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असम राष्ट्रपति शासन में था। हालात नाज़ुक थे। इंदिरा गांधी ने असम के कुछ दौरे किए और राज्य में विधानसभा चुनाव करवाने के आदेश दे दिए। तब आसु ( आल इंडिया असम स्टूडेंट्स यूनियन ) और आमसु ( आल असम माइनोरिटी स्टूडेंट्स यूनियन ) एक दुसरे के ख़िलाफ़ हो गए। एक चाहता था चुनाव नहीं हो और दूसरा कहता कि चुनाव होने चाहिए। दोनों में हिंसक झड़प भी हुई। यह 1979 की बात थी।
यह द्वन्द हिन्दू-मुसलमान को लेकर नहीं था। यह पहचान को लेकर था।
शंका इंसान को जानवर के क़रीब ले जाती है। वह सही-ग़लत का आईना तोड़ देता है। बाद में पीछे मुड़कर देखने पर पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचता।
सन् 1983, उस साल असम की हवा में एक अजीब सा तनाव था। 70 के दशक में जब इंदिरा गांधी सरकार ने बांग्लादेश से आए मुस्लिम शरणार्थियों को वोटिंग का अधिकार दिया तभी से असम के स्थानीय जातियों में संशय पैदा होने लग गया। आज़ादी से पहले भी पूर्वी बंगाल से अप्रवासी नीति के तहत बंगाली मुसलमानों को इस जगह बसाया गया था। जहाँ इन्हें बसाया गया था वहाँ पहले चरवाहों के मैदान हुआ करते थे। आज़ादी से पहले जब सरकार ने खेती करने पर ज़ोर दिया तो बंगाली मुसलमानों ने भी खेती शुरू कर दी। तब शुरू हुआ, ज़मीन को लेकर यह द्वन्द अन्दर ही अन्दर बढ़ता रहा।
70 के दशक में जब बंगाल से आए लोगों को वोटिंग अधिकार मिला तो स्थानीय जनजातियों में यह डर बैठ गया कि ये लोग उन्हें धीरे-धीरे उन्हें उनकी ही जगह से विस्थापित कर देंगे। यह द्वन्द हिन्दू-मुसलमान को लेकर नहीं था। यह पहचान को लेकर था। असमी और ग़ैर-असमी को लेकर, भाषा को लेकर था। इसलिए, जो असम के मूल निवासी थे वे हिन्दू बंगालियों से भी ख़फ़ा थे। हाँ.. उनके ख़िलाफ़ ग़ुस्सा कुछ कम था, मुसलमानों को लेकर कुछ ज़्यादा था, जो कि हिन्दुस्तान में अंग्रेजों का बोया काँटा था, जिसे आज तक निकाल नहीं पाए हम।
असम राष्ट्रपति शासन में था। हालात नाज़ुक थे। इंदिरा गांधी ने असम के कुछ दौरे किए और राज्य में विधानसभा चुनाव करवाने के आदेश दे दिए। तब आसु ( आल इंडिया असम स्टूडेंट्स यूनियन ) और आमसु ( आल असम माइनोरिटी स्टूडेंट्स यूनियन ) एक दुसरे के ख़िलाफ़ हो गए। एक चाहता था चुनाव नहीं हो और दूसरा कहता कि चुनाव होने चाहिए। दोनों में हिंसक झड़प भी हुई। यह 1979 की बात थी। अगले चार साल भी माहौल बेहद तनावपूर्ण ही रहा। लेकिन, इन चार सालों में स्थानीय नेताओं और अन्य बाहरी नेताओं ने आग में घी डालने का काम किया। अन्दर ही अन्दर स्थानीय जन-जातियों में विरोध के स्वर तेज होते गए।
तब नौगाँव ज़िले का हिस्सा रहे नेली गाँव और उसके आसपास के दस-बारह अन्य गाँवों में वे लोग ज़्यादा थे जो मूल असमियों के अनुसार ‘बाहरी’ थे। तब नौगाँव की 40 फ़ीसदी आबादी मुस्लिम थी। इनके अलावा आसपास बहुसंख्यक तिवा, कोछ जनजाति और साथ में असम की अन्य हिन्दू जातियाँ, जिनमें निम्न कोपली नदी के किनारे और उच्च हिन्दू वहाँ से गुज़रते राजमार्ग के किनारे रहते थे।
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