हर मुश्किल से जीतने वाला आज जिंदगी से हार गया

आग में कूद कर अपने प्यार को बचाना हो, बेटे के ड्रग्स से छुटकारा दिलवाना हो या जेल से, लोगों के हज़ारों किलो मीटर की पैदल यात्रा हो, या फिर अपने असूलों के लिए सांसद के पद से इस्तीफा देना हो, सुनील दत्त कभी नहीं हारे लेकिन 2005 में आज के दिन वो जिंदगी से हार गए।
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सुनील दत्त; स्रोत: जागरण

सुनील दत्त एक ऐसी शख़्सियत है जिसके बारे में लिखते हुए हमेशा ये दुविधा रहती है कि क्या लिखे और क्या छोड़े क्योंकि केवल एक जिंदगी में उन्होंने तीन ज़िंदगियों के बराबर शोहरत हासिल की और तीन ज़िंदगियों के बराबर संघर्ष भी किया। अगर आपको लग रहा कि मैं उनकी ज़्यादा तारीफ कर रही हूँ तो आपकी सोच इस कहानी को पढ़ कर बदलने वाली है।

कुछ लोग सुनील दत्त को संजय दत्त के पिता के रूप में जानते है जिसने हर हालात में अपने बेटे का साथ दिया। जब बेटा ड्रग्स के दलदल में फँस गया तो उसे उस मौत के खेल से वापस लाया। जब बेटा गैरकानूनी हथियारों के मामले में जेल गया तो उस पिता ने अपनी एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया अपने बेटे को जेल से छुड़ाने के लिए।

मुन्ना भाई म.बी.बी.एस का आखरी सीन आज भी शायद इसीलिए इतना लोकप्रिय है क्योंकि वो स्क्रिप्टेड नहीं था। सीन खत्म होने के बाद भी दोनों बहुत देर तक गले लग के रोते रहे।

तुमने अपनी मां को तो बहुत बार जादू की झप्पी दी है। आज अपने बाप के गले भी लग जा।

कुछ लोग उनकी और नरगिस की प्रेम कहानी के लिए उन्हें याद करते है। वैसे करें भी क्यों न उनकी प्रेम कहानी थी ही इतनी खूबसूरत। एक सुपरहिट फिल्म के दौरान शुरू हुई थी उनकी सुपरहिट प्रेम कहानी ( मदर इंडिया)।

एक सीन की शूटिंग के दौरान नरगिस आग में फँस गई थी और सुनील दत्त ने अपनी जान की परवाह न करते हुए नरगिस की जान बचाई।

कहते है हर खूबसूरत प्रेम कहानी अधूरी होती है लेकिन सुनील दत्त कुछ अधूरा छोड़ने वालो में से थे ही कहां। उन्होंने धर्म, लोगों और समाज की परवाह किये बिना नरगिस से शादी कर ली। यह अपने समय की सबसे हाई-प्रोफ़ाइल अंतर-धार्मिक शादी थी।

ऐसे भी कुछ लोग है जो उन्हें उनके राजनैतिक जीवन के लिए याद करते है, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो राजनीति में अपने आदर्शों के साथ आया था। हिंदू- मुस्लिम दुश्मनी को खत्म करने के मकसद से आया था। लोगों को प्यार और मोहब्बत का पाठ पढ़ाने आया था। उन्हें कुर्सी का कोई लोभ नहीं था।

बाबरी मस्ज़िद के गिराए जाने के बाद जब मुंबई में दंगे हुए, तब सुनील दत्त ने अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलते हुए संसद से इस्तीफ़ा दे दिया।

जो लोग सुनील दत्त को जानते है वह हमेशा उन्हें उनकी अच्छाई और दयालुता के लिए उन्हें याद करते है। वह उस सुनील दत्त को याद करते है जो लोगों की भलाई और शांति की स्थापना के लिए हज़ारों किलो मीटर की यात्राएँ करता था।

मुंबई से पंजाब तक की पैदल यात्रा उनके जीवन की सबसे लंबी 2000 किलो मीटर की यात्रा थी ।

वह दंगो के दौरान घर पर बैठने वाले नेताओ में से नही थे। जब भी जँहा भी दंगे होते थे वो लोगों की मदद करने पहुँच जाते थे। आज भी लोग उनकी दरिया दिली को याद करते है।

सुनील दत्त जी ने अपनी पूरी जिंदगी संघर्ष किया। अपनी एक अलग पहचान बनाने का संघर्ष, राजनैतिक जीवन का संघर्ष, अपनी बीवी के कैंसर से संघर्ष, अपने बेटे के ड्रग्स के खिलाफ संघर्ष, अपने बेटे को जेल से छुड़ाने के लिए संघर्ष और ऐसे कितने ही संघर्ष।

आराम का समय आने से पहले ही आज ही के दिन 2005 में दिल के दौरे के कारण उनका स्वर्गवास हो गया। उन्हें कभी वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे शायद इसीलिए की उन्होंने हमेशा ही अपने आदर्शों को अपने व्यक्तिगत हितों से ऊपर रखा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता की संजय दत्त की कहानी पर बनी फिल्म से कहीं अधिक उनके पिता जी की कहानी पर बनी सुपरहिट होगी क्योंकि वो सिर्फ बॉलीवुड के नहीं बल्कि असली जिंदगी के भी हीरो थे।

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