हिंदी की 700 साल पुरानी पहली साहित्यिक चिट्ठी

सात-आठ सौ साल पुरानी हिंदी की बोलियों में कविताएँ तो बहुत हैं, मगर ठेठ हिंदी में इतना पुराना गद्य नहीं मिलता है। ऐसे में एक सूफ़ी कवि, संगीतकार, वाद्यकार... अमीर खुसरो ने मृत्यु से ठीक एक साल पहले अपने बेटे के लिए एक ख़त लिखा जो खड़ी बोली हिंदी का पहला पत्र माना जा सकता है।
Amir_Khusro.jpg

अपने चेलों को शिक्षा देते अमीर खुसरो का एक मिनिएचर चित्र। यह चित्र हुसैन बेकरा की पाँडुलिपि मजलिस-अल उश्शाक से लिया गया है। (साभारः विकिपीडिया)

अमरी खुसरो (1253-1325) को हम एक सूफी कवि, गायक, विद्वान के रूप में जानते हैं। तबले जैसे वाद्य यंत्र भी उन्होंने ईजाद किए। वह हजरत निजामुद्दीन औलिया के चेले भी थे। उन्हें दिल्ली सल्तनत काल के हिंदुस्तान का सांस्कृतिक स्तंभ माना जाता है।

लेकिन यह कहानी शुरुआती हिंदी के एक गद्य लेखक की है। सात सौ साल पहले हिंदी कैसे लिखी या बोली जाती होगी। उनका जन्म आज के उत्तर प्रदेश में कासगंज जिले के पटियाली कस्बे में हुआ। यह क्षेत्र आज भी ब्रज भाषा के प्रभाव का है। किंतु जो हिंदी हम आज लिख-बोल रहे हैं, यह लगभग उसी बोली और व्याकरण में है।

तो पहले सीधे पत्र पढ़ते हैं, जिसमें तकरीबन सारी उम्र सुल्तान की गुलामी करने वाले अमीर खुसरो के मन की बात सामने आती हैः

``हां, अब आराम का वक्त करीब है। 71 साल में ग्यारह बादशाह मैंने देखे। सात बादशाहों की दरबारदारी की।

बच्चो,

मेरे बच्चो,

मुझे देखो, मैंने किसी की रोटी का टुकड़ा नहीं तोड़ा, किसी के पानी से हाथ नहीं धोया। जब तक कि एड़ी का लहू मेरे माथे को नहीं चढ़ गया, घोड़े की पीठ और लश्करों की हाओ-हू में रहकर शायरी की है। मैंने जिंदगी-भर दास्तानें लिखीं, दुखिया दिलों की दास्तानें, फिर भी यह क्या जिंदगी थी मेरी। मुझ-जैसे मिस्कीन (दीन) हाजतमंद को देखो जो बे-सरो सामान खौलती हुई देग की तरह तप रहा है, जल रहा है। रात से सुबह तक, सुबह से शाम तक दर्द और कुंठाओं से घिर जाने के कारण दिल को सुकू्ं नहीं मिलता, स्वार्थ के हाथों जिल्लत उठाता हूं कि अपने-जैसे एक आदमी के सामने कमर से पटका बांधकर अदब से खड़े होना, झूठ-सच मिलाकर उसे खुश करना, तारीफों के पुल बांधना, तुम यह न करना, मेहनत और हुनर की रोटी खाना, मेहनत की, कुव्वते-बाजू की रोटी। किसी अमीर की, किसी शाह की, किसी हाकिम, हुकूमत को खुश रखने के पीछे उम्र-अजीज न बिताना। मुझको जितना कुछ ज़र-ओ-जवाहिर, हाथी-घोड़े, हीरे-मोती, सोना-चांदी मिला, सब राहे-ख़ुदा में लुटा दिया। आज मेरे पास क्या है? यह मेरी शायरी, लहू-पसीने की कमाई, यही चंद किताबें जो ख़ुदा और इनसान के इश्क़ से ताज़ा-दम हैं। तुम भी इश्क़ इख़्तियार करना, सच्चाई की जि़न्दगी जीना कि मेरे बाद, मेरे वारिस-ए-नामवर, देखो मेरी औलाद, ज़ुल्म से नफ़रत करना, आदमी से मोहब्बत करना और बाक़ी तमाम नफ़रतों से आज़ाद रहना।'

हिंदी की यह पहली चिट्ठी होनी चाहिए, जो आज भी उपलब्ध है।

किसी पिता का अपने पुत्र के नाम हिंदी में लिखा हुआ यह पहला पत्र भी होना चाहिए।

हिंदी की यह पहली साहित्यिक चिट्ठी तो निश्चित ही है।

यह कविताकोश से प्रकाशित पुस्तक ``शायर हमारे (खु़सरो से ज़िया तक)'' में संकलित है। इसमें खुसरो सहित 170 शायरों की जीवनी और चुनिन्दा रचनाएँ शामिल की गई हैं। इसके संपादक राजेन्द्र नाथ रहबर लिखते हैं:

अद्वैत स्वरूप आश्रम, दीनानगर (गुरदासपुर) के गुरु महाराज सद्गुरु दयानानंद जी महाराज का कहना है कि ``इस खत को हम ख़ुसरो द्वारा दुनिया के नाम एक पैग़ाम के रूप में भी ले सकते हैं।''

17 likes

 
Share your Thoughts
Let us know what you think of the story - we appreciate your feedback. 😊
17 Share