटिश राज के अंतिम साल के घटनाक्रम को दर्ज किया। लॉर्ड माउंटबेटन के वायसराय बनने से लेकर महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा तक। उन्होंने आजादी को लेकर आप्रवासी ब्रिटिश नागरिकों, राजाओं-महाराजाओं और पहली सरकार के सदस्यों की प्रतिक्रियाओं को खास तौर पर रेखांकित किया। इसके लिए इन वर्गों की आलोचना भी सही। ब्रिटिश लेखक जेम्स कैमरून के अनुसार लैपियर और कॉलिंस ने गहरा शोध करके यह किताब लिखी और वे कई ऐसे तथ्य सामने लाए जिनकी उस दौर के इतिहासकारों ने भी अनदेखी कर दी थी। इसलिए सत्ताधारी वर्गो को किताब से परेशानी हुई।

भारत के बारे में दूसरी किताब के लिए उन्होंने कोलकाता को चुना। यहां मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी संस्था चलाने वालीं मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका था। लैपियर और कॉलिंस ने कोलकाता के एक हाथ-रिक्शा चलाने वाले की जिंदगी के इर्द-गिर्द अपनी कहानी बुनी। इसमें कुष्ठरोगियों की बस्ती की जिंदगी थी। मदर टेरेसा भी थीं। कोलकाता को उन्होंने सिटी ऑफ़ जॉय यानी आनंद नगर नाम दिया।

इस किताब की आधी रॉयल्टी उन्होंने कोलकाता में मानवीय सहायता कार्यों के लिए दान कर दी। इसमें कुष्ठ और पोलियो रोगियों के लिए आश्रय केंद्र, दवाखाने, स्कूल, पुनर्वास केंद्र बनाने जैसे कई काम शामिल हैं। वह भारत में भ्रष्टाचार से बखूबी वाकिफ थे। ऐसे में यह पैसा सीधे पीड़ितों को पहुंचे, इसके लिए उन्होंने अपनी हमनाम पत्नी के साथ सिटी ऑफ जॉय फाउंडेशन बनाया। इस किताब पर 1992 में फिल्म भी बनी।

भारत पर उनकी तीसरी किताब का विषय भोपाल गैस हादसा है। किताब 2001 में फ़ाइव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल के नाम से आई। इसमें जैवियर मोरो सहलेखक हैं। इस किताब की पूरी रॉयल्टी गैस पीड़ितों के लिए बनाए गए संभावना क्लिनिक को दे दी गई। किताब में जिस ओडिया बस्ती का जिक्र है, उसके बच्चों के लिए उन्होंने स्कूल भी खोला है।

लैपियर यूँ तो फ्रांस के एक कुलीन परिवार में जन्मे। उनके पिता अमेरिका में फ्रांस के राजनयिक रहे। किंतु युवा लैपियर ने एक रोमांचक जिंदगी जी। अमेरिका में पढ़ाई के दौरान पेपर ब्वाय के रूप में अखबार बेचे। स्कूली दिनों में 30 डॉलर लेकर अमेरिका घूमने चल दिए। एक ट्रक वाले ने उनका सूटकेस चुरा लिया। पुलिस से पहले लैपियर ने उसे पकड़ लिया। शिकागो ट्रिब्यून ने उनकी इस विशेष खबर को छापने के एवज में सौ डॉलर दिए। बाद में उन्होंने 20 हजार मील के इस सफर पर पहली किताब (अ डॉलर फ़ॉर अ थाउज़ैंड किलोमीटर्स) भी लिखी। फु़लब्राइट स्कॉलरशिप लेकर अमेरिकी यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ा। 1952 में डिग्री मिली ही थी कि एक फै़शन एडिटर से प्रेम हो गया। तुरंत शादी कर ली। पैसे थोड़े ही थे लेकिन हनीमून साल भर चला। अमेरिका से मैक्सिको होकर जापान, थाईलैंड, भारत पहुँचे। यह पहली भारत यात्रा था। फिर पाकिस्तान, ईरान, तुर्की होकर लेबनान पहुंचे और वहाँ से फ्रांस लौटकर दूसरी किताब लिखी- हनीमून अराउंड द अर्थ (हनीमून पर धरती का चक्कर)।

कार से यात्रा का भी उन्हें खासा शौक था। भारत पर पहली किताब लिखने के दौरान 1971 में अपने चालीसवें जन्मदिन पर उन्होंने मुंबई में एक रॉल्स रॉयल खरीदी और पाकिस्तान, ईरान, तुर्की होकर फ्रांस में सेंट-ट्रोपेज पहुंचे।

भारत सरकार ने 2008 में लैपियर को तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया। कोलकाता से उन्हें खास प्यार था। यह शहर उन्हें बार-बार बुलाता था। इसीलिए वह बंगाली भी सीख पाए।

सिटी ऑफ़ जॉय को याद करते हुए उन्होंने 2013 में एक इंटरव्यू में कहा:

यह भारत के लिए एक प्रेम गीत है, जहाँ मैं अक्सर आता रहता हूँ.. मेरे लिए यह एक जज्बाती सफर रहा है, यहाँ मुझे लोगों का ढेर सारा प्यार और सहारा मिला है।

दो दिसंबर 2022 को लैपियर ने अपने देश में अंतिम सांस ली तो भारतवासियों ने अपना एक दोस्त खो दिया। लेकिन, उनकी कहानियों और कामों के कारण हम उन्हें हरगिज नहीं भूलेंगे!

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