स्पिक-मैके: प्रो. किरण सेठ और आईआईटी से निकला अनोखा स्टार्टअप
आई.आई.टी. दिल्ली के 73 साल के प्रोफ़ेसर एमेरिटस किरण सेठ ने भारत की आज़ादी के अमृत महोत्सव पर 15 अगस्त 2022 को कश्मीर से कन्याकुमारी तक साइकिल यात्रा शुरू की है। वह भारतीय शास्त्रीय संस्कृति के लिए समर्पित स्पिक-मैके संस्था के संस्थापक हैं। उन्होंने इसकी शुरुआत क्यों और कैसे की, इसकी कहानी अमेरिका में शुरू होती है…
विश्व की कई महान सभ्यताएं अब सिर्फ़ संग्रहालयों में जीवित हैं। सिर्फ़ इसलिए कि ये लोग - रोमन, यूनानी, मिस्री, एज़टेक अपनी-अपनी सभ्यता को बचा नहीं पाए। इस ऐतिहासिक सच्चाई ने प्रोफ़ेसर किरण सेठ (Professor Kiran Seth) को भारतीय सभ्यता का संरक्षक बना दिया। इसके विचार के अंकुर अमेरिका में फूटे।
किरण सेठ के पिता भोजराज सेठ (Professor Bhojraj Seth) खड़गपुर में खुले देश के पहले आई.आई.टी. में गणित पढ़ाते थे। यहीं से किरण ने बी.टेक. किया और डॉक्टरेट करने अमेरिका पहुँच गए।
बात 1970 के दशक के शरुआती दिनों की है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क में प्रोफ़ेसर डेविड सिग्मंड प्रायिकता (प्रोबैबिलिटी) पढ़ाते थे। यह गणित का एक गूढ़ विषय है जिसमें किसी घटना के घटित होने की अनिश्चितताओं को अंकगणित के रूप में निरूपित किया जाता है। किरण सेठ को कुछ चीजें समझने में मुश्किल आ रही थी। प्रो. सिग्मंड के सामने उन्होंने शंकाएं रखीं। जवाब मिला, परेशान मत हो, किरण तुम ठीकठाक कर रहे हो। मगर उनका मन नहीं माना। उन्हें लगा कि जो प्रायिकता की मूल बातें ठीक से समझ न पा रहा हो, उसे गणित में डॉक्टरेट का ख़्याल छोड़ देना चाहिए। वह बिज़नेस मैनेजमेंट में चले गए।
मगर एक माह में ही प्रो. सिग्मंड की कक्षा में लौट आए। क्योंकि उनकी बताईं गूढ़ बातें उन्हें उतरने लगी थीं। वह दुबारा पीएचडी में जुट गए।
इसी बीच उन्हें ब्रुकलिन कंसर्ट में उस्ताद अमीनुद्दीन डागर और उस्ताद फ़रीदुद्दीन डागर से ध्रुपद सुनने का अवसर मिला। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत के मुरीद बन गए।
डॉक्टरेट के बाद वह 1977 में भारत लौटे। कोलकाता में उस्ताद नासिर अमीनुद्दीन डागर से शास्त्रीय संगीत सीखने लगे। गुरु ने उनका स्वागत किया, एक तानपुरा सजाया और सरगम के 'सा' का रियाज़ करवाने लगे। उनका एक ही संदेश था कि जब पहले सुर 'सा' का दर्शन हो जाए तभी दूसरे सुर 'रे' पर जाने की इजाज़त मिलेगी।
किरण सेठ ने अपनी वेबसाइट में अपने गणित और संगीत के गुरुओं को याद कर लिखा है:
अपने इन दोनों गुरुओं से मैंने किसी भी महान विचार प्रक्रिया को समझने की विधि सीखी। एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाए। यानी एक चीज़ को समझने से सब समझने लगेंगे, सब समझने चलेंगे तो कुछ भी समझ में नहीं आएगा। उन्होंने कहा, दोनों गुरुओं ने मुझे अपने स्तर तक ऊंचा उठाने की कोशिश की, न कि मुझे समझाने के लिए मेरे स्तर पर उतरे।
1977 में ही उन्हें आई.आई.टी. दिल्ली के यांत्रिकी विभाग में पढ़ाने का अवसर मिल गया। यहीं उन्होंने अपने 50 छात्रों की कक्षा में देश के किसी मशहूर सितारवादक का नाम पूछ लिया। ये सारे देश के सबसे होनहार छात्रों में थे। कोई किसी भी सितारवादक का नाम नहीं बता सका।
यहाँ से एक नए विचार ने जन्म लिया। उन्होंने अपने कॉलेज के दोस्त और दिग्गज आईटी कंपनी एचसीएल (HCL) के सह-संस्थापक अर्जुन मल्होत्रा (Arjun Malhotra) के साथ मिलकर नए विचारों की संस्था बनाई। इसे नाम दिया SPIC MACAY (सोसाइटी फ़ॉर प्रमोशन ऑफ़ इंडियन क्लासिकल म्यूज़िक, कल्चर एंड आर्ट अमंग्स्ट यूथ)। इस तरह युवाओं के बीच भारतीय शास्त्रीय संगीत, संस्कृति और कलाओं को प्रोत्साहन देने वाली समिति खड़ी हुई।
इस संस्था ने शुरुआत दिल्ली के स्कूल-कॉलेजों से की। अब यह हर साल एक हज़ार शहरों में पांच हजार से ज्यादा कंसर्ट करवाती है और 30 लाख बच्चों तक पहुंचती है। इसने भारतीय संस्कृति का प्रसार करने के लिए लेक्चर-डेमंस्ट्रेशन (लेक-डेम) विधि अपनाई। इसमें कलाकार पहले अपनी विधा के बारे को समझाते हैं और फिर इसे प्रदर्शित करते हैं। इससे यह भ्रम दूर हो गया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत और कलाओं को समझना कठिन है। कलाकार, संस्थाएं, स्वयंसेवक और समर्थक इसके चार पाये हैं।
आई.आई.टी. दिल्ली से सेवा निवृत्त होने के बाद प्रो. किरण सेठ भारतीय संस्कृति के प्रसार और अधिक जुट गए। इसके लिए उन्हें 2009 में पद्मश्री सम्मान मिला। कुछ समय से वह देश में लगातार साइकिल यात्राएं कर रहे हैं। मार्च से जून 2022 तक उन्होंने 2500 किमी की साइकिल यात्रा की। इसके तीन उद्देश्य थे- सादा जीवन उच्च विचार का प्रसार, पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाना और छात्रों को भारतीय संस्कृति से परिचित कराना।
आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ पर 15 अगस्त 2022 को उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक लगभग पांच हजार किमी की साइकिल यात्रा शुरू की। इसका उद्देश्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि के साथ-साथ भारतीय संस्कृति से लोगों को जोड़ना भी है। वह कहते हैं, यह समय भारत की गौरवशाली साझा संस्कृति का उत्सव मनाने का भी है। साइकिल यात्रा को भी वह प्रोत्साहित करना चाहते हैं।