‘स्वाहा’ जिसके बिना मंत्र, हवन अधूरा है, जानिए इसके पीछे की कहानी

हवन करते समय हर मंत्र के बाद ‘स्वाहा’ क्यों बोला जाता है? अगर, क्या होगा स्वाहा नहीं बोले तो...? बात यह है यदि स्वाहा नहीं बोला गया तो वह मंत्र अधूरा माना जाएगा और मंत्र अधूरा रहा तो हवन भी अधूरा रह जाएगा। प्रश्न उठना ज़ाहिर है कि स्वाहा का मतलब है क्या? क्यों यह इतना ज़रूरी है? आख़िर, क्या कहानी है स्वाहा की?
स्वाहा : चित्र साभार - विकिपीडिया

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हिन्दू पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार सभी देवता, एकसाथ ब्रम्हा की सभा में पहुँचे। एकसाथ सभी देवताओं को देखकर ब्रम्हा चौंक गए। पता चला सभी देवताओं का एक ही दुःख है कि उन तक आहुति पूरी तरह से नहीं पहुँचती है। जब ब्रम्हा ने देवताओं की परेशानी सुनी तो वे ख़ुद सोच में पड़ गए। जब कुछ नहीं सूझा तो विष्णु को याद करने लगे। ब्रम्हा के बुलाने पर, भगवान विष्णु यज्ञ के रूप में प्रकट हुए। जब उस यज्ञ में हवन की सामग्री की आहुति दी गयी तो वह सब ब्रह्मा जी ने देवताओं को दे दी। लेकिन, ऋषि, मुनि, ब्राह्मण और क्षत्रिय या अन्य वर्ण के मानव जो हवन कर रहे थे, वह देवताओं तक नहीं पहुँची। देवता दुबारा परेशान हुए और ब्रह्मसभा में गये और वहाँ जाकर घटना का हू-ब-हू वर्णन कर दिया। ब्रह्मा फिर चिंतित हो गए फिर वे कृष्ण के पास गए और कृष्ण के बताए अनुसार उन्होंने प्रकृति का ध्यान किया।

वे प्रकट हुईं और ब्रम्हा से कहा, “हे पद्मयोने, वर मांगो।” ब्रम्हा बोले, “प्रकृति तुम अग्नि देव की दाहिकाशक्ति बन जाओ। उनसे विवाह कर लो क्योंकि, अग्नि देव अकेले आहुतियों को भस्म करने में असमर्थ हैं। तुम्हारी उपस्थिति के बाद जो मानव, मंत्र के अन्त में तुम्हारे नाम का उच्चारण करके देवताओं के लिये हवनीय पदार्थ अर्पण करेगा, उनका ही हविष्य ( हवन में देने वाली सामग्री) देवताओं को सहज रूप में उपलब्ध हो सकेगा। तुम्हारा यह उपकार देवता और मनुष्य कभी नहीं भूलेंगे।“

ब्रह्मा जी की बात सुनकर प्रकृति उदास हो गयीं। उन्होंने ब्रह्मा से कहा, “ ब्रम्हा! मैं कृष्ण की सेवा करना चाहती हूँ। मैं नहीं जानती कब तक उनकी तपस्या करती रहूँगी। मेरे लिए कृष्ण के अलावा जो कुछ भी है वह एक सपने की तरह है, केवल भ्रम है। आप जगत के सृष्टिकर्ता हो, आप जानते हो - शिव ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की, शेषनाग पूरे विश्व को धारण किए हैं, धर्म समस्त देहधारियों का साक्षी है, गणेश सबसे पहले पूजे जाते हैं और जगदम्बा जो सब तरफ़ पूजनीय हैं– यह सब कृष्ण की वजह से ही हुआ है। इसलिए पद्मज! मैं इस बारे में कोई भी वचन नहीं दे सकती हूँ।”

यह कहकर प्रकृति कृष्ण की तपस्या करने के लिये चल दीं। एक पैर पर खड़ी होकर वर्षों उन्होंने कृष्ण का ध्यान-तप किया। आख़िरकार, कृष्ण प्रकट हुए। लेकिन, ज्यों ही प्रकृति ने कृष्ण को देखा वे बेहोश हो गयीं। वे लम्बे समय तक तपस्या के कारण कमज़ोर हो गई थीं। कृष्ण प्रकृति के मन की बात समझ गए। उन्होंने प्रकृति को उठाया और कहा -

“प्रिय! तुम वाराहकल्प में अपने अंश से मेरी प्रेमिका बनोगी। तुम्हारा नाम ‘नाग्नजिती’ होगा। राजा नग्नजित तुम्हारे पिता होंगे। लेकिन, इस समय तुम दाहिकाशक्ति के रूप में अग्नि देव का हाथ थामना होगा। तुम ‘स्वाहा’ कहलाओगी। तुम मन्त्रों की अंगभूता होओगी। तुम्हारे बिना कोई भी मंत्र, हवन पूरा नहीं माना जाएगा। तुम्हारे ही ज़रिए देवताओं तक आहुति पहुँचेगी और उनका मन शांत हो सकेगा।“

कृष्ण अपनी बात कहकर चले गये। इसके बाद प्रकृति ने दक्ष प्रजापति के यहाँ स्वाहा के रूप में जन्म लिया। ब्रह्मा के कहने पर अग्निदेव डरते-डरते वहाँ पहुँचे और सामवेद में लिखे अनुसार प्रकृति का ध्यान किया, अच्छी तरह से पूजा की। उसके बाद अग्निदेव ने स्वाहा का पत्नी के रूप में हाथ थामा। तब ऋषि, मुनि, ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी ने ‘स्वाहान्त’ के साथ मंत्रोच्चार कर हवन करने लगे और वह देवताओं को भोजन के रूप में मिलने लगा। यह देखकर देवता, ब्राह्मण, क्षत्रिय यज्ञ करते सभी ख़ुश हो गए। देवताओं को आहुतियाँ मिलने लगीं और देखते ही देखते पृथ्वी लोक पर सभी काम सफल होने लगे।

यज्ञकुंड : चित्र साभार - जागरण

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तप करती एक योगिनी की परिकल्पना; चित्र साभार - news trend

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